उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र 9 अक्टूबर को लखनऊ में भरेंगे हुंकार, योगी सरकार से करेंगे समस्याओं के समाधान की मांग। उत्तर प्रदेश के तकरीबन 1.5 लाख शिक्षामित्र प्रदेश सरकार के अपने प्रति रवैये से खफा हैं। उनका आरोप है कि पिछले 6 सालों से योगी सरकार ने उनकी समस्याओं को लगातार नज़रअंदाज किया है। शिक्षामित्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनके साथ वादाखिलाफी की है।
आइए संक्षेप में जानते हैं पूरा मामला ---
2017 यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शिक्षामित्रों की समस्याओं के समाधान के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे। पार्टी की ओर से जारी संकल्प पत्र (घोषणा पत्र) में सरकार बनने के तीन महीने के भीतर इनके समस्याओं के समाधान की बात कही थी।
2017 में भाजपा व्यापक जनसमर्थन के साथ सत्ता में आई जिससे शिक्षामित्रों के बीच सुनहरे भविष्य की अलख जगी।
भाजपा के सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद माननीय सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षामित्रों के सहायक अध्यापक पद पर समायोजन को खामियों के चलते निरस्त कर दिया। आपको बता दें 2012-2017 के बीच समाजवादी पार्टी की सरकार ने शिक्षामित्रों के समायोजन की प्रक्रिया शुरू की थी। समायोजन रद्द होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षामित्रों का मानदेय ₹3,500 से बढ़ाकर ₹10,000, हलांकि समाजवादी पार्टी की सरकार ने पहले ही इसकी बुनियाद रख दी थी। यानी जिन शिक्षामित्रों का किन्हीं कारणों से समायोजन नहीं हो पाया था उनका मानदेय अस्थायी रूप से ₹10, 000 करने की बात कही गई थी।
शिक्षामित्रों का कहना है कि ₹10,000 के अल्प मानदेय में गुजारा नहीं हो पा रहा। दो जून की रोटी भी मुश्किल हो जाती है। अब शिक्षामित्र अपनी इन्हीं समस्याओं को लेकर 9 अक्टूबर को लखनऊ से हुंकार भरेंगे और योगी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करेंगे।