बिकरू कांड हो या अब ये संजीव यादव की घटना, एसएसपी साहब की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती सीएम की नजर में!
चंदन श्रीवास्तव एडवोकेट हाईकोर्ट लखनऊ
क्या आपने कभी सुना है कि सीजेएम या डिस्ट्रिक्ट जज की पोस्टिंग में पैसे चलते हों? या ऐसा सुना है कि ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट और जज के लिए कोई जिला कमाऊ माना जाता हो और वहां पोस्टिंग के लिए ज्यादा पैसे खिलाने पड़ते हों?
जाहिर है नहीं सुना। क्योंकि न्यायपालिका में ऐसा नहीं होता। जबकि शासन में सरकार जिसकी भी हो एसपी और डीएम की पोस्टिंग कैसे होती है, बताने की जरूरत नहीं। डीएम-एसपी ही क्यों लेखापाल-दरोगा यहां तक कि कौन से बॉर्डर वाली चौकी पर कितनी कमाई है, ये देखकर ही सिपाहियों तक की तैनाती होती है। बावजूद इसके न्यायपालिका को भ्रष्टाचारी बताने का आजकल फैशन चल रहा है।
यह ठीक वैसा ही लगता है जैसे देह व्यापार करने वाली कोई महिला पूरे समाज की महिलाओं को वैश्या सिद्ध करने के बहाने ढूंढ़ती है। सरकारी विभागों खास तौर पर पुलिस की नाकामी और अकर्मण्यता का ठीकरा न्यायपालिका पर फोड़ते मूर्खों को पढता हूं तो क्रोध भी आता है और चिन्ता भी होती है कि क्या हम इतने दयनीय हालत में हैं कि सरकार से सवाल करने के बजाय न्यायपालिका पर दोष मढ़कर सरकार का बचाव करते फिरें।
अभी कानपुर में एक और घटना घटी है। सन्जीत यादव नाम के व्यक्ति का अपहरण हुआ। फिरौती की मांग आई तो पुलिस ने, जी हां स्वयं पुलिस ने 30 लाख रुपये की फिरौती बदमाशों को दिला दिया। लेकिन न बदमाश पकड़े गए और न ही अपह्त की रिहाई हो सकी। आज अपह्त की लाश मिली है। हां लाश मिलने के बाद सम्बंधित एसओ को जरूर लाइन हाजिर कर दिया गया है। लेकिन एसएसपी साहब पर कोई कार्रवाई नहीं। क्योंकि बिकरू कांड हो या अब ये सन्जीत यादव की घटना, एसपी साहब की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती शासन की नजर में।
बहरहाल पुलिस और प्रशासन जैसा है वैसा है। इससे न्यायपालिका की तुलना ही बेमानी है। न्यायपालिका आज भी इस देश की सबसे पवित्र संस्था है। मैं नहीं कहता कि रत्ती भर भी 'आर्थिक भ्रष्टाचार' नहीं है, है लेकिन यकीन मानिये रत्ती भर ही है। मैं यह भी नहीं दावा कर रहा कि कोर्ट के सभी फैसले संतोषजनक ही होते हैं लेकिन वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़े हुए फैसले नहीं ही होते हैं।
और अन्त में एक बात ये जरूर कहूंगा कि न्यायपालिका पर हमला शासन में बैठे भ्रष्ट ब्यूरोक्रेट्स और भ्रष्ट सरकारों को रास आता है क्योंकि इससे उन पर किसी का ध्यान नहीं होता और वे जवाबदेही से भी पल्ला झाड़ लेते हैं।