यूपी की सियासत का रूख बदलने की ताक़त रखता है ब्राह्मण समाज

Update: 2020-08-27 12:15 GMT

लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी

राज्य मुख्यालय लखनऊ। यूपी की सियासत में अब पोस्टरों के ज़रिए सियासत को नई धार दी जा रही है। राजधानी लखनऊ में एक पोस्टर लगाया गया जिसमें यह संदेश देने की कोशिश की गई कि यूपी में ब्राह्मण समाज के साथ अन्याय या उत्पीडन हो रहा है। ये पोस्टर सपा के एक नेता द्वारा लगाया गया है इस पोस्टर के लगने के बाद सूबे के सियासी बुखार का तापमान बढ़ गया है।इस पोस्टर में आरोप लगाया गया है कि सूबे की ठाकुर आदित्यनाथ योगी सरकार ब्राह्मणों के साथ अन्याय कर रही है इस पोस्टर के आने से पहले भी ब्राह्मणों के नेता यह आरोप लगा चुके है कि हमारे समाज का ठाकुरों की सरकार में उत्पीडन किया जा रहा है इसी को आधार बनाकर यह पोस्टर लगाया गया है।पोस्टर को मोदी की भाजपा के कार्यालय के आस पास लगाया गया विधायक निवास दारूल शफा की दीवारों पर यह पोस्टर देखा गया यह विधायक निवास मोदी की भाजपा के कार्यालय के ठीक पीछे है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनावों से पहले ऐसा होता है क्योंकि यूपी की सियासत में एक ज़माने से जातिवाद ही हावी रहता आया है 1989 के बाद से ब्राह्मण समाज इधर-उधर भटक रहा है।2007 में बसपा के साथ चला गया था और बसपा की सरकार बन गई थी उसके बाद उसने अपने आपको बसपा से भी अलग कर लिया था तथा वह एकजुट होकर किसी के साथ नही गया था सपा की सरकार बन गई थी 2014 के आमचुनाव में साम्प्रदायिकता हावी हुई जिसके बाद ब्राह्मण मोदी की भाजपा के साथ चला गया जो अभी तक वही खड़ा है अब सवाल उठता है क्या ब्राह्मण मोदी की भाजपा से अलग होकर किसी अन्य सियासी दल को चुनेंगे और अगर यह सही हुआ तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा ? यूपी में ब्राह्मणों की संख्या कितनी है आँकड़ों के एतबार से 14% बताया जाता है क्या ब्राह्मणों के साथ अत्याचार हो रहा है ? क्या ब्राह्मणों का दमन हो रहा है ?

इस बार ब्राह्मण उत्पीडन का चेहरा बनकर सामने आया है अब यह बात निकल कर गाँवों की चौपालों पर और शहरों की बैठकों की चकल्लस का हिस्सा बन गई है कि क्या वास्तव में ब्राह्मणों का ठाकुरों की सरकार में दमन हो रहा है ? और अगर हो रहा है तो क्यों और कारण क्या है ? इस पर बहसों का दौर चल रहा है इसके नतीजे क्या होंगे बस इसपर नज़र दौड़ाई जा रही है जो ब्राह्मण समाज 2014 से लगातार मोदी की भाजपा में लामबंद होकर चला आ रहा हो उसको क्या दिक़्क़त हो गई जो नए सियासी आशियाना तलाश कर रहा है अब सवाल उठता है कि 14% ब्राह्मण समाज किसकी झोली भरेगा वोट से उसमें उसके पास चार ऑप्शन सामने नज़र आ रहे है।

 जो यह प्रयास कर रहे है कि ब्राह्मणों के वोटबैंक की पोटली उनके सियासी ख़ज़ाने में खुल जाए जैसे कांग्रेस पार्टी बहुत प्रयासरत है कि उसका वोटबैंक अपने पुराने सियासी आशियाना में आ जाए जिसके बाद यूपी में कांग्रेस का पिछले तीस सालों से चला आ रहा सियासी वनवास ख़त्म हो जाए और यह सही भी है कि ब्राह्मण समाज ने अगर कांग्रेस की तरफ़ रूख किया तो उसका यूपी में सियासी वनवास ख़त्म हो जाएगा क्योंकि उसके बाद मुसलमान भी आराम से अपने पुराने सियासी आशियाने कांग्रेस में पहुँच जाएगा अन्य जातियाँ भी कांग्रेस की तरफ़ रूख कर जाएगी उसका बहुत बड़ा कारण माना जाता है कि अगर ब्राह्मण किसी के साथ जाता है तो वह अकेला नही जाता साथ में अन्य जातियों को लेकर भी जाता है उसकी प्रतिशत सियासी जानकार तो दो गुणा मानते है उनका तर्क है। ब्राह्मण समाज की किसी से शहरों, नगरों व गाँवों में ज़्यादा बड़ी रंजिशें नही होती सबके साथ अच्छा व्यवहार रखता है इस लिए वह अपने साथ अन्य वोटबैंक को भी जोड़ लेता।

कांग्रेस का यही प्रयास है किसी तरह ब्राह्मण समाज अपने सियासी आशियाने में वापिस आ जाए।बसपा का भी यही प्रयास हो रहा है कि ब्राह्मण समाज 2007 की तरह उसके पाले में खड़ा हो जाए उसके लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ऐसा तानाबाना बुन रही है इसके लिए वह ब्राह्मणों के साथ हो रहे अत्याचारों का खुलकर विरोध भी कर रही है इसमें जान डालने के लिए उन्होंने बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चन्द मिश्रा को लगाया भी है पहले भी वही ब्राह्मणों को बसपा के साथ लाने में कामयाब रहे थे वह बसपा में अकेले ब्राह्मण नेता है जो बसपा के रणनीतिकारों में शामिल है।

वही सपा भी अपने पूरे प्रयास कर रही है कि ब्राह्मण समाज सपा को एक बार मौक़ा दे।सपा के ही एक नेता द्वारा राजधानी में पोस्टर लगा ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचारों को उठाने का प्रयास किया गया है इसके बाद एक बार फिर ब्राह्मणों पर चर्चा तेज हो गईं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी भी इस प्रयास में लग गईं है यहाँ पार्टी की कमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने संभाल रखी है उनका प्रयास है किसी तरह प्रदेश का यह 14% वोटबैंक उसको स्वीकार कर ले जिससे वह प्रदेश की सियासत में धमाकेदार एंट्री कर सभी सियासी दलों को चौंकाने में कामयाब हो सके क्योंकि उसके पास यूपी की सियासत में एंट्री करने के लिए कोई ठोंस वोटबैंक नही है ब्राह्मण समाज मोदी की भाजपा से नाराज़ है इसी का फ़ायदा उठाकर उसको आम आदमी पार्टी में लाया जा सकता है।अब यह तो हुए वह सियासी दल जो मोदी की भाजपा से चल रही उसकी नाराज़गी के चलते अपने-अपने पाले में लाना चाहते है। ब्राह्मण समाज किस दल को पसंद करेगा यह भी बड़ा सवाल है उसका सियासी पैमाना क्या रहेगा ? 

जिससे वह यह संदेश दे कि ब्राह्मणों की नाराज़गी मोदी की भाजपा को महँगी पड़ गईं ख़ाली वह नाराज़गी में ऐसे ही किसी दल का दामन नही पकड़ लेगा वह हर तरीक़े से गुणाभाग करेगा कौन दल है जिसके साथ जाने में उसे फ़ायदा होगा वह उसी दल का चयन करेगा ऐसा सियासी जानकारों का मानना है अगर उसका पैमाना मोदी की भाजपा को यह अहसास कराना रहा कि हमारी अन्देखी करना आपकी सियासी भूल थी। वोटबैंक के एतबार से बसपा सबसे मज़बूत मानी जाती है क्योंकि उसके पास ही सबसे बड़ा और टिकाऊ वोटबैंक मौजूद है उसके साथ जाकर वह मोदी की भाजपा को आसानी से सियासी पटकनी दे सकता है बसपा में जाकर वह एक बार यह प्रयोग कर भी चुका है। वहाँ जाने में उसे ज़्यादा सोचना नही पड़ेगा।

रही बात सपा की 2019 के आमचुनाव में जिस तरीक़े से उसके सहजातिये वोटबैंक यादवों ने धोखा दिया इतना अच्छा समीकरण छोड़कर मोदी की भाजपा में चले गए थे रही बात मुसलमान की वह भी इस बार सपा से छिटककर कांग्रेस की ओर जाने का मन बनाता दिखाई दे रहा है अगर उसने करवट ली तो सपा के लिए जितनी सीट अब फ़िलहाल है वह भी लानी मुश्किल हो जाएगी सपा का मौजूदा नेतृत्व मुसलमानों में ज़्यादा रूची भी नही रख रहा है जिसको मुसलमान समझ भी रहा है सपा सरकार के दौरान मुसलमानों के लिए कुछ नही किया गया सिर्फ़ बयानबाज़ी कर मोदी की भाजपा को मज़बूत किया गया करा कुछ नही यह सब समीकरण सपा के विपरीत जाते दिख रहे है हालाँकि सपा का नेतृत्व यह बात माने बैठा है कि मोदी की भाजपा के ख़िलाफ़ बन रहे माहौल का उसी को लाभ मिलेगा कुछ करे या न करे। ब्राह्मण समाज मोदी की भाजपा से अलग होने के बाद दो दलों में से एक के चयन करने के क़यास लगाए जा रहे है।

 सियासी जानकारों के मुताबिक़ वह पहले नंबर पर बसपा को पसंद करे क्योंकि उसकी साथ जाने के बाद आसानी से मोदी की भाजपा को पटकनी दे सकता है दूसरी उसकी पसंद कांग्रेस को माना जा रहा है क्योंकि उसकी वह पुरानी पार्टी है जहाँ उसको सियासी संतुष्टि मिलेंगी जहाँ जाने के बाद उसको बहुत दिनों तक सियासी आशियाना बदलने की ज़रूरत नही पड़ेगी। ब्राह्मणों को कांग्रेस के कलचर का मालूम है और कांग्रेस भी ब्राह्मणों की सियासी पसंद पहचानती है दोनों में संवाद बनने या बनाने में देर नही लगेगी हाँ यह ज़रूर है कि कांग्रेस में जाने के बाद ब्राह्मणों को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी जो वह रिस्क ले भी सकता है और नही भी।

कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि बसपा और कांग्रेस में से किसी एक दल का चयन कर सकता है ब्राह्मण समाज अब देखना है कि रिस्क वाला निर्णय लेगा या आसानी से मोदी की भाजपा को पटकनी देने वाला। वैसे देखा जाए तो जितना हो हल्ला ब्राह्मणों को लेकर विपक्षी दलों में हो रहा है उनको अपने-अपने पाले में लाने की होड़ मची है वैसी हलचल मोदी की भाजपा में देखने को नही मिल रही वह ख़ामोशी के साथ विपक्षी दलों की ब्राह्मणों को लेकर इस होड़ को देख रही है क्या ब्राह्मणों को लेकर छिड़ी इस सियासी जंग को अभी और लंबा चलने देना चाहती है या मोदी की भाजपा ने ब्राह्मणों को लेकर कोई रणनीति बना ली है और उसे अभी मैदान पर लाना नही चाहती। ख़ैर ब्राह्मणों पर हो रहे अत्याचारों के जो आरोप सरकार पर लग रहे है उसका सियासी लाभ किस दल को मिलता है या मिलेगा इस पर सियासी दलों के साथ-साथ सियासी जानकारों की नज़र बनी हुईं ब्राह्मण समाज जो फ़ैसला लेगा वह यूपी सियासत का रूख बदलने की ताक़त रखता है इसमें किसी को कोई संदेह नही है।

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