उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर चुनाव प्रचार थम गया है. अब पहले चरण का मतदान 11 अप्रैल को होगा. प्रशासन पूरी तरह से तैयार है. उधर युवा और किसान और समान्य मतदाता भी अपना मन बना चूका है की उसको किसको वोट करना है. बस अब इंतजार है आने वाले गुरुवार का जब लोग अपनी सत्ता और विपक्ष से नारजगी व्यक्त कर सकें.
सहारनपुर
सबसे पहले सूबे की एक नंबर पर अंकित लोकसभा सीट पर बात करते है. यहाँ बीजेपी से मौजूदा सांसद राघव लखनपाल उम्मीदवार है. कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार भी वही पुराना रखा है।. यानी बोटी बोटी काटने वाले इमरान मसूद. महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में बसपा के हाजी फजर्लुररहमान है। बीजेपी जहाँ दोनों मुस्लिम उम्मीदवार होने के चलते वोटों के विखराव के कारण जीत की उम्मीद लगाये हुई है. जबकि कांग्रेस और बसपा उम्मीदवार भी अपनी जीत तय मान कर चल रही है।लेकिन मुकाबला बहुत ही मस्त और त्रिकोणीय है बीजेपी की हालत भी ज्यादा अच्छी नही है।
लोकसभा चुनाव 2019 में सहारनपुर में इस बार त्रिकोणीय लड़ाई है। 2014 के चुनाव में मोदी की लहर में निकटतम विरोधी कांग्रेस के इमरान मसूद को 65 हजार से हराने वाले भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा का भाग्य कांग्रेस प्रत्याशी इमरान को मिलने वाले मतों पर निर्भर है। गठबंधन प्रत्याशी के रूप में बसपा के फजलुर्रहमान अली की भाजपा से सीधी टक्कर मानी जा रही है।
असमंजस है तो एक कि मुस्लिम मतों का बंटवारा कितना होगा। गठबंधन ने भी अपनी पहली रैली सहारनपुर के ही विश्वविख्यात देवबंद से की है। इमरान के कांग्रेस के प्रत्याशी के मैदान में आने से भाजपा की जीत की राह आसान लगती है बशर्ते इमरान पुराना जादू दिखा सकें। 2014 के चुनाव में भाजपा के राघव लखनपाल को 472,999 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के इमरान मसूद को 407,909 और बसपा के जगदीश सिंह राणा को 235,033 वोट मिले थे।
कैराना
कैराना लोकसभा सीट पर सपा उम्मीदवार और मौजूदा सांसद तबस्सुम हसन एक बार फिर सब पर भारी नजर आ रही है। यहाँ कांग्रेस की उम्मीदवार हरेंद्र मालिक का अपना सजातीय वोटरों में अच्चा असर है जिसके चलते बीजेपी उम्मीदवार विधायक प्रदीप त्रिकोणीय मुकाबला मानकर अपनी सीट सुरक्षित मानकर चल रहे है जबकि इस सीट पर महागठबंधन उम्मीदवार सब पर भारी नजर आ रहा है।
पलायन को लेकर सुर्खिया में रहे कैराना लोकसभा सीट है, जहां से 2018 में गठबंधन का सपना पलना शुरू हुआ था। 2018 में हुकुम सिंह के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुआ। भाजपा ने सहानुभूति वोट पाने के लिए स्व. हुकूम सिंह की पुत्री मृगांका सिंह को मैदान में उतारा था। दूसरी ओर दबंग राजनेता के रूप में जाने जाने वाले स्व. मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन को अघोषित गठबंधन ने उम्मीदवार बनाया।
कैराना गठबंधन की प्रयोगशाला बनी अन्य राजनीतिक दलों ने रालोद के सिंबल पर चुनाव लड़ रही तबस्सुम को समर्थन दे दिया और वे जीत गईं। 2019 में कांग्रेस ने यहां से लोकप्रिय नेता हरेन्द्र मलिक को उतारा है। 2018 के उपचुनाव में जीत का अंतर मात्र 44 हजार था। अगर मलिक इतने या इससे ज्यादा वोट ले जाते हैं तो क्या होगा? वहीं, भगवा खेमे की परेशानी है कि इस बार उनका उम्मीदवार कैराना का नहीं, सहारनपुर के नकुड़ का रहने वाला है। 2014 के चुनाव में भाजपा के हुकुम सिंह को 565,909 वोट मिले। वहीं सपा के नाहिद हसन को 329,081 वोट और बसपा के कंवर हसन 160,414 वोट मिले थे।
मुजफ्फरनगर
इस लोकसभा सीट पर लोकदल के अजीत सिंह का मुकाबला बीजेपी सांसद संजीब बालियान से सीधा सीधा है पहली बार कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारकर मुस्लिम मतों में विखराव रोक दिया है. कुछ लोंगों का मानना है कि दोनों में कड़ी टक्कर है लेकिन अजीत सिंह का पलड़ा भारी है।
2013 में हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद भाजपा ने मुजफ्फरनगर मॉड्यूल को अपनाकर 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश पश्चिम की सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया था। अप्रैल 2019 में हवा कुछ बदली सी है। एनडीए सरकार में मंत्री रहे डॉ. संजीव बालियान को जाटों के सबसे बड़े नेता के रूप में जाने जाने वाले चौधरी चरण सिंह के पुत्र चौधरी अजित सिंह से मुकाबला करना पड़ रहा है। संजीव बालियान के पास पिछड़ी जातियों, सवर्णों के साथ-साथ जाट वोटों की भी ताकत है। दूसरी ओर चौधरी अजित सिंह के पास गठबंधन की ताकत है।
दोनों ही ओर से जाट प्रत्याशी होने के कारण जाट बिरादरी दुविधा में है। यहां दोनों ही पक्षों के परंपरागत वोटर खुलकर बोल रहे थे। दंगा प्रभावित क्षेत्रों में जिससे भी पूछो वो यही कहता मिला कि पूरा भाईचारा है, कोई तनाव नहीं। इसके बाद भी किसको वोट देना है का जवाब सीधा मिलता रहा। पूरे इलाके में आपे घुमेंगे तो आपको यही लगेगा कि टक्कर जोरदार है और यहां कुछ भी हो सकता है। 2014 में भाजपा के संजीव बालियान को 653391 वोट मिले थे, वहीं बसपा के कादिर राना को 252241 और सपा के वीरेंद्र सिंह को 160810 वोट मिले।
बिजनौर
इस लोकसभा सीट पर बीजेपी अपने लिए कांग्रेस उम्मीदवार नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लेकर खुश नजर आ रही है। तो बसपा उम्मीदवार मलूक नागर अपनी जीत को लकर पूरी तरह आशस्वत नजर आ रहे है तो कांग्रेस के उम्मीदवार लड़ाई को त्रिकोनीय बनाने की पूरी कोशिश कर रहे है। जबकि बीजेपी के भारतेंदु सिंह अपनी जीत को लेकर संसय में बने हुए है। जिस तरह से उनके पास खबरें आ रही है।
महाभारतकाल की यादें संजोये बिजनौर लोकसभा सीट मायावती और मीरा कुमार जैसी बड़ी हस्तियों के यहां से चुनाव लड़ने के कारण चर्चाओं में रहती आई है। भाजपा के कब्जे वाली इस सीट पर इस बार चुनाव रोचक होने जा रहा है। भाजपा और गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत-हार कांग्रेस के उम्मीदवार नसीमुद्दीन सिद्दीकी तय करेंगे।
2014 में भाजपा के कुंवर भारतेन्दु सिंह निकटतम प्रतिद्वंदी से दो लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते थे। पर इस बार दृश्य बदला हुआ है। बसपा के मलूक नागर को गठबंधन की ताकत मिल गई है। 2014 के मतों की सम्मिलित ताकत देखी जाए तो मलूक नागर की राह आसान लगती है। हालांकि हकीकत ऐसी नहीं है। भीतरघात के साथ ही कभी बसपा सुप्रीमो मायावती के सबसे बड़े सिपहसलार रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी के मैदान में आने से उनकी कठिनाइयां बढ़ गई हैं। मैदान में एक ही मुस्लिम प्रत्याशी वो भी ऐसा इलाका जहां पर 43%मुस्लिम मतदाता हों तो नागर की पेशानी पर चिंता की लकीरें आना स्वभाविक ही है। 2014 के चुनाव में भाजपा के कुंवर भारतेंद्र सिंह को 486913 वोट मिले थे। वहीं सपा के शाहनवाज राना को 281136 वोट और बसपा के मलूक नागर को 230124 वोट मिले थे।
मेरठ
मेरठ से मिली जानकारी के मुताबिक इस बार महागठबंधन का उम्मीदवार बीजेपी पर भारी पड़ता नजर आ रहा है. बीजेपी सांसद बसपा उम्मीदवार से इसलिए भी कमजोर हो सकते है उनके सजातीय पर कांग्रेस ने दांव लगाकर उनके समाने विकराल समस्या खड़ी कर दी है। यहाँ लड़ाई कांटे की टक्कर में फंसी हुई है।
सांसद राजेंद्र अगवाल की अपनी उपलब्धियां चाहे जो हों, वे रैपिड रेल, मेट्रो को अपना ही काम बताते हैं। शहर के लोगो से मिलते-जुलते भी रहे हैं पर अपनी बिरादरी के कांग्रेस प्रत्याशी हरेन्द्र अग्रवाल के चलते चुनौती बढ़ गई है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबू बनारसी दास के पुत्र हरेंद्र निजी संबंधों के साथ ही गंभीर छवि भी रखते हैं। गठबंधन की ताकत के सहारे इस बार मैदान में उतरे मीट कारोबारी याकूब कुरैशी की सबसे बड़ी ताकत एक ही मुस्लिम प्रत्याशी का चुनाव मैदान में उतरना है। जातीय गणित की बात करें तो इस बार गठबंधन प्रत्याशी की ताकत बढ़ी है। ऐसे में 11 अप्रैल को मतदान केन्द्रों पर इलाकेवार लगने वाली लाइनें रुख जाहिर करेंगी।
बागपत
बागपत लोकसभा क्षेत्र बीजेपी के सांसद और मौजूदा केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह की सीधी टक्कर रालोद के जयंत चौधरी से है. यहाँ की जमीनी आंकड़े के मुताबिक तो हवा जयंत के पक्ष में है लकिन मुकाबला आमने सामने का होने से लड़ाई बनी हुई है.
गाजियाबाद
दिल्ली एनसीआर की नजर से गाजियाबाद सीट महत्वपूर्ण मानी जाती है। भाजपा ने लगातार दूसरी बार निवर्तमान सांसद वीके सिंह को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर युवा महिला चेहरा डॉली शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, सपा-बसपा-रालोद गठबंधन से पूर्व विधायक सुरेश बंसल ताल ठोंक रहे हैं। पहले सपा ने सुरेंद्र कुमार मुन्नी को प्रत्याशी के रूप में उतारा था। वीके सिंह ने 2014 में पांच लाख अधिक रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल की थी। उनके सामने एक बार फिर इस सीट से इतिहास दोहराने की चुनौती होगी।
बीजेपी इस सीट पर अपनी जीत को लेकर सौ प्रतिशत उम्मीद लगाकर बैठी है. जबकि महागठबंधन के उम्मीदवार भी अपनी जीत मानकर चल रहे है।उनके साथ अगर सजातीय वोट चला जाता है तो उनके लिए एक बहुत बड़ा समर्थन होगा और जीत की उम्मीद उनको भी नजर आएगी। जबकि कांग्रेस की युवा उम्मीदवार इस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटी रही है लेकिन जनता उनको कितना वोट करती है इस पर अभी सवाल बना हुआ है।
गौतमबुद्ध नगर
इस सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद और मंत्री महेश शर्मा पर दांव लगाया। जबकि बसपा ने यहाँ पर सतवीर नागर पर दांव लगाया है. इस सीट पर महेश शर्मा की सीधी सीधी लड़ाई सतवीर नागर से है. कांग्रेस ने इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद सिंह को बनाया। इस सीट पर बसपा का उम्मीदवार काफी भारी नजर आ रहा है।
उत्तर प्रदेश की गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट प्रदेश की वीआईपी सीटों में से एक है। गौतमबुद्ध नगर सीट से भाजपा ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा पर दांव लगाया है। वहीं, गठबंधन से बसपा के सतवीर नागर मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस ने अरविंद कुमार सिंह को उतारा है। त्रिकोणीय मुकाबले में इस बार भाजपा के महेश शर्मा के सामने पिछले चुनाव में मिली रिकॉर्ड जीत को बरकरार रखने की चुनौती होगी। जहां शहरी क्षेत्रों में महेश शर्मा की पकड़ है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में गठबंधन के प्रत्याशी सतवीर नागर की पकड़ है।
इन आठ सीटों में पांच सीटों में महागठबंधन आगे और बीजेपी से तीन सीटों पर बड़ी लड़ाई होगी. इस बात से अब पर्दा तो आने वाली तेईस तारीख को ही हटेगा. तब सब हर जीत का पता चलेगा.