अच्छे दिनों की आस छोड़ रहे अनुदेशक, जीविका चलाने के लिए खोल रहे हैं दुकान, लगा रहे ठेला
अनुदेशकों के लिए अच्छे दिनों का सपना बस सपना बनकर रह गया है,स्थिति यहां तक हो गई है की अनुदेशकों को जीविका चलाने के लिए ठेला तक लगाना पड़ रहा है
अनुदेशकों के अच्छे दिन कब आयेंगे। यह ख्वाब बस अब ख्वाब बनकर रह गया है। बदहाली की जिंदगी जी रहे अनुदेशक अब बस सरकार की हाथ की कठपुतली बनकर रह गए हैं।
जीविका चलाने के लिए खोल रहे हैं परचून की दुकान
अनुदेशकों की हालत अब ऐसी हो चली है की उन्हें अपना पेट पालने के लिए परचून, किराना आदि भी कई तरह की दुकानें खोलनी पड़ रही है। दुकान खोलने के लिए पैसे नहीं हैं तो उधार पर पैसे लेकर दुकान खोलनी पड़ रही है।
जानिए अनुदेशकों का दर्द
एक अनुदेशक बताते हैं कि,पहले 7000 मिलते थे अब 9000 मिलने लगे। इतने में क्या होगा? मां जी और मेरी वाइफ का स्वास्थ्य सही नहीं रहता। इतनी भी सैलरी नहीं कि उनका सही से इलाज करवा सकूं। दूसरी तरफ महंगाई इतनी बढ़ गई है कि स्कूल जाने के लिए पेट्रोल भरवाने पर पैसे कम पड़ जाते हैं। उधार लेना पड़ता है।
बीवी तलाक के लिए अर्जी लगा चुकी है
गोरखपुर के पिपराइच के एक अनुदेशक ने कहा कि, ''9 साल की नौकरी में न सिर्फ मैं बल्कि मेरे जानने वाले कई अनुदेशक कर्ज में डूब चुके हैं। मेरा तो परिवार टूटने के कगार पर आ चुका है। कम सैलरी के कारण ही बीवी ने तलाक की अर्जी लगा दी है। 2000 रुपए बढ़ गया तो हमारी परेशानियां कम नहीं हुई।