गोरखनाथ मंदिर में इस बार ऐसे मनेगा गुरु पूर्णिमा, योगी आदित्यनाथ को शिष्य तिलक नहीं लगा सकेंगे, लेकिन...
संत कबीर महायोगी गुरू गोरखनाथ जी के चरित्र-व्यक्तित्व एवं योगसिद्धि से इतने प्रभावित थे कि उन्हें अपनी रचनाओं में गोरखनाथ जी की अमरता का वर्णना करना पड़ा
पंचांग के अनुसार 24 जुलाई 2021, शनिवार को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है. इस पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा कहा जाता है. हिंदू धर्म में गुरु पूर्णिमा को विशेष माना गया है. इस दिन गुरुजनों की पूजा की जाती है। एसे में उसी दिन नाथ संप्रदाय की गोरक्षपीठ गुरु गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित समृति भवन सभागार में गुरु पूर्णिमा उत्सव श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा।
हालांकि कोरोना की वजह से तिलक हॉल के बजाए स्मृति भवन सभागार में आमंत्रित शिष्यों के बीच होने वाले इस उत्सव में गोरक्षपीठाधीश्वर सीएम योगी आदित्यनाथ को शिष्य तिलक नहीं लगा सकेंगे, न ही सीएम शिष्यों को तिलक लगाएंगे। लेकिन शिष्यों को गुरु का आशीर्वाद जरुर मिलेगा। इस कार्यक्रम आनलाइन प्रसारण भी किया जाएगा। वही सीएम योगी आदित्यनाथ गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व और नाथ पंथ में इस परंपरा में भूमिका पर प्रकाश डालेंगे। मंदिर के प्रधान पुजारी योगी कमनाथ द्वारा निर्मित नाथ संप्रदाय का विशेष प्रसाद रोट का भोग लगेगा। आखिर में भंडारा लगेगा जिसका प्रसाद मंदिर में मौजूद सभी श्रद्दालु ग्रहण करेंगे।
मंदिर में गुरु पूजा की यह है परंपरा
मंदिर सचिव द्वारिका तिवारी ने बताया कि मंदिर में गुरु पूजा का आनुष्ठान अल सुबह ही शुरू हो जाता है। गोरक्षपीठाधीश्वर सुबह सबसे पहले गुरु गोरक्षनाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं और फिर सभी नाथ योगियों के समाधि स्थल और देवी-देवताओं के मंदिर में जाकर उन्हें भी पूजते हैं। अंत में सामूहिक आरती की जाती है। गुरु की पूजा के बाद पीठाधीश्वर अपने शिष्यों के बीच होते हैं। शिष्य बारी-बारी से पीठाधीश्वर तक पहुंचते हैं। तिलक लगा कर उनका आशीर्वाद ग्रहण कर गुरु दक्षिणा देते हैं। हालांकि कोरोना काल में तिलकोत्सव का कार्यक्रम नहीं हो रहा। ब्लकि पीठाधीश्वर मंच से शिष्यों को गुरु-शिष्य की परंपरा की महिमा बताते हुए इस सनातन परंपरा को कायम रखने की अपील करेंगे।
भारतीय जनमानस के लिए गुरु गोरखनाथ जी ईश्वर के अवतार हैं
गोरखनाथ जी का व्यक्तित्व भारतीय संस्कृति की पौराणिक चेतना में ढलकर भारतीय जनमानस में प्रतिष्ठित परम तत्त्व के अवतारर स्वरूपों के प्रति व्यक्त होने वाली गहरी आस्था का केन्द्र बन गया है । हिन्दू संस्कृति की समन्वयशील परम्परा अपने आराध्य देवों को कभी अलग-अलग नहीं देख सकती । आज शिवावतारी योगिराज गोरखनाथ विशाल हिन्दू जनता के मानस में श्रीराम-कृष्ण आदि अवतारों की ही भाँति प्रतिष्ठित एवं पूज्य हैं ।
संत कबीर महायोगी गुरू गोरखनाथ जी के चरित्र-व्यक्तित्व एवं योगसिद्धि से इतने प्रभावित थे कि उन्हें अपनी रचनाओं में गोरखनाथ जी की अमरता का वर्णना करना पड़ा | गुरू गोरखनाथ का नामकरण वंश-परम्परागत था अथवा दीक्षागत, यह कहना कठिन है । पर उनका यह गोरखनाथ नाम सार्थक अवश्य था । 'गोरक्ष' शब्द प्रायः दो अर्थों में गृहीत है-गो-रक्षक एवं इन्द्रिय-रक्षक ।