उत्तर प्रदेश: 403 विधायक 100 सदस्य विधान परिषद और 80 सांसद कहाँ है?
साँसद और विधायकों को भी याद रखिये। आप चाहेंगे तो ये लोग अगली बार पैदल होंगे।
उत्तर प्रदेश में 403 विधायक 100 सदस्य विधान परिषद और 80 सांसद हैं। सभी जनता के दरवाज़े पर वोट की भीख माँगने आये थे लेकिन जब आज जनता मदद की गुहार लगा रही है तब कोई नहीं दिखाई दे रहा है। सभी भूमिगत हो गए हैं। विपक्ष के नेता आलोचना के बयान देने के लिये जीवित हो जाते हैं बस। केंद्र सरकार ने साँसद या विधायक निधि से 1-1 करोड़ कोरोना फण्ड में माँग लिया तो सबने देकर वाह-वाही लूट ली। मीडिया में प्रचार कर लिया।
आज यही सांसद और विधायक चाहें तो अपनी निधि से दो-दो एम्बुलेंस और सौ-सौ ऑक्सीजन सिलिंडर का इंतज़ाम कर दें तो समस्या काफी हद तक हल हो सकती है। मध्यप्रदेश के एक विधायक चर्चा में हैं जो लोगो की मदद के लिए अस्पताल के गेट पर कुर्सी डाल कर बैठे हैं लेकिन योगीभूमि उत्तरप्रदेश में ऐसा कोई उदाहरण दिखाई नहीं दे रहा है। क्या आपने किसी विधायक या सांसद को लोगों की मदद के लिए आते देखा। सत्ताधीश तो गए गुज़रे हैं ही लेकिन क्या विपक्ष के लोग केवल आलोचना के लिए हैं। राजनीति का स्तर यहाँ तक गिरा है कि एक नेता कहते हैं कि यह वैक्सीन भाजपा की है इसलिए नहीं लगवाऊंगा। उनके समर्थकों में भी यही संदेश जाएगा। लोग टीका लगवाने नहीं गए वैक्सीन के डोज बेकार चले गए।
नेतागण को लोगों को वैक्सीनशन के लिए प्रेरित करते भी नहीं देखा गया। अगर चाहते तो अपने क्षेत्र में लोगों को जागरूक करते। यदि विधायकगण सक्रिय हुए होते तो 45 के ऊपर के लोगों का लगभग टीकाकरण हो गया होता।
संक्षेप में इतना ही कि सरकार ही नहीं फेल हुई है, हमारे जनप्रतिनिधि बुरी तरह नाकारा निकले हैं और देखा जाय तो हमने भी मौके गवाएँ हैं।
आज सोशल मीडिया के माध्यम से स्वयंसेवी जितना काम कर रहे हैं उसके लिए सरकार को ऋणी होना चाहिए लेकिन दुख है कि उसमेँ भी पूरा समर्थन नहीँ मिलता।
विधायक और सांसद अगर इतना ही करें कि निजी अस्पतालों पर ही नकेल कसते रहें तो भी कुछ राहत मिल सकती है। इस समय निजी अस्पताल आपदा में अवसर भुनाने में प्रेतों की तरह लगे हैं।
मेरी सभी लोगों से अपील है कि सभी निजी अस्पतालों के व्यवहार का ब्यौरा रखें। महामारी बीतने के बाद इनका हिसाब किया जाना ज़रूरी है।
उन तथाकथित चिकित्सकों का भी जो डॉक्टर की जगह राक्षस साबित हो रहे हैं। समाज को सुधारने के लिए कोई फरिश्ता उतर कर नहीं आएगा। ये ज़िम्मेदारी हमे ही लेनी होगी।
साँसद और विधायकों को भी याद रखिये। आप चाहेंगे तो ये लोग अगली बार पैदल होंगे।
-अमिताभ त्रिपाठी