उत्तर प्रदेश में हाथरस केस के बाद यूपी की आईपीएस एसोसिएशन और युवा आईपीएस अधिकारीयों में अब रोष नजर आ रहा है. हालांकि यह रोष पहली बार नहीं है इससे पहले भी गुस्सा आया है एल्किन उभरा नहीं इस बार उभर कर सामने आ रहा है.
युवा आईपीएस का मानना है कि जिलों में अधिकतर घटनाओं पर निर्णय जिलाधिकारी लेते है लेकिन जब गाज हमेशा एसपी / एसएसपी पर गिराई जाती है. क्या आईपीएस अधिकारी ही सबसे ज्यादा दोषी होता है. अगर बात हाथरस की घटना की जाय तो इसमें सबसे बड़ी गलती डीएम की मानी जा रही है , एसपी का काम केवल कानून व्यवस्था को संभालना होता है. जो बखूबी संभाली गई है. लेकिन गाज पुलिस कर्मियों पर गिरी और आईपीएस अधिकारी सस्पेंड हुए.
मालूम हो कि यूपी सरकार ने अब तक १५ आईपीएस अधिकारी सस्पेंड किये है. जबकि आईएएस अधिकारी इतने सस्पेंड नहीं हुए है. इससे आईपीएस संवर्ग में नारजगी जाहिर होने स्वाभाविक है. किसी भी जनपद में जब कानून व्यवस्था गडबड होती है तो एसपी या एसएसपी की जिम्मेदारी बनती है लेकिन जहां किसी भी बात की जिम्मेदारी कप्तान की न हो वहां दोनों का निलंबन होना चाहिए. जबकि सरकारें आईपीएस अधिकारीयों का निलंबन करके अपनी जान छुड़ा लेती है.
वहीं हाथरस पीड़िता के शव का बिना परिवार की अनुमति के अंतिम संस्कार करने के सवाल पर यूपी DGP एच.सी. अवस्थी ने कहा 'इसके बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता. ये स्थानीय स्तर के निर्णय हैं'. इस निर्णय को भी जिलाधिकारी ने लिया होगा . लेकिन जिम्मेदार कौन है?
बता दें कि पुलिस का लचीला रवैया रिपोर्ट दर्ज करना तो रहा होगा लेकिन अस्पताल भेजने के बाद फालोअप जिलाधिकारी के द्वारा किया जा रहा होगा. पीडिता के शव के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ उसके बाद हालत बिगड़े है तो फिर डीएम पर सरकार आब तक मेहरवान क्यों है?