शिक्षा मित्र वेतन को लेकर गंभीर, बीस वर्ष सेवा करने के बाद परिवार चलाने में नाकाम
उत्तर प्रदेश में शिक्षा मित्र प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाता है। पूरे प्रदेश में इनकी संख्या डेढ़ लाख है। यानी अगर सरकार इनको मानदेय भी ठीक देने लगे तो शिक्षा विभाग और ऊंचाइयों पर लाया जा सकता है लेकिन शिक्षा मित्र को धन का रोना रोकर बताया जाता है कि हम वेतन देने में असमर्थ है। जबकि अभी बीते एक दिन पहले पीडब्ल्यूडी विभाग 9 हजार करोड़ रुपये खर्च ही नहीं कर सका और वो पैसा सरकार के पास वापस आ गया तो पैसा का रोना बेकार है। हाँ सरकार जिस दिन मन बनाएगी उसी दिन शिक्षा मित्र का भला हो जाएगा।
अब शिक्षा मित्र विचलित हो रहा है चूंकि अब उम्र बढ़ती जा रही है बच्चे शादी योग्य हो रहे है। दस हजार के वेतन में परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है जबकि बेसिक शिक्षा मंत्री अभी मार्च में हुए विधानसभा सत्र में इनको शिक्षक में गईं चुके है। शिक्षा मंत्री ने वकायदा जबाब भी दिया है कि कितने पद रिक्त है तो फिर शिक्षा मित्रों के जरिए वो पद भरने में देरी क्यों?
बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा था
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चल रहे मानसून सत्र में समाजवादी पार्टी (सपा) के एक विधायक द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में बेसिक शिक्षा प्रभारी सिंह ने कहा कि 69000 सहायक शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया के तहत एक अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2022 तक 20 माह में विभिन्न जिलों में पदस्थापन कुल 6696 अभ्यर्थियों का चयन किया गया है।
सिंह ने कहा, "वर्तमान में बेसिक शिक्षा विभाग दो भर्ती अभियान चला रहा है। हालांकि भर्ती अभियान प्रभावित हैं क्योंकि इसके खिलाफ मामले अदालतों में लंबित हैं। हम अदालतों के आदेशों के अनुसार भर्ती अभियान के साथ आगे बढ़ेंगे। इसलिए, वर्तमान में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण उम्मीदवारों के लिए नए पदों के निर्माण और शिक्षक भर्ती परीक्षा के संचालन के संबंध में कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।"
इस बीच एक प्रश्न के उत्तर में कक्षा 11वीं और 12वीं जिसका प्रबंधन उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा विभाग की शिक्षा मंत्री गुलाब देवी ने बताया कि लेक्चरार और हेड मास्टर के 33,000 पद खाली पड़े हैं। इनमें से 2, 373 सरकारी और 4,512 गैर सरकारी, सहायता प्राप्त स्कूलों के हैं।
मंत्री ने राज्य विधान सभा में सूचित किया कि शिक्षकों के रिक्त पदों की सूचना उत्तर प्रदेश, माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड (यूपीएसईएसएसबी), प्रयागराज को दे दी गई है। उन्होंने कहा कि यूपीएसईएसएसबी से उम्मीदवारों की सूची मिलने पर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करेगा।
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने कहा
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (आरएसएम) के राष्ट्रीय प्रवक्ता वीरेंदर मिश्रा ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर सदन के पटल पर झूठ बोलने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "सरकार शिक्षा मित्र (तदर्थ शिक्षक) और अनुदेशक (प्रशिक्षक) शिक्षक नहीं मानती है, लेकिन जब शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के मानदंडों के अनुसार उपलब्ध शिक्षकों का आंकड़ा दिखाने की बात आती है, तो सरकार उन पर विचार करती है। और दावा करती है कि उनके पास पर्याप्त संख्या में शिक्षक हैं।" दूसरी तरफ वही शिक्षा मंत्री विधान सभा में ही कहते हैं कि सरकारी प्राइमरी और अपर-प्राइमरी स्कूलों में सहायक शिक्षकों के 51,112 के पद खाली हैं। मिश्र ने बताया, "इस बीच सरकार के माध्यमिक स्कूलों और गैर-सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के लेक्चरार और हेडमास्टर के 33,000 पद खाली पड़े हैं।"
शिक्षकों की इस भारी कमी ने उपलब्ध शिक्षकों को ही अंग्रेजी से लेकर गणित और विज्ञान से लेकर सामाजिक अध्ययन तक सभी विषयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर कर दिया है। वे मिड-डे मील की तैयारियों की निगरानी भी करते हैं और इन छात्र-छात्राओं को मुफ्त स्कूल यूनिफॉर्म, किताबें, जूते और मोजे के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण किया जाता है उनके माता-पिता के बैंक खातों में धन के हस्तांतरण पर भी नजर रखते हैं। स्टाफ की कमी के कारण इन शिक्षकों को घर का सर्वे भी करना पड़ता है। नि: शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 (आरटीई अधिनियम), प्राथमिक विद्यालयों में 30:1 और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 35:1 के छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) को अनिवार्य करता है।
शिक्षकों की भारी कमी की ओर संकेत करते हुए वे कहते हैं, "प्राइमरी स्कूल में 30 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए और अपर प्राइमरी में 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए। राज्य द्वारा संचालित स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक 1.92 करोड़ छात्र नामांकित हैं। इसके अनुसार, शिक्षकों के एक लाख से ज्यादा पद खाली होने चाहिए, लेकिन सरकार ने केवल 51,112 पदों को ही खाली माना है, इसलिए बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पा रही है।''
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ का दावा है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5,000 -7,000 सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूल या तो बंद हो चुके हैं या उनमें सिर्फ एक टीचर हैं।
मिश्र प्रश्न करते हैं, "जो स्कूल शिक्षकों की कमी के कारण बंद हो गए या जिनमें सिर्फ एक शिक्षक हैं वहां क्या शिक्षा दी जा रही होगी? सरकार यह विधान सभा में क्यों नहीं बताती?" उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा मित्र संघ के अध्यक्ष शिव कुमार शुक्ल ने न्यूज़क्लिक को बताया, "सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने में देरी से उपलब्ध शिक्षकों पर भारी बोझ पड़ रहा है। दूसरी ओर, नामांकित छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त नहीं हो रही है। रिक्त शिक्षकों के पदों को भरना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।" प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा में शिक्षकों की कमी ने शिक्षा क्षेत्र को बुरी तरह पंगु बना दिया है।