लखनऊ. अक्सर राजनैतिक पार्टियों के दफ्तरों की भीड़भाड़ से पता चल जाता है कि किस पार्टी में कितनी हलचल है. कांग्रेस कार्यकर्तायों के साथ-साथ जनता में भी गहमा-गहमी कायम करने में तो कामयाब दिख रही है. पहले किसानों फिर प्रवासियों और इन दिनों डीजल-पेट्रोल की कीमतों को लेकर पार्टी हर दिन सड़क पर कुछ न कुछ कर रही है. ऊपर से प्रियंका गांधी की सरकार से टकराहट भी खूब सुर्खियां बटोर रही है.
कोरोना महामारी के बीच अगर राजनैतिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो वर्चुअल रैलियों के माध्यम से जनता के बीच बीजेपी की ही पकड़ है. अगर विपक्ष की बात करें तो प्रमुख दल सपा, बसपा और कांग्रेस ट्विटर तक ही सिमित हैं. इन सब के बीच कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव सपा और बसपा की तुलना में ज्यादा सक्रिय नजर आ रही है. ट्विटर के अलावा उन्होंने कार्यकर्ताओं को लॉकडाउन के बावजूद सड़कों पर उतार दिया है. कोरोना महामारी से लेकर, कानपुर शेल्टर होम, कानून व्यवस्था, कर्मचारियों के भत्तों में कटौती, हर मुद्दों को उन्होंने न सिर्फ सपा-बसपा से पहले उठाया, बल्कि अब पेट्रोल व डीजल की कीमतों में वृद्धि को लेकर सड़क तक संग्राम छेड़ दिया है. धारा 144 के बावजूद कांग्रेसी सड़कों पर है और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
पिछले तीन-चार महीने में कांग्रेस ने चर्चा बटोरने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है, लेकिन क्या इसका फायदा उसे चुनावों में भी मिलेगा? या कांग्रेस के इस हो-हल्ला के बीच भी मुख्य विपक्ष दल की भूमिका में सपा और बसपा ही नजर आएंगे. ये वे सवाल हैं जो 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले यूपी की राजनीति चर्चा का विषय है.
अखिलेश संगठन की मजबूती में जुटे
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने बताया कि अपना स्पेस बनाने के लिए कांग्रेस तो बहुत कुछ कर रही है. धरना-प्रदर्शन के साथ-साथ सोशल मीडिया के जरिये भी दूसरी पार्टियों के मुकाबले ये काम ज्यादा किया जा रहा है. मायावती बिल्कुल खामोश है. उनके जो ट्वीट भी आ रहे हैं उसके जरिये वो सरकार की बजाय कांग्रेस पर ही अटैक ज्यादा कर रही हैं. उनका जो भी मोटिव हो. सपा से जो खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक ये लग रहा है कि अखिलेश यादव इस समय संगठन की मजबूती पर ज्यादा काम कर रहे हैं. ये भी संभव है कि सपा ये वेट कर रही हो कि बिहार और बंगाल के चुनावी नतीजे क्या रहते हैं.
क्या प्रियंका गांधी को योगी सरकार ज्यादा रिस्पांड कर रही है? इस सवाल के जवाब में रामदत्त त्रिपाठी ने कहा कि प्रियंका गांधी डायरेक्ट सरकार को या सीएम को अटैक कर रहीं हैं, जबकि अखिलेश और मायावती सरकार पर डायरेक्ट अटैक से बच रहे हैं. इसलिए कांग्रेस सपा-बसपा से ज्यादा भिड़ती हुई नजर आ रही है.
क्या कांग्रेस को इसका लाभ चुनावों में मिलेगा?
इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि ये कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी. अब वो समय नहीं है जब सिद्धांतों और विचारधारा का संगठन के निचले स्तर तक पहुंच हो. वोट के लिए अब तात्कालिक और इमोशनल मुद्दे बहुत अहम हो गए हैं. दूसरा ये कि कांग्रेस में अंदरूनी खींचतान अभी भी बरकरार है. साथ ही ये भी कि कांग्रेस का कोई सोशल बेस आईडेंटिफाय नहीं है, जैसा कि सपा और बसपा का है. जैसे कि सपा से यादव व मुस्लिम और बसपा से दलित.
उधर प्रयागराज के गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक संस्थान के निदेशक बद्रीनारायण ने भी ये बात दोहराई कि अखिलेश यादव का इन दिनों ज्यादा फोकस संगठन की मजबूती पर है. वैसे तो तीनों ही विपक्षी पार्टियां अपने-अपने तरीके से लगी हैं, लेकिन ये जरूर है कि मीडिया और रिप्रजेंटेशन की भूमिका में प्रियंका गांधी और कांग्रेस इन दिनों ज्यादा डोमिनेंट है. तीनों ही पार्टियों के बेस तो हैं न. समाजवादी पार्टी संगठन के लेवल पर जबकि कांग्रेस सोशल मीडिया और मुद्दों को उठाकर अपनी तरफ से काफी कोशिश कर रही है. कांग्रेस नंबर थ्री थी अब वो नंबर वन होना चाहती है. लेकिन प्रॉब्लम ये है कि पार्टी का संगठन बहुत वीक है. संगठन की कमजोरी के चलते पार्टी जो मुद्दे उठा रही है उसका उसको कितना फायदा मिलेगा ये कहना मुश्किल है. हां यदि सपा मुद्दों को उठाना शुरू करे तो वो ज्यादा मजबूत विपक्ष के तौर पर उभर सकती है. बसपा दोनों ही मोर्चों पर चुप्पी साधे है. प्रियंका गांधी को प्रदेश की योगी सरकार भी ज्यादा रिस्पांड कर रही है. उनके उठाये सवालों पर एक्शन भी हो रहा है और उन्हें राजनीतिक लाभ लेने से रोका भी जा रहा है. हालांकि कांग्रेस के नए पदाधिकारियों ने एक डेडिकेटेड टीम बनाई है, लेकिन इसका कितना फायदा मिलेगा ये इसपर निर्भर है कि संगठन कितना मजबूत हो पाता है.