240 वर्षों से आयोजित होने वाली कुप्पी युद्ध में राम रावण की सेना एक दूसरे पर बुरी तरह टूट पड़ती है!
कोविड-19 के चलते इस बार दोनों दल की सेनाओं सहित आयोजकों ने मास्क लगाकर युद्ध करवाया दारानगर की रामलीला में कुप्पी युद्ध के लिए दो दिन में 7 लड़ाई दोनों दलों के बीच होती है।
कौशाम्बी। कोविड-19 के चलते देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाली रामलीला प्रभावित हुई है लेकिन कौशाम्बी के दारानगर में आयोजित हुई रामलीला का कुप्पी युद्ध अपनी मौलिकता व परंपरागत तरीके से हुआ। कुप्पी युद्ध से पहले आयोजकों ने पूरे मैदान को सेनेटराइज्ड कराया। प्लास्टिक की कुप्पियों को भी सेनेटराइज्ड करने के बाद ही दोनों दलों के बीच बांटा गया। राम और रावण दल की सेनाओं के साथ ही आयोजक मंडल के सदस्य व वालियंटरों ने मास्क का प्रयोग किया।
कोरोना कॉल में भी परंपरागत तरीके से इस युद्ध में राम-रावण दल की सेनाये वास्तविक युद्ध करती दिखी। जिसे देखने के लिए आसपास के इलाके से बड़ी तादात में लोग जमा हुए। यहाँ की राम लीला अनवरत 241 वर्षो से बिना किसी बाधा के परंपरा अनुसार होती चली आ रही है| कुप्पी युद्ध का रोमांच ही ऐसा होता है की इसे देखने के लिए दर्शक खुद ब खुद मैदान में खिचे चले आते है|
यह दृश्य देखकर यह मत सोचियेगा कि किसी झगडे का दृश्य है। बल्कि यह दृश्य है दारानगर में 240 वर्षों से आयोजित होने वाली कुप्पी युद्ध का है। जिसमे राम और रावण की दो सेनाये आमने-सामने होती है। भगवान राम की सेना लाल और रावन की सेना काले कपडे में होती है। आमना सामना होने पर दोनों सेनाओ के बीच प्लास्टिक की कुप्पी से युद्ध होता है आयोजकों के सिटी बजाते ही राम व रावण दल के सेनानी जिस तरह एक दूसरे पर टूट पड़ते है उसे देख कर दर्शक रोमांच से भर उठते है।
परंपरागत तरीके से हुए इस रोमांचकारी कुप्पी युद्ध में इस बार नजारा थोड़ा बदला सा नजर आया। कोविड-19 के चलते इस बार दोनों दल की सेनाओं सहित आयोजकों ने मास्क लगाकर युद्ध करवाया दारानगर की रामलीला में कुप्पी युद्ध के लिए दो दिन में 7 लड़ाई दोनों दलों के बीच होती है।
पहले दिन चार चरणों में लड़ाई होती है पहले दिन की चारों लड़ाई रावण की सेना जीतने का प्रयास करती है। दूसरे दिन तीन लड़ाई होती है। यह तीनो लड़ाई जीत कर राम की सेना विजय दशमी का पर्व मानती है। दोनों दिन के सभी साथ युद्ध दस-दस मिनट के होते है। राम व रावण दोनों ही दल में 10-10 सेनानी होते है युद्ध इतना विकराल होता है कि देखने वालो के रोंगटे खड़े हो जाते है युद्ध में सेनानी घायल भी हो जाते है लेकिन रण भूमि की मिटटी ही इनके लिए दवा का काम करती है। सेनानी बताते है की युद्ध में शामिल होना उनके लिए गौरव की बात है। दर्शक बताते हैं की ऐसा कुप्पी युद्द कहीं और देखने को नही मिलता है इसलिए वह यहाँ खींचे चले आते हैं।
रामलीला आयोजक इस युध्द को सजीव करने के लिए महीनो मेहनत करते है। महीनो पहले से तयारी शुरू हो जाती है। इस बार कोविड-19 के नियमों का पालन कराने के लिए रामलीला कमेटी के पदाधिकारियों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ी है। बल्लियों से घिरे बड़े मैदान में युध्द के दौरान दोनों दल की सेना इस कदर बेकाबू हो जाती है कि उन्हें सम्हालना आयोजकों के लिए कभी कभी मुश्किल हो जाता है। एक कुप्पी युद्ध के सम्पन्न होने पर मेघनाथ वध और कुम्भकर्ण वध की भी लीलाये होती है। दारानगर की रामलीला का इतिहास 241 वर्ष पुराना है। यहाँ जैसा कुप्पी युद्ध कही और नही होता। आयोजक बताते है कि जहाँ हमारा समाज उंच नीच जाती धर्मं के नाम पर बाँट रहा है वही यहाँ के इस रामलीला मैं पिछले 241 सालो से रावण की सेना व भगवान राम की सेना पल भर के लिए भले ही एक दूसरे के दुश्मन बन जाते है लेकिन पल भर में यही आपस में गले मिल भाई चारे कि मिशाल कायम करते है।
रामप्रसाद गुप्ता