अनुदेशक, शिक्षामित्र हुए बहाल, 16 तारीख से मिलने लगे फिर 300 रुपये!

बता दें कि पिछले बीस वर्ष से शिक्षा मित्र जबकि दस वर्ष से अनुदेशक सरकार को और कातर दृष्टि से देख रहा है कि एक आदेश आए और कहा जाए कि शिक्षा मित्र और अनुदेशक नियमित किए गए।

Update: 2023-01-17 09:49 GMT

उत्तर प्रदेश के अनुदेशक और शिक्षा मित्र 16 जनवरी से के बार फिर से मानदेय के अधिकारी हो गए है। जबकि इसी तरीके से अनुदेशक कस्तूरबा गांधी स्कूल में भी तैनात है। उन्हे 11 माह 29 दिन का मानदेय मिलता है। क्या उसी तरह सरकार इनका भी एक दिन का वेतन ब्रेक करके इन्हे भी 11 माह 29 दिन का वेतन क्यों नहीं दे देती है। 

उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर मखौल बना दिया है। जबकि कहा जाता है इस देश के कर्णधार नौनिहाल होते है। अगर समय रहते उन्हे अच्छी शिक्षा नहीं मिली तो देश प्रगति नहीं कर सकता है। इसमें अब सबसे ज्यादा गरीब लगा हुआ है। चाहे किसान हो रिक्शा चलाने वाला हो, डेली बेसिस मजदूर हो वो अपने बच्चों को शिक्षित करने में जुटा हुआ है। और उनके बच्चे अच्छे शिक्षित बन भी रहे है। लेकिन उन्हे पढ़ाने वाले अनुदेशक शिक्षामित्रों के बारे में सरकार कब सोचेगी। 

अनुदेशक संघ के प्रदेश अध्यक्ष विक्रम सिंह ने कहा कि हमें जो भी पढ़ाने की जिम्मेदारी सरकार द्वारा डी गई है उसमें कोई भी अनुदेशक जरा भी लापरवाही नहीं करता है। चाहे उसे कितनी भी मेहनत करनी पड़े लेकिन जब महिना आता है तो उसके बेंक के खाते में महज 9000 हजार रुपये यानी 300 रुपये आते है। जबकि उसी स्कूल में उसी विषयों को पढ़ाने वाले सरकारी टीचर मेरी योग्यता से भी कम योग्य होने के बाबजूद भी ढाई हजार से तीन हजार रुपये प्रतिदिन तक वेतन पाते है। लेकिन इसके बाद वो सभी अध्यापक हमको बड़ी ही हे दृष्टि से भी देखते है चूंकि हमारा वेतन उनके तीन दिन के वेतन के बराबर है जबकि मेहनत हम उनसे कई गुना ज्यादा करते है। हमें अपने क्लास के बच्चों की चिंता रहती है। लेकिन उन सरकारी टीचरों को तो स्कूल की भी चिंता नहीं होती है। यह बात अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को पता चल जाए तो अनुदेशक का भला होने से कोई नहीं रोक सकता है/ हालांकि हमने प्रयास किया है कि सीएम योगी तक हमारा संदेश पहुँच जाए। 

एक महिला अनुदेशक ने बताया कि हमारी सबसे बड़ी समस्या ट्रांसफर है। इस नौकरी को करके हमारा परिवार भी टूटता नजर या रहा है। इस पढ़ाई लिखाई को करके हम अपने परिवार को भी समय नहीं दे पा रहे है। जब हमने इस जॉब में एप्लाई किया था तो उसमें लिखा था कि आपका चयन आपके ही विकास खंड में किया जाएगा लेकिन तत्कालीन बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने अपनी मनमानी से 40 किलोमीटर से लेकर 120 किलोमीटर दूर तक पोस्ट कर दिया। आज इस टाइम टेबिल के मुताबिक सर्दी हो गर्मी हम इतनी दूर जाने के लिए सुबह 6 बजे जाड़े में जबकि गर्मी में 5 बजे निकलते है, शाम को गर्मी में चार बजे के बाद जबकि जाड़े में शाम छह बजे के बाद घर पहुंचते है। और इस आने जाने में लगभग 3 से चार हजार तक किराये में रुपये भी खर्च होते है। फिर बचत क्या होगी आप खुद समझदार है। तो सरकार को हमारी भी समस्या का निदान करना चाहिए और हमें नियमित कर देना चाहिए। 

वहीं शिक्षामित्र संघ के प्रदेश अध्यक्ष शिवकुमार शुक्ला ने बताया कि में शिक्षा मित्रों की समस्या के निराकरण के लिए हर संभव काम कर रहा हूँ। अभी हमने 12 जनवरी को सूबे की राजधानी लखनऊ में एक रैली करके दो सत्ताधारी विधायकों के माध्यम से अपना संदेश सरकार तक पहुंचाने का प्रयास किया है। उसका नतीजा अधिकारीयों एन भी हमारा मंगपत्र लेकर सरकार को भेजा और सरकार ने हमारे मंग पत्र को देखते हुए उसके बारे एक पत्र जारी किया। जिसमें समायोजन और ट्रांसफर पोस्टिंग की बात कही गई है।  

शिक्षा मित्र उदय सिंह ने कहा कि मेरे अल्प वेतन के चलते मेरे कई साथी इलाज के अभाव में रोज दम तोड़ रहे है जो में बर्दाश्त नहीं कर पा रहा हूँ। कभी कभी लगता है कि मेरा क्या भरोसा में भी कब तक जियूँगा इस जिल्लत भरी जिंदगी में कहा नहीं जा सकता है। अभी में भी भीषण ठंड में लखनऊ गया। सरकार ने कुछ कार्यवाही शुरू की है उसका स्वागत करता हूँ लेकिन सरकार से एक ही अपील और अनुरोध करता हूँ कि अब और परीक्षा नहीं लो जो भी करना है उसे जल्द कर दीजिए क्योंकि करना तो आपको ही पढ़ेगा सरकार आप है। हम आपके मातहत कर्मचारी है जो हमेशा सरकार के होते है। हम सरकार की सभी योजनाओं को उस अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक पहुँचाने का काम करते है फिर भी सरकार की गुड बुक्स में नहीं आ पाते है क्यों? 

बता दें कि पिछले बीस वर्ष से शिक्षा मित्र जबकि दस वर्ष से अनुदेशक सरकार को और कातर दृष्टि से देख रहा है कि एक आदेश आए और कहा जाए कि शिक्षा मित्र और अनुदेशक नियमित किए गए। 


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