सपा की ख्याली बिरयानी खाते-खाते क्या थक गया मुसलमान ?
उसे कोई भी सियासी दल कुछ नही देगा बहुत कुछ सोच विचारने के बाद ही अपना सियासी आसियाना तलाश करना होगा नही तो हम सिर्फ़ सियासी इस्तेमाल का ज़रिया भर बनकर रह जाएँगे।
लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी
राज्य मुख्यालय लखनऊ। जैसा कि कहा जाता है सियासत में कुछ भी स्थायी नही होता है देखा जाए तो कुछ ऐसा भी हो जाता है जो कहने से पहले ही दिखने लगता है वैसा ही कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के एजेंसी को दिए गए एक बयान से साफ हो गया कि कांग्रेस यूपी को लेकर कितनी गंभीर है वह यूपी में अपनी खोई ताक़त को पाना चाहती है उसके लिए उसने शह और मात का खेल शुरू कर दिया है जिसके बाद यह तय हो गया है कि कांग्रेस अपना तुरूप का पत्ता भी चलने को तैयार हो गई है हालाँकि अभी कांग्रेस हाईकमान की और से अधिकृत फ़ैसला होना बाक़ी है।
क्या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव एवं यूपी की प्रभारी श्रीमती प्रियांका गांधी के नेतृत्व में यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी हो चुकी है और क्या यूपी के चुनाव में श्रीमती प्रियांका गांधी कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा होगी यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आना कांग्रेस की ओर से बाक़ी है लेकिन समझा जा रहा है कि देर सवेर कांग्रेस की ओर से कुछ इसी तरह का फ़ैसला हो सकता है। कांग्रेस के इस रूख के बाद प्रदेश की सियासत में क्या बदलाव आ जाएगा यह कहना तो अभी जल्दबाज़ी होगा लेकिन इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस को हल्के में लेना मुश्किल हो जाएगा। इसी जद्दोजेहद के चलते यूपी कांग्रेस के ज़मीन से जुड़े एवं ख़ुद को आंदोलन की कोख से पैदा हुए राहुल गांधी का सिपाही कहने वाले प्रदेशाध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने यह बयान देकर सपा और बसपा को सोचने पर मजबूर कर दिया है यह बात अलग है कि एसी कोच में बैठकर सियासत करने के आदि हो चुके सपा के मालिक अखिलेश यादव अभी भी यही मान रहे है कि यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव में मोदी की भाजपा की चुनावी लडाई सपा से ही होगी ज़मीन पर जनता की लडाई लड़े या न लड़े जनता मोदी की भाजपा का विपक्ष सपा को ही मानती है जबकि सपा के मालिक अखिलेश यादव कोई चुनावी तैयारी करते नज़र नही आ रहे है और कांग्रेस पूरी ताक़त से योगी सरकार से लोहा ले रही है हर मुद्दे पर सड़क पर खड़ी नज़र आ रही है अब जनता क्या अखिलेश के नज़रिये से सोचेगी या उसका पैमाना जनहित के लिए संघर्ष करने वाली पार्टी को वरीयता देना होगा यह बात तो आगे कुछ दिनों में साफ हो पाएँगी।
कांग्रेस की रणनीति को ध्यान से पढ़ने पर ज्ञात होता कि वह अपने मूल वोटबैंक ब्राह्मण , दलित एवं मुसलमान को अपने पाले में लाकर खड़ा करना चाहती है ब्राह्मणों पर वह अलग से काम कर रही है उसके लिए उसने अपने ब्राह्मण नेता लगा दिए है जो अपने समाज को बता रहे कि आज कल हमारे समाज की सियासत में कोई हैसियत नही रही है हर ओर हमारे समाज का उत्पीडन किया जा रहा है जिससे हम बर्दाश्त नही करेंगे वही दूसरी ओर दलित पर भी काम किया जा रहा है साथ ही मुसलमानों को भी अपनी ओर खींचने के गंभीर प्रयास जारी है कभी यह तीनों ही कांग्रेस की मज़बूती का आधार हुआ करते थे।अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के रणनीतिकार अपने वोटबैंक को वापिस ला पाने में कामयाब हो पाएँगे इस पर सियासी जानकारों का कहना है कि जिस तरीक़े से कांग्रेस मेहनत कर रही है।
ख़ासकर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव यूपी की प्रभारी श्रीमती प्रियांका गांधी वाढरा तो उससे लगता है कि दलितों पर तो शायद अभी जादू न चले लेकिन ब्राह्मण और मुसलमान कांग्रेस के बारे में विचार कर सकते है क्योंकि दोनों-तरफ़ अपनी-अपनी सियासी उपेक्षाओं का दर्द मौजूद है ब्राह्मणों का दर्द है कि हमने जबसे अपना सियासी आसियाना बदला तो हमारे पतन के अलावा हमें कुछ नही मिला मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन यूपी का मुख्यमंत्री कौन आदि प्रदेशों का भी यही हाल है। हम अपने सियासी पतन के लिए खुद ज़िम्मेदार है हमें अपनी उपेक्षाओं से बचने के लिए कोई मज़बूत सियासी आसियाना तलाशना होगा जिसकी हम जद्दोजहद कर रहे है तो यह कहा जा सकता है कि ब्राह्मणों का सबसे मज़बूत सियासी आसियाना अगर कोई हो सकता है तो वह कांग्रेस ही हो सकती है रही बात मुसलमानों की उसे किसी से कुछ नही चाहिए और न ही उसे किसी भी दल ने कुछ दिया सिर्फ़ छलने के अलावा हर किसी दल ने उसके साथ सौतेला सलूक किया उसी का नतीजा है कि आज मुसलमान दलितों से बदतर ज़िन्दगी गुज़ारने को मजबूर है उसकी दोषी भी कांग्रेस ओर सपा है। जिसको उसने अपना सियासी रहनुमा माना लेकिन इन दोनों ही दलों ने सियासी मज़बूती दी और न ही सामाजिक मज़बूती शिक्षा का स्तर सुधारा न कारोबारी हर तरह से वह पिछड़ता रहा और उसके सियासी रहनुमा सिर्फ़ वोट लेते रहे और अपना सियासी फ़ायदा उठाते रहे।
पिछले तीस सालों से यूपी का मुसलमान सपा के मालिक मुलायम सिंह यादव अब उनके बेटे के साथ बँधवा मज़दूर की तरह ज़िन्दाबाद करता रहा। लेकिन सपा ने उसे कुछ नही दिया हाँ सपा ने अगर मुसलमानों को कुछ दिया तो वह थानों के दलाल दिए जिससे समाज का फ़ायदा न होकर नुक़सान हुआ सपा के नाम पर वह दिन रात थानों में पड़े रहते थे और अपने ही समाज को नुक़सान पहुँचाते थे 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के मालिक मुलायम सिंह यादव ने प्रेस कॉंफ़्रेंस में यह वादा किया कि अगर हमारी सरकार आयी तो हम मुसलमानों को 18% आरक्षण देंगे सरकार आई ओर पूरे पाँच साल चली भी आरक्षण देना तो दूर सोचा भी नही अगर किसी ने यह सवाल उठाया भी तो उसका या तो जवाब नही दिया या यह कहकर टाल दिया गया कि क़ानूनी अड़चनें है नही किया जा सकता है। जब नही किया जा सकता था तो उसको बेवकूफ क्यों बनाया जाता है। जबकि तेलंगाना में दिया जा रहा है चलो मान भी लिया जाए कि नही दिया जा सकता है सरकार का मतलब सरकार होता है।
जब पीसीएस के 84 पदों में से 54 पर यादवों का चयन किया जा सकता है तो क्या बिना आरक्षण के मुसलमानों को समायोजित नही किया जा सकता था ख़ैर मुसलमान सपा के मालिकों की प्राथमिकता में नही था न है और न रहेगा जबकि कांग्रेस के पास और भी वोटबैंक था लेकिन सपा के पास तो सबसे बड़ा वोटबैंक मुसलमान ही था शायद अभी तक है भी इससे भी इंकार नही किया जा सकता परन्तु क्या वह पूर्व की भाँति खड़ा रहेगा बँधवा मज़दूर की तरह बिना कुछ लिए अब मुश्किल नज़र आ रहा है। वह भी सपा के मालिक मुलायम सिंह यादव द्वारा ख़्यालों में बनवाईं गई बिरयानी खाता-खाता थक गया है शायद वह भी बदलाव पर विचार करे बदलाव पर विचार करने का मतलब उसका पूर्व सियासी आसियाना कांग्रेस ही एक मात्र विकल्प है। जहाँ वह समायोजित हो सकता है ग्राउंड ज़ीरो पर मुसलमानों से बात करने पर पता चलता है कि मुसलमान सभी दलों कि मानसिकता को पहचान चुका है कि उसे कोई भी सियासी दल कुछ नही देगा बहुत कुछ सोच विचारने के बाद ही अपना सियासी आसियाना तलाश करना होगा नही तो हम सिर्फ़ सियासी इस्तेमाल का ज़रिया भर बनकर रह जाएँगे।
लेखक लखनऊ से स्वतंत्र पत्रकार है