भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं उच्चतर व माध्यमिक शिक्षा आयोग -राष्ट्रीय लोक दल
बेरोज़गार त्रस्त सरकार मस्त है यह बात राष्ट्रीय लोक दल के नेता अनुपम मिश्रा ने कही
लखनऊ : टीम-आर.एल.डी के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम मिश्रा ने आज उत्तर प्रदेश सरकार की शिक्षा के प्रति रवैये को संवेदनहीन तथा ग़ैरज़िम्मेदारी भरा बताते हुए प्रदेश सरकार को रोज़गार विरोधी क़रार दिया।
उन्होंने कहा कि प्रदेश में एक हज़ार से अधिक असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया सरकार की लापरवाही व अपनों को रेवाड़ी बाँटने के कारण अधर में लटकी हुई है क्योंकि छह सदस्यीय उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग बिना अध्यक्ष के महज़ 2 सदस्यों के भरोसे ही चल रहा है जिस कारण लंबित असिस्टेंट प्रोफेसरों की भर्ती अब नहीं हो पाएगी क्योंकि आयोग में ना तो अध्यक्ष है और न ही कोरम पूरा करने लायक सदस्य संख्या।उन्होंने कहा कि कमोबेश ऐसा ही हाल माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का भी है जहाँ दस सदस्यीय आयोग में एक भी सदस्य नहीं है केवल एक अध्यक्ष है जिनका कार्यकाल भी कुछ ही दिनों का शेष है ऐसे में 4163 पदों पर टी.जी.टी.एवं पी.जी.टी. के पदों पर लंबित भरती कैसे होगी ?
अनुपम मिश्रा ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि इन दोनों आयोगों की स्थिति से यह स्वतः ही स्पष्ट है कि शिक्षा सरकार की प्राथमिकता सूची में किस स्थान पर है ।
यह आयोग भी अब तो सिर्फ़ नाम मात्र के रह गए हैं क्योंकि न तो समय से भर्ती होती है और न ही नियुक्तियां ।
समय पर नियुक्तियाँ न होने से एक ओर जहाँ बेरोज़गार अभ्यर्थियों का जीवन दाँव पर लगा है वहीं दूसरी ओर शिक्षकों के अभाव में विद्यार्थियों का जीवन अंधकारमय हैं ।अनुपम मिश्रा ने भाई भतीजावाद तथा अपने चहेतों को आयोग में नियुक्ति कराने वाली भ्रष्ट सरकारी तंत्र को इस अवस्था का ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जब आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल निश्चित है तो उनके कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व ही सभी नियुक्तियों की प्रक्रिया पूर्ण क्यों नहीं की जाती?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए अनुपम मिश्रा ने कहा कि आयोग में नियुक्तियों को लेकर इतना व्यापक भ्रष्टाचार फैल चुका है कि नियुक्तियाँ ही मुश्किल हो गई है।अनुपम मिश्र ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह करते हुए कहा है कि यदि हिंदू-मुसलमान मंदिर-मस्जिद और रामचरितमानस विवाद से फ़्री हो गए हों तो अब इस ओर भी ध्यान दे दें । क्योंकि महाविद्यालयों और अनुदान प्राप्त कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है जिसके चलते विद्यार्थियों का भविष्य संकट में है।