अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष राज किशोर यादव समेत 7 लोगों पर धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज

इस रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एक बार फिर से अखिलेश यादव सरकार की मुश्किलें बढ़ जायेगी.

Update: 2019-04-30 02:07 GMT

लखनऊ : अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष राज किशोर यादव समेत 7 लोगों पर धोखाधड़ी की एफआईआर दर्ज की गई है। मानकों की अनदेखी कर लेखपालों की भर्ती का आरोप लगाया है. इसकी शासन स्तर पर जांच रिपोर्ट के बाद हजरतगंज कोतवाली में एफआईआर दर्ज की गई है। 2015- 16 में चकबंदी लेखपालों की भर्ती में गड़बड़ी का मामला समाने आया है, यह मामला अखिलेश यादव सरकार का है।

 सपा सरकार के दौरान चकबंदी लेखपालों की भर्ती में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई थी। उच्च स्तरीय जांच में विभागीय अफसरों के साथ ही उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग भी भर्तियों में गंभीर अनियमितताओं के लिए दोषी पाया गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष-सचिव के साथ ही संबंधित अफसरों के खिलाफ षड्यंत्र रचकर आपराधिक कृत्य करने के लिए रिपोर्ट दर्ज कराने के आदेश दिए हैैं। वर्तमान में कार्यरत सभी अफसरों को निलंबित कर उनके विरुद्ध अनुशासनिक कार्रवाई भी की जाएगी। जांच के दौरान भर्तियों में भ्रष्टाचार सामने आने पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी केस दर्ज होगा।

दरअसल, वर्ष 2015-16 में तत्कालीन अखिलेश सरकार के दौरान चकबंदी लेखपालों के रिक्त 2831 पदों को भरने का अधियाचन चकबंदी निदेशालय से उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन को भेजा गया। आयोग को 1901 सामान्य श्रेणी, अनुसूचित जाति (एससी) के 50, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 63, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के 769 अभ्यर्थियों का चयन करना था। राज किशोर यादव की अध्यक्षता वाले आयोग ने 2783 अभ्यर्थियों का चयन कर 12 सिंतबर 2016 को कवरिंग लेटर के साथ संबंधित सूची चकबंदी आयुक्त को भेज दी। गौर करने की बात यह है कि आयोग ने सामान्य वर्ग के 1901 के बजाय 920, एससी के 50 के स्थान पर 104, एसटी के 64 के स्थान पर 65 और ओबीसी के 769 पदों के अधियाचन पर 1694 अभ्यर्थियों के चयन की सूची उपलब्ध कराई। ओबीसी के कहीं अधिक चयनित 925 अभ्यर्थियों में ज्यादातर जाति विशेष के थे।

कृषि उत्पादन आयुक्त (एपीसी) डॉ. प्रभात कुमार द्वारा की गई उच्च स्तरीय जांच में खुलासा हुआ है कि कवरिंग लेटर में तो 48 पदों को छोड़ (47 विकलांग कोटे के व एक कोर्ट के आदेश पर) अधियाचन के मुताबिक चयन दिखाया गया लेकिन सूची में अलग। वैसे तो चकबंदी आयुक्त कार्यालय को इस पर आयोग से स्थिति स्पष्ट कराकर ही अभ्यर्थियों की नियुक्ति करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा न कर सभी की नियुक्त करते हुए जिलों में तैनाती भी दे दी गई।

ऐसे में आयोग और विभाग के अफसरों की मिलीभगत से हुई गड़बड़ी को छिपाने के लिए मौजूदा सरकार के दौरान 1364 और चकबंदी लेखपालों की भर्ती का अधियाचन 24 अगस्त 2018 को चकबंदी आयुक्त शारदा सिंह के हस्ताक्षर से आयोग को भेजा गया। इसमें 1001 सामान्य जबकि एससी के 363 पद ही दिखाए गए। जांच में सामने आया कि चकबंदी लेखपालों के 5376 स्वीकृत पदों में से ओबीसी के 1451 पदों के सापेक्ष 534 पद हैैं ज्यादा जबकि सामान्य के 2690 पदों के सापेक्ष 1002 रिक्त हैैं।

ऐसे में एपीसी की जांच रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री ने आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष व सचिव के अलावा अपर संचालक चकबंदी (प्रा.) सुरेश सिंह यादव, प्रशासनिक अधिकारी बिहारी लाल व अन्य संबंधित अफसरों के खिलाफ षड्यंत्र रचकर आपराधिक कृत्य करने पर आइपीसी की संगत धाराओं में एफआइआर दर्ज कराने और भ्रष्टाचार पाए जाने पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी कार्रवाई करने को मंजूरी दी है।

इसके साथ ही 1364 का अधियाचन भेजने की अनियमितता में लिप्त पाए जाने पर चकबंदी आयुक्त शारदा सिंह, संयुक्त संचालक चकबंदी रवीन्द्र कुमार दूबे, उप संचालक चकबंदी छोटे लाल मिश्र, वरिष्ठ सहायक शिव बहादुर यादव को निलंबित कर अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है प्रथम दृष्टया गड़बड़ी पाए जाने पर 1364 का अधियाचन पहले ही निरस्त कर सरकार चकबंदी आयुक्त शारदा सिंह और तत्कालीन अपर संचालक चकबंदी (प्रा.) सुरेश सिंह यादव को निलंबित कर चुकी है।


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