मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर विशेष: यूँ हीं नहीं कहते है धरती पुत्र!
धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन आज, नहीं जानते होंगे आप ये बड़ी बातें!
समाजवादी पार्टी (सपा) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने अपना जन्मदिन 81 किलोग्राम वजन के एक लड्डू को काटकर मनाया। उनके पुत्र और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ सपा के कई बड़े नेता भी उपस्थित थे। दरअसल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने हाल ही में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से हाथ मिलाने के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा था, 'हम चाहते हैं नेता जी के जन्मदिन (22 नवंबर) पर परिवार में एकता बढ़ जाए तो अच्छा है। हमारा प्रयास है भतीजा समझ लेगा तो सरकार बना लेगा, मुख्यमंत्री हमें तो बनना नहीं है'।
परिचय:- धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवम्बर, 1939, इटावा, उत्तर प्रदेश में हुआ था । वह एक प्रसिद्ध राजनेता और उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं। वे एक किसान नेता और जनता के बीच 'नेताजी' तथा 'धरतीपुत्र' के नाम से भी जाने जाते हैं। मुलायम सिंह तीन बार, 1989 से 1991 तक, 1993 से 1995 तक और 2003 से 2007 तक, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की गरिमा बढ़ा चुके हैं। वे केंन्द्र सरकार में एक बार रक्षामंत्री के पद को भी सुशोभित कर चुके हैं। भारत की 'समाजवादी पार्टी' के वे संस्थापक अध्यक्ष हैं। मुलायम सिंह यादव के विषय में चौधरी चरण सिंह कहते थे- 'यह छोटे कद का बड़ा नेता है'। कालांतर में उसी छोटे कद के बड़े नेता ने चौधरी चरण सिंह की पूरी राजनीतिक विरासत पर कब्जा कर लिया और उनके बेटे अजित सिंहको सियासत के हाशिये पर पहुँचा दिया।
नवम्बर, 1939 को इटावा ज़िला, सैफई गाँव के एक किसान परिवार में मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम 'मूर्ति देवी' व पिता 'सुधर सिंह' थे। मुलायम सिंह अपने पाँच भाई-बहनों में रतन सिंह से छोटे व अभयराम सिंह, शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल सिंह यादव और कमला देवी से बड़े हैं। मुलायम सिंह के पिता उन्हें पहलवान बनाना चाहते थे। राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह ने आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर (एम.ए.) और जैन इन्टर कालेज, करहल (मैनपुरी) से बी. टी. कि डिग्री प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ दिनों तक इन्टर कॉलेज में अध्यापन कार्य भी किया।मुलायम सिंह जी का प्रथम विवाह मालती देवी के साथ हुआ था। उनके पुत्र अखिलेश यादव का जन्म इन्हीं के गर्भ से 1 जुलाई, 1973 को हुआ। लेकिन अखिलेश यादव के बाल्यकाल में ही मालती देवी का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद मुलायम सिंह यादव का दूसरा विवाह साधना गुप्ता के साथ सम्पन्न हुआ, जिनसे इन्हें प्रतीक यादव के रूप में दूसरे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
राजनीति में प्रवेश:-'समाजवादी पार्टी' के नेता मुलायम सिंह यादव पिछले तीन दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। अपने राजनीतिक गुरु नत्थूसिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में प्रभावित करने के पश्चात मुलायम सिंह ने नत्थूसिंह के परम्परागत विधान सभा क्षेत्र जसवन्त नगर से ही अपना राजनीतिक सफर आरम्भ किया था। मुलायम सिंह यादव जसवंत नगर और फिर इटावा की सहकारी बैंक के निदेशक चुने गए थे। विधायक का चुनाव भी 'सोशलिस्ट पार्टी' और फिर 'प्रजा सोशलिस्ट पार्टी' से लड़ा था। इसमें उन्होंने विजय भी प्राप्त की। उन्होंने स्कूल के अध्यापन कार्य से इस्तीफा दे दिया था। पहली बार मंत्री बनने के लिए मुलायम सिंह यादव को 1977 तक इंतज़ार करना पड़ा, जब कांग्रेस विरोधी लहर में उत्तर प्रदेश में भी जनता सरकार बनी थी। 1980 में भी कांग्रेस की सरकार में वे राज्य मंत्री रहे और फिर चौधरी चरण सिंह के लोकदल के अध्यक्ष बने और विधान सभा चुनाव हार गए। चौधरी साहब ने विधान परिषदमें मनोनीत करवाया, जहाँ वे प्रतिपक्ष के नेता भी रहे।
लोकप्रियता:-1967 में मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश, विधान सभा के लिए चुने गए थे। शुरुआत से ही मुलायम सिंह यादव दलितों और पिछड़े वर्गों से जुड़े मुद्दे उठाते रहे और आज भी यह वर्ग उनका सबसे बड़ा आधार हैं, जहाँ उन्हें बहुत लोकप्रियता प्राप्त है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर हिन्दू कट्टपंथी संगठनो के उनके मुखर विरोध ने मुलायम सिंह को मुस्लिम समुदाय में भी लोकप्रिय बना दिया। 1992 में बाबरी मस्जिद टूटने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति सांप्रदायिक आधार पर बँट गई और मुलायम सिंह को राज्य के मुस्लिमों का समर्थन हासिल हुआ। अल्पसंख्यकों के प्रति उनके रुझान को देखते हुए कहीं-कहीं उन पर 'मौलाना मुलायम' का ठप्पा भी लगा।
मुख्यमंत्री:-सन 1989 में जब उत्तर प्रदेश सरकार का गठन होने वाला था, तब मुख्यमंत्री पद की दौड़ में दो नेता थे- मुलायम सिंह और अजित सिंह। मुलायम सिंह जनाधार वाले नेता थे, जबकि अजित सिंह अमेरिका से लौटे थे। वी. पी. सिंह हर हाल में अजित सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। मुलायम सिंह को यह मंजूर नहीं था। मुख्यमंत्री का नाम तय करने के लिए गुजरात के समाजवादी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को लखनऊ भेजा गया। वे उस समय उत्तर प्रदेश के जनता दलप्रभारी थे। वी. पी. सिंह का दबाव उनके ऊपर था कि अजित को फाइनल करें। यहाँ मुलायम सिंह यादव ने जबरदस्त राजनीतिक चातुर्य का प्रदर्शन किया। चिमनभाई पटेल ने लखनऊ से लौटते ही मुलायम सिंह के नाम पर ठप्पा लगा दिया। वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव ने 'बहुजन समाज पार्टी' के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि यह मोर्चा जीता नहीं, लेकिन 'भारतीय जनता पार्टी' भी सरकार बनाने से चूक गई। मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस और जनता दल दोनों का साथ लिया और फिर मुख्यमंत्री बन गए। जून 1995 तक वे मुख्यमंत्री रहे और उसके बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया। मुलायम सिंह यादव तीसरी बार 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और विधायक बनने के लिए उन्होंने 2004 की जनवरी में गुन्नौर सीट से चुनाव लड़ा था, जहाँ उन्होंने रिकॉर्ड बहुमत से विजय प्राप्त की थी। कुल डाले गए मतों में से 92 प्रतिशत मत उन्हें प्राप्त हुए थे, जो आज तक विधानसभा चुनाव का एक शानदार रिकॉर्ड है।
प्रधानमंत्री पद के दावेदार:-1996 में मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं लोकसभा के लिए मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र से चुने गए थे और उस समय जो संयुक्त मोर्चा सरकार बनी थी, उसमें मुलायम सिंह भी शामिल थे और देश के रक्षामंत्री बने थे। यह सरकार बहुत लंबे समय तक चली नहीं। मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने की भी बात चली थी। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में वे सबसे आगे खड़े थे, किंतु उनके सजातियों ने उनका साथ नहीं दिया। लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने उनके इस इरादे पर पानी फेर दिया। इसके बाद चुनाव हुए तो मुलायम सिंह संभल से लोकसभा में वापस लौटे। असल में वे कन्नौज भी जीते थे, किंतु वहाँ से उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को सांसद बनाया।
केंद्रीय राजनीति:-केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह का प्रवेश 1996 में हुआ, जब काँग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई। एच. डी. देवेगौडा के नेतृत्व वाली इस सरकार में वह रक्षामंत्री बनाए गए थे, किंतु यह सरकार भी ज़्यादा दिन चल नहीं पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई। 'भारतीय जनता पार्टी' के साथ उनकी विमुखता से लगता था, वह काँग्रेस के नज़दीक होंगे, लेकिन 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन ना मिलने पर काँग्रेस सरकार बनाने में असफल रही और दोनों पार्टियों के संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गई। 2002 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 391 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए, जबकि 1996 के चुनाव में उसने केवल 281 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था।
राजनीतिक दर्शन तथा विदेश यात्रा:-मुलायम सिंह यादव की राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्तों में अटूट आस्था रही है। भारतीय भाषाओं, भारतीय संस्कृति और शोषित पीड़ित वर्गों के हितों के लिए उनका अनवरत संघर्ष जारी रहा है। उन्होंने ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्विटजरलैण्ड, पोलैंड और नेपाल आदि देशों की भी यात्राएँ की हैं।
सदस्यता:-विधान परिषद 1982-1985, विधान सभा 1967, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 (आठ बार),विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान परिषद 1982-1985, विपक्ष के नेता, उत्तर प्रदेश विधान सभा 1985-1987, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री:-सहकारिता और पशुपालन मंत्री 1977, रक्षा मंत्री 1996-1998, लोकसभा से मुलायम सिंह यादव ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य चुने गये थे।
भाजपा से नजदीकी:- मुलायम सिंह यादव मीडिया को कोई भी ऐसा मौका नहीं देते, जिससे कि उनके ऊपर 'भाजपा' के क़रीबी होने का आरोप लगे। जबकि राजनीतिक हलकों में यह बात मशहूर है कि अटल बिहारी वाजपेयी से उनके व्यक्तिगत रिश्ते बेहद मधुर थे। वर्ष 2003 में उन्होंने भाजपा के अप्रत्यक्ष सहयोग से ही प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी। अब 2012 में उनका आकलन सच भी साबित हुआ। उत्तर प्रदेश में 'समाजवादी पार्टी' को अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल हुई है। 45 मुस्लिम विधायक उनके दल में हैं।
पुरस्कार व सम्मान:- पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को 28 मई, 2012 को लंदन में 'अंतर्राष्ट्रीय जूरी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ़ जूरिस्ट की जारी विज्ञप्ति में हाईकोर्ट ऑफ़ लंदन के सेवानिवृत न्यायाधीश सर गाविन लाइटमैन ने बताया कि श्री यादव का इस पुरस्कार के लिये चयन बार और पीठ की प्रगति में बेझिझक योगदान देना है। उन्होंने कहा कि श्री यादव का विधि एवं न्याय क्षेत्र से जुड़े लोगों में भाईचारा पैदा करने में सहयोग दुनियाभर में लाजवाब है।ज्ञातव्य है कि मुलायम सिंह यादव ने विधि क्षेत्र में ख़ासा योगदान दिया है। समाज में भाईचारे की भावना पैदाकर मुलायम सिंह यादव का लोगों को न्याय दिलाने में विशेष योगदान है। उन्होंने कई विधि विश्वविद्यालयों में भी महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
81वां जन्मदिन का मुख्य समारोह कालीदास मार्ग पर मनाया गया था:- समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन 22 नवंबर को मुख्य समारोह संस्थान के दफ्तर 10 बी, कालीदास मार्ग पर मनाया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री सीएम अखिलेश यादव की अगुवाई वाले जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट के दफ्तर में मनाया गया। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि सभी लोग अपने जिले और क्षेत्र में गोष्ठियों और सभाओं का आयोजन करें। इनके जरिए समाजवादी पार्टी की नीतियों और उद्देश्यों का भरपूर प्रचार-प्रसार किया जाए। वहीं, सपा प्रमुख का 81वां जन्मदिन मनाने के लिए ट्रस्ट के सदस्य सचिव एसआरएस यादव ने सभी जिलों में पत्र भेजकर कहा कि समाजवादी ज्यादा से ज्यादा संख्या में इकट्ठा होकर इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होकर समाजवादी विचारधारा के रास्ते पर चलें। हम माननीय नेता जी के कुशल स्वास्थ्य और शतायु होने की कामना करते हैं। हम ईश्वर से यह भी प्रार्थना करते हैं कि वे अपने अनुभवों का अधिकतम लाभ अपने पार्टी के लोगों को भी प्रदान करने की कृपा करें।
अब इस बार जन्मदिन अब सचिव एसआरएस यादव समेत कई वरिष्ठ सपा नेता इस बार नेताजी के जन्मदिन पर मौजदू नहीं है। इस साल समाजवादी के कई वरिष्ठ नेताओं का निधन हो गया। इस बार कोरोना के चलते नेताजी का जन्मदिन बड़ी ही शालीनता से मनाया जाएगा। धरती पुत्र मुलायम सिंह को एक बार फिर जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई .....