संतान की लंबी उम्र के लिए महिलाओं ने रखा हलषष्ठी व्रत, जानिए ये व्रत क्यों मनाया जाता है

हलषष्ठी व्रत भगवान बलराम के जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान बलराम की पूजा करती हैं।

Update: 2022-08-17 15:45 GMT

परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र के लिए महिलाओं ने हलछठ का व्रत रखकर भगवान शिव और पार्वती की पूजा अर्चना की। अपनी संतान की दीर्घायु होने की कामना की गई। अलग-अलग जगह पर महिलाओं के समूह ने हल षष्ठी व्रत पूजन की। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से ठीक दो दिन पहले हर वर्ष षष्ठी तिथि को हल छठ मनाया जाता है। इस व्रत का संबंध भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी से है। इस दिन जन्माष्टमी की तरह व्रत रखने की परंपरा है। यह पर्व हल षष्ठी, हलछठ नामों से भी जाना जाता है। यह व्रत महिलाएं अपने पुत्र की दीर्घायु और उनकी सम्पन्नाता के लिए करती हैं। इस दिन हल की पूजा का विशेष महत्व है। नगर में व्रत की पूजन अनेक घरों में महिलओं ने समूह के रूप में की।

जानिए क्यों मनाया जाता है हलषष्ठी व्रत

धार्मिक मान्यता के अनुसार, बलराम जी शेषनाग के अवतार थे। इनके पराक्रम की अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। उन जैसी ताकत के लिए भी यह व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं कोई अनाज नहीं खाती है और महुआ की दातुन करती हैं।

हलषष्ठी व्रत में हल से जुती हुई अनाज और सब्जियों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इस व्रत में वही चीजें खाई जाती है। जो तालाब में पैदा होती हैं। जैसे तिन्नी का चावल, केर्मुआ का साग, पसही के चावल का सेवन करती हैं. गाय के किसी भी उत्पाद जैसे दूध, दही, गोबर आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

एक और मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। वह घर-घर दूध बेचती थी। एक दिन संतान को जन्म देने के दिन भी वह लालच मेें दूध बेचने चली गई।अचानक उसे प्रसव पीड़ा हुई तो वो झरबेरी के पेड़ के नीचे बैठ गई। वहीं उसने एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया। लेकिन उसके पास अभी बेचने के लिए दूध-दही बचा हुआ था। इसलिए वो अपने पुत्र को झरबेरी के पेड़ के नीचे छोड़ कर दूध बेचने के लिए चली गई। दूध नहीं बिक रहा था तो उसने सबको भैंस का दूध यह बोलकर बेच दिया कि यह गाय का दूध है। इसी दिन हलषष्ठी थी। बलराम ग्वालिन के झूठ के कारण क्रोधित हो गए। झरबेरी के पेड़ के पास ही एक खेत था। वहां किसान अपने हल जोत रहा था। तभी अचानक हल ग्वालिन के बच्चे को जा लगा। हल लगने से उसके बच्चे के प्राण चले गए। ग्वालिन झूठ बोलकर दूध बेच कर खुश होते हुए आई। देखा तो उसके बच्चे का निधन हो गया था। भगवान बलराम से प्रार्थना की कि आज के दिन तो लोग पुत्र प्राप्ति के लिए व्रत रखते हैं। ग्वालिन के पछतावे के बाद भगवान बलराम ने उसके पुत्र को जीवित कर दिया था। इसी के बाद से यह व्रत चलता आ रहा है।

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