स्कूल के सभी सर्वे और रिपोर्ट का काम अनुदेशक और शिक्षा मित्र करेंगे, लेकिन वेतन के नाम पर खामोशी क्यों?
उत्तर प्रदेश के प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत अनुदेशक और शिक्षा मित्र को यूपी सरकार द्वारा सर्वे हो या चुनाव ड्यूटी , मतगड़ना , पोलियो, राशन वितरण समेत कोई भी काम हो सबके सब काम लिए जाते है। लेकिन जब चर्चा वेतन की होने लगे तो सरकार कोमा में चली जाती है, आखिर क्यों?
जब अनुदेशक और शिक्षा मित्र से काम लेना हो तब अधिकरियों और प्रधानाध्यापक का व्यवहार अलग होता है। लेकिन जैसे ही काम पूरा हो जाए और उसके एवज में कुछ काम करने का पैसा मिलना हो तो वो भी कभी कभार ही मिलता है। उसके लिए भी फिर वे ही अधिकारी और प्रधानाध्यापक अपनी बात तीव्रता से नहीं रखते है।
सारे सर्वे स्कूल के बाद शिक्षक , शिक्षा मित्र और अनुदेशक कर रहे तो सरकार द्वारा नियुक्त किये गए NGO कहां चले गए? सारा डाटा शिक्षक अपने निजी मोबाइल से फीड कर रहा है तो BRC पर तैनात स्टाफ का क्या मतलब है? शिक्षक, शिक्षा मित्र , अनुदेशक कुछ काम करने में आना कानी करें और नहीं करे तो वेतन रोकने की धमकी,सस्पेंशन वाह और खुद AC के कमरे से आदेश फेंको। टास्क फोर्स नहीं देखी कभी अभिभावकों से भी तो जवाब मांगे मगर धूप लग जायेगी।
अगर बात करें यदि यही हाल यूपी के बेसिक शिक्षा का रहा तो जो नाम थोड़ा बहुत ऊपर आया था वो नीचे फिर से चला जाएगा। क्योंकि काम के बदले जब पैसा नहीं मिलेगा तो आदमी काम से मन चुराने लगेगा। यही सबसे बड़ी बात होगी। अब तक शिक्षा मित्र और अनुदेशक पूरे मनोयोग से बच्चों को पढ़ाने का काम करता है, लेकिन खुद का परिवार आज भी परेशान रहता है।