लोकसभा संग्राम 55– बसपा ने दलित-मुस्लिम बाहुल्य सीटें अपने पास रक्खी, बबुआ को गठबंधन में ये 38 सीटें मिल रही है?

इस गठबंधन में जिस तरह बसपा सुप्रीमो चाह रही वही हो रहा है वह एक शेरनी की तरह दहाड़ रही है।हमारे सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सपा को ज़्यादातर ऐसी सीटें दी जा रही है जहाँ सपा या गठबंधन ज़्यादा असर अंदाज नही माना जा रहा।

Update: 2019-01-16 08:22 GMT

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। बसपा और सपा के बीच हुए सियासी गठबंधन ने जहाँ देश की सियासत में भूकम्प ला दिया है। मोदी की भाजपा को इस सर्दी में भी पसीने-पसीने कर दिया हो जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश की 80 में से 73 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी उसको अपनी सियासी ज़मीन बचाने का मौक़ा भी नही मिल रहा है तो कांग्रेस को गठबंधन में न लेकर उसको भी मजबूर किया कि वह बिना बसपा व सपा के सीधे चुनाव लड़े तो वही इस गठबंधन में सपा को भी एक बेचारी और असहाय की हालत में लाकर खड़ा कर दिया है गठबंधन में उसकी कोई सियासी हैसियत नही लग रही है इस गठबंधन में जिस तरह बसपा सुप्रीमो चाह रही वही हो रहा है वह एक शेरनी की तरह दहाड़ रही है।हमारे सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सपा को ज़्यादातर ऐसी सीटें दी जा रही है जहाँ सपा या गठबंधन ज़्यादा असर अंदाज नही माना जा रहा।


अब तक बसपा के द्वारा गठबंधनों से जो अनुभवो किए है वह उनका लाभ ले रही है वह ऐसी सीटों को बसपा के खाते में ले रही जहाँ गठबंधन के जीतने के ज़्यादा चांस लग रहे है।यूपी में बसपा-सपा के गठबंधन के बाद मोदी की भाजपा के सपने जहाँ चकनाचूर होते दिख रहे है वही बसपा सुप्रीमो मायावती ने बड़ी ही सियासी चतुराई से सपा को जो 38 सीटें देने की बात सामने आ रही उनमें ज़्यादातर महानगरों की है और बसपा के लिए हमेशा यह कमज़ोर रही है।माना जा रहा है कि मायावती ने रणनीति के तहत ऐसी सीटें ज़्यादा अपने पास रक्खी है जहाँ यादव कम है और दलित-मुस्लिम ज़्यादा है मायावती और बसपा को लगता है कि गठबंधन से हमें ज़्यादा फ़ायदा नही होता है जैसा उन्होंने साझा प्रेस कांफ्रेस में कहा भी था कि हमारा वोट तो ट्रांसफ़र हो जाता है लेकिन साथी दल का वोट हमें ट्रांसफ़र नही होता जिसकी वजह से हमें उतना फ़ायदा नही हो पाता जितना गठबंधन के साथी दल को हो जाता है इसी लिए मायावती ने ज़्यादातर उन सीटों को लेने का प्रयास किया है जो दलित-मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है इन सीटों को लेने का मतलब मायावती का यह निकाला जा रहा कि वह मुसलमान पर यक़ीन कर रही है कि मुसलमान दलित-मुस्लिम वोटबैंक को आधार बनाकर वोट करेगा जिसका फ़ायदा बसपा को मिलेगा क्योंकि सपा ने बसपा से जो गिरकर समझौता किया है उसकी वजह भी मुसलमान ही माना जा रहा है सपा को यह महसूस हो गया था कि अगर बसपा से समझौता नही किया तो मुस्लिम मोदी के विरोध में कही सीधे बसपा में न चला जाए और सपा का यह सोचना ग़लत भी नही था अगर सपा ऐसा सोच रही थी मुसलमान ऐसा ही करता ये बात ग्राउंड ज़ीरो पर साफ दिख भी रही थी।


जहाँ तक मायावती की इस स्ट्रेटेजी की है वह अपनी जगह सही भी है आज तक जितने भी बसपा के अन्य दलों से गठबंधन हुए उनके परिणाम बसपा को कम और उसके साथी दल को ज़्यादा फ़ायदा देने वाले आए है इससे इंकार नही किया जा सकता।हमारे भरोसे के सूत्रों के मुताबिक बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपनी सियासी शतरंज की चाल से सपा के बबुआ को जो 38 सीटें दी है वे इस प्रकार हो सकती है 1 गोंडा 2 श्रावस्ती 3 बहराइच 4 कैसरगंज 5 फैज़ाबाद 6 बाराबंकी 7 लखनऊ 8 उन्नाव 9 कानपुर नगर 10 कन्नौज 11 फर्रुखाबाद 12 इटावा 13 एटा 14 मैनपुरी 15 फिरोजाबाद 16 फतेहपुर सीकरी 17 अलीगढ़ 18 कैराना 19 रामपुर 20 अमरोहा 21 मुरादाबाद 22 सम्भल 23 बदायूं 24 बरेली 25 आंवला 26 पीलीभीत 27 धौरहरा 28 मिश्रिख 29 झांसी 30 इलाहाबाद 31 कौशाम्बी 32 प्रतापगढ़ 33 बनारस 34 गाजीपुर 35 गोरखपुर 36 देवरिया 37 आज़मगढ़ 38 सोनभद्र को माना जा रहा है।


अगर हम उपरोक्त सीटों की सियासी पृष्ठभूमि को देखे तो इनमें 12 सीटें तो पहले ही ऐसी मानी जा रही है जहाँ सपा के बबुआ अखिलेश यादव चुनाव शुरू होने से पहले ही चुनाव हारते दिख रहे है सियासी पण्डितों का मानना है कि सपा को जो सीटें मिलने की सूत्र ख़बरें बता रहे है उनमें 26 सीटों पर सपा संघर्ष करेगी और लगभग बीस सीटें ऐसी होगी वह निकालने में कामयाब हो सकती है जबकि बसपा को जो सीटें मिलने की चर्चा हो रही है उनमें बसपा 38 में से 30 से लेकर 35 सीट जीतने की संभावना लग रही है अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि इस सियासी आँकड़ो में सियासी पण्डित जीतते है या नेताओं की सियासी कसरत लेकिन फिलहाल जो बसपा और सपा के सियासी झरनों से ख़बरें छनकर आ रही है इनसे तो यही संकेत प्राप्त हो रहे है कि इस गठबंधन में बसपा सुप्रीमो मायावती शेरनी की भूमिका में है और सपा के बबुआ अखिलेश यादव एक बेचारे की भूमिका में है अब यह बात अलग है चुनाव में उँट किस करवट बैठता है किसका पलढा भारी होता और किसका हल्का यह तो 2019 के चुनाव के परिणाम ही तय करेगे लेकिन मायावती की स्ट्रेटेजी कामयाब होती दिख रही है इससे इंकार नही किया जा सकता है क्योंकि सबकुछ बसपा सुप्रीमो मायावती तय कर रही है और सपा के बबुआ जो मुसलमानों के वोटबैंक पर सियासत करते है वह बिलकुल कमज़ोर और असहाय लग रहे है सियासी जानकार यही मान रहे है।

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