लोकसभा संग्राम 67– कुछ तो बात है जो हस्ती मिटती नही हमारी सदियों से दुश्मन है संघियों का एक झुंड हमारा, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने हिन्दुस्तान की अवाम के दिलों में अपनी जगह बनाई
केन्द्र सरकार ने अपने कार्यकाल में पहली बार ऐसी घटना के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई और खुद उसमें शामिल नही हुए जो मोदी के अंहकारी होने को साबित करता है
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। कुछ तो बात है जो मिटती नही हस्ती हमारी सदियों से दुश्मन है संघियों का एक झुंड हमारा।मोदी की भाजपा को सत्ता में आए पूरे पाँच साल होने जा रहे है नेहरू और गांधी परिवार को कोसते-कोसते कि उन्होने कुछ नही किया 65 साल में वो ये भूल जाते है कि आज जो भी कुछ हिन्दुस्तान में है उसमें नेहरू गांधी परिवार का बहुत योगदान है इसमें अगर किसी का नही है तो वो संघियों का जिन्होंने हिन्दुस्तान के निर्माण में कोई योगदान नही दिया हाँ बाधाएँ ज़रूर खड़ी की है चाहे आजादी की लडाई हो या उसके बाद आई उसकी सोच की सरकारों ने कोई ख़ास काम नही किया न अब मोदी सरकार कर रही है हाँ इनको बाँटना बहुत ख़ूब आता है यही सच है।
वैसे तो गांधी परिवार की हिन्दुस्तान की अवाम में अलग ही क़द्र है क्योंकि जिस तरह से गांधी परिवार ने देश के लिए क़ुर्बानियाँ दी है और इस देश का नवनिर्माण किया है सुई से लेकर परमाणु तक बनाने में सफलता प्राप्त की इसमें कोई शक नही है यही कारण है कि हिन्दुस्तान की अवाम गांधी परिवार को अपने प्यार से नवाज़ती आ रही है इतिहास यही बताता है लेकिन आजकल देश के सियासी हालात पर धर्म की आड़ लेकर सियासत करने वाले हावी हो चले थे परन्तु गांधी परिवार के चश्मों चिराग़ राहुल गांधी ने धर्म का चोला पहन कर सियासत करने वालों के बीच में रह कर ही अपनी जगह बनाई और कांग्रेस पार्टी को फिर खड़ा करने में सफल होते दिखाई दे रहे है।राहुल गांधी ने जब कांग्रेस की कमान सँभाली थी तो पार्टी बहुत बुरे दौर से गुज़र रही थी हर तरफ़ हार ही हार का सामना करना पड़ रहा था साम्प्रदायिक पार्टी एक के बाद एक राज्यों पर भगवा फहराती जा रही थी लेकिन राहुल गांधी ने हार नही मानी और लगे रहे अपनी और पार्टी की विचारधारा को समझाने में कि यह देश सबको साथ लेकर चलेगा न कि नफ़रतों की दीवार खड़ी करने से आख़िरकार राहुल गांधी की इसी सोच पर हिन्दी भाषी तीन राज्यों की जनता ने अपनी मोहर लगाई और कांग्रेस मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ व राजस्थान जीतने में कामयाब रही बस यही से साम्प्रदायिक पार्टी भाजपा के पतन की शुरूआत मानी जा रही है क्योंकि पन्द्रह-पन्द्रह साल से इन राज्यों पर स्वयंभू भगवा पार्टी कहने वाली भाजपा का राज था।
हालाँकि कांग्रेस को 2014 में देश की अवाम ने सबसे कम सीटें दी थी लेकिन राहुल गांधी ने उन्हीं कम सीटें के साथ सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाई जब लगा कि सरकार भ्रष्टाचार की दलदल में जाकर किसी को फ़ायदा पहुँचाने की कोशिश कर रही है तो वह मज़बूती के साथ अड़ गए कि यह नही होने देंगे जैसे राफ़ेल पर हुए भ्रष्टाचार पर जिस तरह अकेले ही अडे रहे और अब लगने भी लगा है कि राफ़ेल में ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ है क्योंकि जिस तरह से एक के बाद एक ख़ुलासे हो रहे कि किस तरह अपने मित्र उद्योगपति अनिल अंबानी को फ़ायदा पहुँचाया गया दॉ हिन्दु अख़बार ने कई ख़ुलासे किए जो इसी और इसारा कर रहे है कि देश का चौकीदार चोर है। ख़ैर ये तो जाँच का विषय है कि चौकीदार चोर है या नही परन्तु सरकार जाँच से भी भाग रही है न जेपीसी करने को तैयार न हो रहे ख़ुलासे पर सही बोलने को तैयार है झूट बोलने में माहिर एक के बाद एक झूट बोल रही है जो मोदी और सरकार को कटघरे में खड़ा करता है।लेकिन उसी राहुल गांधी ने जब सरकार के साथ खड़े होने की ज़रूरत महसूस की तो तनिक भी देर नही की जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकी घटना के बाद जिसमें हमारे पचास सैनिक शहीद हो गए थे इसके बाद राहुल गांधी ने दुनिया को और ख़ासकर आतंकवाद को पालने पोशने वाले पाकिस्तान को यह संदेश देने की कोशिश की कि हम देश की सेना और सरकार के साथ है सरकार कोई भी कड़ा फ़ैसला ले वो हर क़दम पर सरकार के साथ है।
आमतौर पर देखा जाता है था कि जब भी कोई देश में आतंकी घटना होती थी या है तो विपक्ष सरकार की आलोचना करता है था जैसे पूर्व में होता था मनमोहन सिंह सरकार के दौरान किसी संकट के चलते नरेन्द्र मोदी ख़ूब मज़ाक़ बनाया करते थे ऐसी ही संवेदनशील स्थिति में भी उन्होने देश के साथ खड़े होने के बजाय सरकार की आलोचना की थी लेकिन गांधी परिवार के चश्मों चिराग़ राहुल गांधी ने सबसे अलग शुरूआत करने की पहल की है यह करके उसने अपने व अपने परिवार के संस्कारी होने का भी सबूत दिया है।
यूपीए की चेयरमैन सोनिया गांधी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरीखे नेता इस संवेदनशील स्थिति में सरकार के साथ क़दम से क़दम मिलाए खड़े है। जो आज सरकार में है वह जब विपक्ष में हुआ करती थी तो आलोचनाओं के अलावा कुछ नही करती थी लेकिन जो आज विपक्ष में है वह सरकार की आलोचनाएँ भी करती है और जब साथ खड़े होने की ज़रूरत होती है तो साथ भी खड़ी होती है यह फ़र्क़ महसूस कराने में कामयाब रहे राहुल गांधी कि कांग्रेस और साम्प्रदायिक पार्टी भाजपा में क्या फ़र्क़ है।
केन्द्र सरकार ने अपने कार्यकाल में पहली बार ऐसी घटना के बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई और खुद उसमें शामिल नही हुए जो मोदी के अंहकारी होने को साबित करता है लेकिन राहुल गांधी के द्वारा लिए गए इस फ़ैसले की चारों ओर चर्चा है कि राहुल गांधी एक ज़िम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभा रहे है जिससे उन्होने देश की अवाम का दिल जीत लिया है इसे कहते है सियासत जो सबके दिलो पर राज करें।