Subrata Roy Sahara : कौन थे सुब्रत राय कैसे बने सहाराश्री? ऐसा रहा लैंब्रेटा स्कूटर से प्लेन तक सफर!
Subrata Roy Sahara : सुब्रत राय बिहार के अररिया से निकलकर पूरे देश में सहाराश्री के नाम से मशहूर हो गए।
Subrata Roy Sahara passes awey: सहारा परिवार के मुखिया के सुब्रत राय मुंबई में मंगलवार देर रात निधन हो गया। वह काफी दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और उनका इलाज मुंबई के एक निजी अस्पताल में चल रहा था। सुब्रत राय बिहार के अररिया से निकलकर पूरे देश में सहाराश्री के नाम से मशहूर हो गए। गोरखपुर की गलियों में लैंब्रेटा स्कूटर पर नमकीन स्नैक्स बेचने से लेकर सहारा एयर लाइन्स तक उनका सफर न केवल रोमांचक है बल्कि प्रेरक भी है। आइए जानें सुब्रत राय कैसे बने सहारा श्री?
सुब्रत राय का जन्म 10 जून, 1948 को अररिया, बिहार में हुआ था। पिता का नाम सुधीर चंद्र रॉय और माता का नाम छवि है। रोजगार की तलाश में राय परिवार बिहार से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में शिफ्ट हो गया। माता-पिता और भाई-बहनों के साथ सुब्रत राय गोरखपुर के तुर्कमानपुर मोहल्ले में रहने लगे। उनकी स्कूली शिक्षा होली चाइल्ड स्कूल से हुई थी। बाद में उन्होंने गोरखपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया था। उन्होंने स्वपना राय से लव मैरिज की थी। उनके दो बेटे हैं, शुशांतो रॉय और सीमांतो रॉय।
सुब्रत ने करियर की शुरुआत में गोरखपुर में जया प्रोडक्ट की नमकीन बेचने से की थी। वह अपनी लैंब्रेटा स्कूटर नमकीन के पैकेट गोरखपुर की गलियों में बेचते थे। उन्होंने 1978 में गोरखपुर में सहारा की नींव रखी। मुश्किल से पांच-छह लोगों से शुरू हुए सहारा सेलोग जुड़े गए और देखते ही देखते सुब्रत रॉय सहारा सहाराश्री बन गए।
सहारा कई डेली, मंथली, क्वार्टरली, एनुअल डिपॉजिट इन्वेस्टमेंट प्लान चलाता था। दूसरी कंपनियों और बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट और रेकरिंग डिपॉजिट की तुलना में सहारा में 3-4% ज्यादा ब्याज मिलता था। लोगों के पास एजेंट आते और पैसे जमा करते और उनकी पासबुक पर चढ़ा जाते। अधिक ब्याज और जमा करने में आसानी से लोग सहारा को हाथोंहाथ लिया।
सुब्रत रॉय सहारा का साम्राज्य सहारा इंडिया से लेकर फाइनेंस, रियल एस्टेट, मीडिया और हॉस्पिटैलिटी समेत कई अन्य सेक्टर्स में फैला हुआ था। 1991 में एयर सहारा एयरलाइन की स्थापना की थी। एंबी वैली प्रोजेक्ट उनका ड्रीम प्रोजेक्ट था। वहीं, सहारा ग्रुप टीम इंडिया का स्पॉन्सर भी रहा।
सुब्रत राय को मिले ये सम्मान
2002 में बिजनेसमैन ऑफ द ईयर अवॉर्ड
2002 में बेस्ट इंडस्ट्रियलिस्ट अवॉर्ड
2010 में विशिष्ट राष्ट्रीय उड़ान सम्मान
2010 में रोटरी इंटरनेशनल का वोकेशनल अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस
2001 में राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार
2012 में भारत के टॉप 10 मोस्ट इंफ्लूएंशियल बिजनेसमैन
सुब्रत रॉय सहारा एक करिश्माई व्यक्ति थे। वो भारत के उद्योग जगत के पहले सुपर स्टार थे। एक दौर था। उनकी शोहरत का सूरज कभी अस्त नही होता था। बड़े बड़े नेता लाइन लगाकर खड़े रहते थे। बॉलीवुड के सुपर स्टार उनके घर चाय वितरण करते थे। उद्योग जगत नतमस्तक था सुब्रत रॉय के सामने। पत्रकार उन्हें सहारा प्रणाम करके गौरवान्वित महसूस करते थे। रॉय ने जिस पर भी हाथ रख दिया वो दौलत, शोहरत और ताकत की बुलंदी पर होता था। चिट फंड से लेकर एयरलाइंस तक सब धंधा किया। उनके बेटों की शादी हुई थी लखनऊ से। भारत के प्रधानमंत्री, दर्जन भर से अधिक केंद्रीय मंत्री, कितने मुख्यमंत्री, राज्यपाल और पूरा उद्योग जगत रॉय के बुलावे पर आया था। क्रिकेट टीम के स्टार खिलाड़ी मेहमानो को खाना परोसते थे। वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम के सभी सदस्यों को अम्बे वैली को घर गिफ्ट में दिए। बड़े क्रिकेटर उनके बच्चों की शादी हो या घरेलू आयोजन बिना सहारा श्री के पूरा नहीं होता था।
सुपर स्टार महोदय तो खाना परोसते थे। बेहिसाब दौलत और बेशुमार ताकत। तब सिर्फ नाम ही काफी था। सुब्रत रॉय। लेकिन एक राजनीतिक भूल ने सुब्रत रॉय के एंपायर को लगभग धूल में मिला दिया। उनके आलोचक भी बहुत हैं जो आज भी इलजाम लगाते हैं। लेकिन वक्त बदला तो जो ताकतवर लोग रॉय के घर झाड़ू पोछा करके भी गौरव की अनुभूति करते थे उन्होंने भी पीठ दिखा दी। सुब्रत रॉय का साथ उन सबने छोड़ दिया जिन पर उन्हें बहुत भरोसा था। वो घिरते गए। जेल गए। साम्राज्य सिकुड़ता गया। कैसे तैसे जेल से निकले। कभी शान ओ शौकत का एंपायर उनके ही सामने खंडहर हो गया। किसी ने उनका साथ नहीं दिया। आज भी सेबी के पास सहारा का 25 हजार करोड़ है। लेकिन सहारा ग्रुप का पतन हो गया। वो जितने बड़े शो मैन थे आज उतनी ही खामोशी से चले गए। सर, इसीलिए कहता हूं समय से न लड़ो। आजतक कोई जीत नही पाया। जीत भी नही सकता।