लोकसभा संग्राम 48– एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बदलने से नाराज़ स्वर्णों को मनाने का प्रयास

Update: 2019-01-08 02:54 GMT

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। चुनाव रणभेरी बजने में अभी कुछ समय बचा है इस लिए केन्द्र की मोदी सरकार चुनावी मोड़ पर आ गई लगती है एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को बदलने से नाराज़ स्वर्णों में जो नाराज़गी देखी या महसूस की जा रही थी उसी को कम करने के लिए मोदी की भाजपा सरकार ने आर्थिक आधार पर पिछड़े स्वर्णों को चुनावी रेवड़ी देने की तैयारी कर ली है।मोदी सरकार ने नाराज़ चल रहे स्वर्णों को मनाने के लिए जो पासा फेंका है वह सही निशाने पर लगेगा या नही यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इस पासे को पूरा करने में ही पसीने आ जाएँगे इससे इंकार नही किया जा सकता है।


केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की बैठक में लिए गए एक फ़ैसले से चारों तरफ़ से घिरी मोदी सरकार ने देश की जनता का ध्यान बदलने की भी कोशिश की है हालाँकि मोदी सरकार ने अभी इस फ़ैसले की अधिकृत घोषणा नही की है कि मोदी सरकार ग़रीब व आर्थिक पिछड़ो को 10% आरक्षण देने जा रही है लेकिन सूत्र बता रहे है कि इस संबंध में सरकार ने मंत्रिपरिषद की बैठक में प्रस्ताव पास कर लिया है और शायद कल संसद में संविधान में संशोधन के बिल को पेश करेगी। केन्द्र की मोदी सरकार ग़रीब स्वर्णों को सर्विसेज़ में 10% आरक्षण देने का प्रस्ताव ला रही है इस आशय के प्रस्ताव को लागू करने के लिए संविधान की अनुच्छेद 15 व 16 को संशोधन करना पड़ेगा समझा जा रहा इसी सत्र में संशोधन बिल लाया जाएगा।


असल में सरकार को किसी से मोहब्बत नही स्वर्णों में मोदी सरकार के प्रति बढ़ती नाराज़गी को इसके बहाने कम करने की कोशिश भर माना जा रहा है जिसे लोकसभा चुनाव के महासंग्राम से जोड़कर देखा जा रहा है तीन राज्यों मिली हार को कारण के रूप में स्वर्णों के विरोध को भी माना जा रहा है उसी को धूमिल करने के लिए मोदी सरकार यह आरक्षण का लोलीपॉप लेकर आई है।


सवर्णों के ग़रीबों को जो आरक्षण देने का पैमाना बनाया गया है उसमें जिनकी आय सालाना आठ लाख से कम होगी उनको यह लाभ मिलेगा अगर इस प्रस्ताव ने सही में अमलीजामा पहना तो, हालाँकि सरकार के इस प्रस्ताव पर कई सवाल खड़े हो रहे है पहला और सबसे ज़रूरी क्या मोदी सरकार आरक्षण की सीमा 50% से अधिक करने जा रही है जिसको सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तय कर रखी है।वर्तमान में अनुसूचित जाति के लिए 15 % व अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 % और पिछड़ो के लिए 27% आरक्षण दिया जा रहा है।


संविधान के जानकारों का मानना है कि अदालत में जाते ही स्वर्णों को आरक्षण देने की नौटंकी का अंत हो जाएगा नही टिकेगा सरकार का यह चुनावी फ़ैसला।किसी ने कहा है कि पैंट गीली होने पर डाइपर पहनने से कुछ नही होता मोदी सरकार भी बस उसी भूमिका में दिख रही है।केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के इस फ़ैसले पर संविधानिक सवाल उठेंगे।आरक्षण का प्रावधान उनके लिए किया गया है जिन्हें शिक्षा और नोकरियों से दूर रखा गया था इसका आधार आर्थिक नही है।हमारे संविधान का जो मूल स्वरूप है उसके मुताबिक आरक्षण की जो व्यवस्था है उसका आधार भी यही है।अब अगर सरकार कोई बदलाव करना चाहती है तो उसे अदालत में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।


सरकार ग़रीब स्वर्णों के लिए अगर हक़ीक़त में सच्चे मन से कुछ करना चाहती तो उनके लिए बेहतर योजनाएँ चला सकता है परन्तु सरकार किसी के लिए भी गंभीर नही लगती तभी तो न होने वाले काम से वाह वाही लूटती है जिसके परिणाम कुछ नही आते सबकुछ वैसा का वैसा ही रहता है।अगर मोदी सरकार ग़रीब स्वर्णों को कुछ देना ही चाहती तो वह उनके लिए गंभीर होकर कार्य करे न कि चुनावी मोड़ पर आए।


इससे पहले भी कांग्रेस की सरकार में यह काम करने की कोशिश की गई थी परन्तु सफल नही हो पाई थी सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज हो गया था यही इसका भी हाल होगा लेकिन चुनावी बहस का मुद्दा तो मिल ही गया है।देखना यह होगा कि नागपुरिया आईडियोलोजी संविधान में किस तरह की छेड़छाड़ करती है।स्वर्णों के ग़रीब तबके के उत्थान के लिए काम होना चाहिए पर गंभीरतापूर्वक न कि सिर्फ़ चुनावी माहौल के लिए अगर मोदी सरकार ऐसा सिर्फ़ चुनावी माहौल बनाने के लिए कर रही है तो इसका विरोध होना चाहिए।

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