लखीमपुर खीरी कांड: लड़कियों के परिजन, पुलिस और अभियुक्तों के परिवारवाले क्या कहते हैं?

Update: 2022-09-17 10:56 GMT

Lakhimpur Kheri case: What do the family members of the girls, police and the family members of the accused say?

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर ज़िले के जिस गांव में दो दलित लड़कियों के शव गन्ने के खेत में एक पेड़ से झूलते मिले, उनका परिवार मीडियाकर्मियों, पुलिस और प्रशासन के लोगों और नेताओं की भीड़ के बीच अपने-आप को संभालने की कोशिश कर रहा है.

जब हम उनके घर पहुंचे तो बारिश इतनी तेज़ हो रही थी कि आप घर से बाहर निकल नहीं सकते थे. घर की छत के नीचे लोगों की संख्या बढ़ रही थी. ऐसे में घर के एक कोने में लड़कियों की माँ सिसकियाँ ले रही थीं.

खटिया पर लेटी-लेटी वो रोने लगीं, "तुमको छीन लिया मेरे हाथों से, आदमियों ने. घसीट के ले गए. कौन हमें खाना बनाकर देगा? बिटिया हमें चाय दे दो. अब तक तुमने चाय नहीं बनाई.... हमरी गुड़िया कहाँ गई रे. सेवा करती थी, अब हमारी सेवा कौन करेगा. सेवा वाली बिटिया हमारी कहां है? लूट ले गए, हमारे हाथों से छीन ले गए. ये क्या हो गया बिटिया. हाय बिटिया रे..."

रोते-रोते वो ख़ुद को दोनों हाथों से मारने लगीं और फिर बेहोश हो गईं. बगल में बैठी एक महिला ने उन्हें हिलाकर उठाने की कोशिश की. उन्होंने मुझे बताया जब से मृत बेटियों के बारे में उनकी मां को ख़बर मिली है, तब से उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था, बस रोए जा रही थीं.

इस घटना से इलाक़े में लोग सकते में हैं. एक व्यक्ति ने कहा, "ऐसी घटना इलाक़े में कभी नहीं हुई." पुलिस ने इस मामले में छह लोगों को गिरफ़्तार किया है. गिरफ़्तार लोगों में एक दलित और पांच मुसलमान शामिल हैं. हालांकि स्थानीय लोगों ने बातचीत में बताया कि यहां धार्मिक मुद्दों को लेकर आपसी विवाद जैसी कोई स्थिति नहीं रही है. लेकिन घटना के कारण अब यहां डर का माहौल है.

मां की बिगड़ती हालत को पास ही बैठा उनका बेटा देख रहा था. वो उठा और पानी लाने चला गया और फिर बगल में आकर बैठ गया. थोड़ी ही देर बाद बारिश के बीच घर पर पहुंचे पुलिस के क्षेत्राधिकारी एसएन तिवारी ने बीबीसी को बताया कि परिवार को आर्थिक मदद के तौर पर साढ़े आठ लाख रुपए बैंक में पहुंचाए जा चुके हैं. कुल मदद राशि क़रीब 50 लाख रुपए है. इसके अलावा आवास और नौकरी को लेकर भी परिवार की मदद की कोशिश की जा रही है.

मृत लड़कियों के भाई की उम्र 20 साल है और वो दिल्ली में पेपर नैपकिन बनाने का काम करते हैं. शव मिलने के कुछ ही देर बाद उन्हें गांव के एक व्यक्ति ने फ़ोन किया था. संदेश था, "आपकी बहनों को मार के लटका दिया है." उस क्षण को याद कर उन्होंने बताया, "हम सब रोने-धोने लगे और घर के लिए चल दिए." कई घंटों के बस के सफ़र के बाद वो अपने गांव पहुंचे.

बहनों को याद करते हुए वो कहते हैं, "छोटी बहन पढ़ने में तेज़ थी. वो आगे पढ़ना चाहती थी. हमने सोचा था कि वो पढ़ जाएगी तो उसकी नौकरी लग जाएगी. बड़ी बहन को सिलाई करना पसंद थी. दोनो बहनें बहुत शर्मीली थीं और वो फ़ोन पर बात नहीं करती थीं. फ़ोन करने पर वो फ़ोन मम्मी को दे देती थीं और कहती थीं, पूछ लो भाई कैसा है."

दो बहनों में से छोटी पढ़ाई करती थी, जबकि बड़ी बहन ने मां की तबीयत की वजह से पढ़ाई छोड़ दी थी. कुछ वक़्त पहले ही उनकी माँ का ऑपरेशन हुआ था. उन्होंने कहा, "कभी उनका बीपी लो हो जाता है तो कभी वो बेहोश हो जाती हैं. एक डेढ़ साल से दवा चल रही है. महीने का चार-पांच हज़ार का खर्च आ जाता है. कभी-कभी ठीक हो जाती हैं तो दवा नहीं लानी पड़ती है."

मां और बहनों के बीच रिश्ते पर वो बोले, "मां दोनो बहनों को अपने साथ रखती थीं. वो भी मम्मी की देखभाल करती थीं. घर से बाहर नहीं जाने देती थीं. वो भी घर से बाहर नहीं जाती थीं. कैसे बताएं, कैसे चलेगा इनका. हमारे साथ बहुत अन्याय हुआ. उन्हें (अभियुक्तों को) फांसी हो जानी चाहिए."

वो हमें एक कमरे में ले गए जहां बाहर बारिश की वजह से कई बकरियां बंद थी. साथ में एक साइकिल और दूसरे सामान के अलावा बीच में एक तख्त रखा था. इसके बग़ल में लकड़ी की मेज़ पर काले रंग की सिलाई की मशीन ढंककर रखी हुई थी.

मशीन की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "ये बड़ी बहन की सिलाई की मशीन थी." मैंने पूछा, "और छोटी बहन कहां पढ़ती थी." मेरा सवाल सुनते ही वो बहन का लाल रंग का बैग ले आए जो किताबों से भरा था.

मृत बच्चियों के परिवार से बात करें तो दोनों लड़कियों की ऐसी छवि उभरती है कि पूरा घर जैसे उन पर निर्भर था. परिवार की सबसे बड़ी लड़की की शादी सात साल पहले हो चुकी थी. वो कहती हैं, "मेरी शादी में वो (दोनो मृत बहनें) बहुत छोटी थीं. उस वक्त की तस्वीरें हैं हमारे पास. हमारी दोनों से बनती थी. वो कभी लड़ाई नहीं करती थीं. वो हमारे सामने पैदा हुईं, हमने उन्हें गोद में खिलाया है."

बहन ने बताया, "जब मैं ससुराल से आती थी तो वो मुझे खाना-पानी देती थी, मेरे बच्चों की सेवा करती थीं. बहुत सीधी थीं. कोई शौक नहीं था. बहुत सादे तरीके से रहती थीं. घर से बाहर नहीं जाती थीं, घर पर ही बैठकर काम करती थीं. अब अम्मा के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी. उनका दवा -पानी कौन करेगा. वो काम-धाम कर नहीं पाती हैं, धीरे-धीरे चलती हैं."

भाई के बगल में बैठी बड़ी शादीशुदा बहन अपने सबसे छोटे बच्चे को गोद में खिला रही थीं. उनके चेहरा भावशून्य था. धीरे-धीरे घर में टीवी कैमरे और चैनल के माइक उठाए रिपोर्टरों के अलावा कांग्रेस के एक गुट के लोगों ने दो कोठरियों वाले इस घर को भरना शुरू कर दिया.

एक टीवी पत्रकार बेहतर ऐंगल के लिए बेक़द्री से जूते पहने ही तख्त पर चढ़ गये. दूसरे ने बीच रखे तख्त को बिना किसी के पूछे दीवार पर टिका दिया, ताकि ज़्यादा लोग घर में आ सकें. भाई-बहन को समझ नहीं आ रहा था कि घर में क्या हो रहा है.

बच्चे को खिलाते हुए बहन बोलीं, "बहुत याद कर रहा है मौसी को. बहुत पसंद करता था. हम न बच्चों के कपड़े धोते, न नहलाते, सभी काम वो ही करती थीं. वो ही उन्हें खाना-पानी देती थी. बिस्तर बिछाकर देती थीं. तीनों बच्चों की बहुत सेवा करती थीं." बोलते-बोलते वो रोने लगीं और बोलीं, "हमें इतना दुख है कि मेरे आंसू नहीं आते हैं. बहुत सही थीं मेरी बहनें."

पुलिस ने क्या कहा?

घटना के एक दिन बाद लखीमपुर खीरी के पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अभियुक्त दोनों सगी बहनों को जबरन नहीं ले गए. उनका कहना था कि एक मुख्य अभियुक्त इन लड़कियों के घर के पास रहता था और लड़कियों को बहला-फुसला कर खेत में ले जाया गया था. पुलिस के मुताबिक इसी ने दूसरे तीन लड़कों से इन लड़कियों की दोस्ती कराई थी.

पुलिस पर लड़कियों के परिजनों का आरोप

उधर लड़कियों के परिवार के मुताबिक़, अभियुक्त उनकी बेटियों को उठाकर ले गए. उनके पिता ने बातचीत में कहा कि लड़के मोटरसाइकिल पर आए थे और उनकी बेटियों को "उठा" कर ले गए और मोटरसाइकिल पर तीन आदमी थे.

उन्होंने बताया कि घटना के वक्त वो खेत पर थे और घर में उनकी पत्नी थीं. उन्होंने कहा, "उस वक्त वो (पत्नी) नहा रही थी और अंदर कपड़े पहनने गई थी. लड़कियां बाहर थीं. तब (वो उन्हें) उठाकर लेकर भाग गए. वो पीछे-पीछे चिल्लाते हुए भागी तो उन्होंने (लड़कों ने) उन्हें लात मार दी."

पिता के मुताबिक़ जब वो घर पर आए तब उन्हें घटना के बारे में पता चला. उन्होंने लड़कियों को ढूंढने की कोशिश की लेकिन वो उन्हें नहीं मिलीं. फिर उन्होंने ये बात गांववालों को बताई. काफ़ी देर ढूंढने के बाद किसी ने गन्ने के खेत में ढूंढने की बात की. कई घंटों के बाद शाम पांच बजे उन्हें लड़कियों के शव मिले.

उनके मुंह से शब्द मुश्किल से निकले, "बलात्कार (किया गया था) गन्ने (के खेत) में उनका. उन्हें मारकर लटका दिया गया था." उन्होंने कहा, "पुलिस लड़कियों के शव को लखीमपुर ले गई. हम लोग यहीं रह गए. संग कोई नहीं गया. इसलिए कहा गया कि चक्का जाम किया जाए कि बॉडी मंगाई जा सके."

पिता के मुताबिक पुलिस लड़कियों के शव उनसे पूछे बिना ले गई.

बातचीत में पुलिस के क्षेत्राधिकारी (सीओ) एसएन तिवारी ने कहा, "उस समय हम थे नहीं. हम बाहर थे. हम बाद में आए. अगर ऐसी कोई बात हुई तो उसको हम उसको बिल्कुल देखेंगे." लड़कियों के भाई के मुताबिक़ वो एक अभियुक्त को जानते थे, "उसका खेत हमारे घर के सामने है. वो आता-जाता रहता था इधर अपने खेत को. (बाकी के लड़कों को) हम नहीं जानते थे."

अभियुक्तों के परिजनों का आरोप

प्रेस कॉन्फ्रेंस में लखीमपुर खीरी के पुलिस अधीक्षक ने अभियुक्तों के नाम भी बताए. इस पर अभियुक्तों के परिजनों का कहना है कि पुलिस ने जिन लड़कों को पकड़ा है वो नाबालिग़ हैं इसलिए पुलिस को उनका नाम नहीं लेना चाहिए था.

लखीमपुर खीरी के पुलिस अधीक्षक संजीव सुमन ने बताया कि लड़कियों के पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट आ गई है जिसमें बलात्कार की पुष्टि हुई है. उन्होंने कहा, "पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पहले लड़कियों के बलात्कार, फिर गला घोंटकर उन्हें मारने और फिर उन्हें लटकाने की बात सामने आई है. ये रिपोर्ट अभियुक्त के बयान से मिलती है. बड़ी बहन के शरीर में कुछ चोटें भी हैं, जो किसी को जबरन खींचकर ले जाते वक्त विरोध करने पर आती हैं. रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ है जिसका उन्होंने विरोध किया था."

परिजनों के इस आरोप पर कि लड़कियों का अपहरण हुआ था और वो पहले से लड़कों को नहीं पहचानती थीं, पुलिस अधीक्षक ने कहा, "आप कह सकते हैं कि पुलिस और परिवार दोनों ही अपनी-अपनी थ्योरी सही है. पुलिस की थ्योरी सही थी क्योंकि लड़कियों को मोटरसाइकिल पर बैठकर जाते हुए एक चश्मदीद ने देखा था जिसका बयान दर्ज किया गया है. सीडीआर की रिपोर्ट भी ये बात सामने आई है कि दोनों पहले से एकदूसरे को जानते थे और दोस्त थे."

"लेकिन परिजनों की बात को भी ग़लत नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये दोनों नाबालिग़ थीं, ऐसे में अगर वो अपनी स्वेच्छा से जाना चाह रही थीं तो भी इसे नोट में ऐसे नहीं लिया जा सकता. आईपीसी के क़ानून में बच्चों की स्वेच्छा को कोई मान्यता नहीं दी गई है. ऐसे में हम वहीं करेंगे जो क़ानून में दिया गया है."

अभियुक्तों के परिजनों के इस आरोप पर कि वो नाबालिग़ हैं, पुलिस अधीक्षक ने कहा, "अब तक पुलिस को कोई भी सबूत या दस्तावेज़ नहीं मिला है जिससे ये बात साबित होती हो कि अभियुक्त नाबालिग़ हैं. मेडिकल एविडेंस भी ये बात कहती है कि वो बालिग़ हैं. अगर जांच के दौरान हमें ऐसा कोई सबूत मिलेगा जो ये बात साबित करती हो कि वो नाबालिग़ थे तो हम क़ानूनी तरीके से ही काम करेंगे लेकिन फिलहाल हम इन्हें बालिग़ मानकर चल रहे हैं."

अभियुक्तों को कैसे पकड़ा गया इस बारे में उन्होंने बताया, "जब एफ़आईआर दर्ज करवाई गई थी तब काफी देर हो चुकी थी, आधी रात के 01.00 बजे चुके थे. हमने चार टीमें बनाईं और अभियुक्तों की तलाश का काम शुरू किया. इस मामले का जो मुख्य अभियुक्त है, हमने सबसे पहले उसे पकड़ा और पूछताछ की. फिर उसी निशानदेही पर बाकी अभियुक्तों को पकड़ा. एक व्यक्ति रास में रह रहा था, उसे मुठभेड़ के बाद पुलिस ने गिरफ्तार किया. देर सुबह तर सभी अभियुक्तों को पकड़ लिया गया था."

अभियुक्तों का परिवार

लड़कियों का गांव दलित-बहुल है. उनके गांव के बगल में एक और मुस्लिम-बहुत गांव है. इस घटना के कुछ अभियुक्त यहां रहते थे. बारिश में हम एक अभियुक्त के घर पहुंचे जहां दो अन्य अभियुक्तों की मांएं भी हमें मिलीं. सभी ने दावा किया कि उनके बच्चों की उम्र 18 साल से कम है.

मुख्य अभियुक्त के पिता भी वहीं पर बैठे थे. उन्होंने बताया, "हमें पुलिस ने 10-11 बजे उठाया. जब हम बाहर आए तो पुलिस ने पूछा, तुम्हारा लड़का कहां है. मैंने कहा, दिल्ली गया है. तो वो बोले, उसको बुलाओ. मैंने तुरंत बेटे को फ़ोन किया. वो पीलीभीत पहुंच गया था. तो मैंने कहा कि वहीं पर उतर लो, तो वो एक ढाबे पर उतर गया. बाद में पुलिस ने उसे अपनी गाड़ी में बैठा लिया. हमको दूसरी गाड़ी में रखा था. हमें लड़के से मुलाकात नहीं करने दी. जिस दिन घटना हुई, वो पूरे दिन घर पर था. हमारी मां बीमार थीं, तो हम अस्पताल में थे."

पुलिस के बयान पर मुख्य अभियुक्त के पिता ने कहा, "हमारा बेटा हत्या नहीं कर सकता है. सीबीआई जांच हो जाए तो सब बता चल जाएगा." ये कहते-कहते सिर झुकाकर रोने लगे और बोले, "मेरी मां उठकर चल नहीं पाती हैं. वो इतना रो रही हैं कि उसका कोई हिसाब नहीं है." वहीं बैठी एक दूसरी महिला ने आरोप लगाया कि उनके बच्चे को फंसाया गया है.

स्थानीय पत्रकार प्रशांत पांडे के मुताबिक़, लखीमपुर खीरी महिलाओं के प्रति हिंसा के मामलों में सुर्खियों में रहा है. चाहे बच्चियों से रेप के मामले हों या मर्डर या महिला उत्पीड़न के. जिस गांव को आने वाले दिनों में दो दलित लड़कियों की हत्या का गांव के तौर पर पहचाना जाएगा वहां और उसके आसपास के इलाक़ों में लड़कियों की पढ़ाई पर भी क्या इसका असर होगा?

प्रशांत पांडे कहते हैं, "गांव के लोगों की एक मानसिकता होती है कि वो बच्चियों को मुश्किल से पढ़ने भेजते हैं. कई लोग सोचते हैं कि उन्हें ज़्यादा पढ़ाना नहीं चाहिए नहीं तो वो बिगड़ जाएंगी. कुछ परिवारों की आर्थिक वजहें भी होती हैं."

वो कहते हैं, "मैंने उस दलित बहुल गांव में एक लड़की से बात की थी. उसने बताया कि गांव में दलित बिरादरी की अभी तक सिर्फ़ तीन लड़कियों ने या तो बीए किया है या कर रही हैं. ज़्यादातर लड़कियां कक्षा पांच या आठ के बाद पढ़ाई छोड़ देती हैं. वो चौके-चूल्हे में ही व्यस्त हो जाती हैं."

पीड़ित लड़कियों के भाई और अभियुक्त गांव से बाहर काम करते हैं.

इलाक़े में ग़रीबी और नौकरी के लिए बाहरी इलाक़ों की तरफ पलायन पर वो कहते हैं, "मेरे बचपन के दिनों में लखीमपुर ज़िला ऐसा था कि लेबर लोग यहां पूर्वांचल और बिहार से आते थे और उन्हें काम मिलता था. लेकिन पिछले 10-15 सालों में ये बदलाव है कि अब यहां का लेबर दूसरी जगहों पर, चाहे हरियाणा, पंजाब, गुजरात, आंध्र प्रदेश है, उसे बाहर जाना पड़ता है."

वे बताते हैं, "कुछ चीनी मिलों की तरफ़ से पेमेंट में देरी होती है और किसान लेबर को पैसा नहीं दे पाता, इसलिए लोगों के लिए बाहर नौकरी के लिए जाना मजबूरी है." प्रशांत पांडे कहते हैं, "यहां ग़रीबी, अशिक्षा और आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने की वजह से महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ी है."

साभार बीबीसी 

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