शिक्षा मित्रों की हो रही लगातार मौतों के बाद भी सरकार खामोश, कितनी कुर्बानी और लेगी!
शिक्षा मित्रों की मौत के बाद भी सरकार की खामोशी से शिक्षा मित्र बेहद परेशान नजर आ रहा है।
उत्तर प्रदेश का 1 लाख 50 हजार शिक्षा मित्र अब बहुत पीड़ा में जीवन यापन कर रहा है। सुबह जब वो सोकर उठता है तो किसी साथी की मौत की खबर सुनकर टूट जाता है। भारी मन से तैयार होकर स्कूल जाता जरूर है लेकिन इसी उधेड़ बुन में लगा रहता है कि आखिर हमारा दोष क्या है। जब भर्ती हुई थी तब तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व कल्याण सिंह ने कहा था स्थानीय निवासियों में सबसे ज्यादा अंक और होशियार व्यक्ति को शिक्षा मित्र के पद पर तैनाती मिलेगी।
इसी के चलते प्रदेश के होनहार युवाओं और बेटियों ने इस पद पर आवेदन कर दिया। देखते ही देखते वो असंख्य उम्मीदवार जिनमें कई क्वालिटियाँ थी इस पद पर चयनित हो गए चूंकि इससे पहले प्रदेश में संविदा का नाम नहीं जानते थे। एक समय सरकार ने सहायक नलकूप चालक के पद का सृजन किया जो बाद में ग्राम विकास अधिकारी के पद पर भी कुछ साल तैनात रहे बाद में उन्हे उनके मूल पद पर भेजा गया और नियमित सरकारी वेतन पा रहे है।
इसी उम्मीद और भरोसे के सहारे शिक्षा मित्र ने भी इस काम को किया कि आने वाले दिनों में हम नियमित नौकरी पा जाएंगे जबकि काम विपरीत हुआ। इससे पहले आई सरकारों ने द्वेष भावना रखी लेकिन अधिकारियों ने सरकारों को समझाया तो बसपा सरकार ने इन्हे ट्रैनिंग कराकर पूर्ण रूपेण शिक्षक के पद पर तैनात करने के लिए ट्रैंड किया। उसके बाद अखिलेश सरकार ने इन्हे नियमित अध्यापक बनाने की प्रक्रिया की जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार की लचर पैरवी के कारण वापस मूल पद पर भेज दिया गया। और आज तक शिक्षा मित्र 20 वर्ष कार्य करके उसी मूल पद पर तैनात है।
जबकि बगल के राज्य राजस्थान ने अभी सभी 10 वर्ष और 20 वर्ष से काम कर रहे शिक्षकों को नियमित कर दिया। झारखंड में प्रक्रिया चालू है लेकिन डबल इंजन की सरकार आपसी टकारहट में शिक्षा मित्र अनुदेशकों के बारे कुछ नहीं सोच रही है।
अब इस पूरे मामले में पाँच सवाल है जो बड़े गंभीर है
1 - शिक्षा मित्र अयोग्य तो इन अयोग्य शिक्षकों से 20 साल से यूपी के मासूमों को शिक्षित क्यों कराया गया।
2 - जब शिक्षा मित्र को आप शिक्षक नहीं मानते है तो फिर पूर्ण कालिक शिक्षक की सूची में दर्ज करके प्रदेश की जनता को गुमराह क्यों करते है।
3 - जब चुनाव आते है तो फिर आप इन शिक्षा मित्रों का मुद्दा क्यों चालू कर देते है जब आप जानते है कि आप इन्हे कुछ देने वाले नहीं है।
4 - जब आप यानि बीजेपी विपक्ष में थी तब रोज शिक्षा मित्र अनुदेशक की बात करती थी तो क्या अब अनुदेशक शिक्षा मित्र का काम पूर्ण हो चुका है अगर हो चुका है तो आदेश जारी क्यों नहीं करते।
5 - सीएम योगी और पीएम मोदी के हाँ कहने के बाद अब कौन बच गया जिससे अब और गुहार लगाई जाए कि शिक्षा मित्र अनुदेशक को नियमित किया जाए।
आपको बता दें कि इन पाँच सवालों का जबाब किसी नेता और मंत्री के पास नहीं होगा क्योंकि आपने तो आज तक कुछ किया नहीं है। गाँव में कहावत है कि मानस की बात छोड़िए आपने तो झूंठे हाथ से कुत्ता भी नहीं मार यानि इन छह वर्षों में आपने एक बार भी मानदेय में कोई बढ़ोत्तरी भी नहीं की। न ही कोई एसा काम किया जिससे शिक्षा मित्रों को लगता सरकार हमारे मामले को लेकर गंभीर है।
अब मौतों को रोकने के लिए सरकार को गंभीर होना चाहिए वरना रोज इनकी संख्या बढ़ती चली जाएगी। जब एक शिक्षा मित्र ने बताया कि अब तक दो सौ पचास ज्यादा शिक्षा मित्रों का अंतिम संस्कार करा चुका है।