6 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद पर क्यों खफा थे कल्याण सिंह?

यह एक सवाल था उससे 6 दिसंबर की घटना टाली जा सकती थी. पर मेरी बात नहीं सुनी गई गैर भाजपा दलों ने इस में रुकावट डाली अदालत के कंधे पर बंदूक चलाई गई

Update: 2020-09-25 03:26 GMT

6 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद पर खफा कल्याण सिंह थे. जिस वक्त ढांचे पर कारसेवकों ने हल्ला बोला दिल्ली से लेकर लखनऊ तक राजनीत गर्म थी. दिल्ली में प्रधानमंत्री 7 रेस कोर्स रोड के अपने घर पर टेलीविजन के सामने बैठे थे तो मुख्यमंत्री कल्याण सिंह लखनऊ में कालिदास मार्ग के सरकारी आवास की छत पर धूप सेक रहे थे. अयोध्या के कंट्रोल रूम से लखनऊ के मुख्यमंत्री आवास पर तोड़फोड़ की सूचना दी गई तो मुख्यमंत्री बहुत अचंभित हो गये थे.फिर भी कल्याण सिंह ने बिना गोली चलाई परिसर को खाली कराने को कहा. हालांकि इस बात से बेहद नाराज थे कि उन्हें इस बाबत कोई जानकारी नहीं दी गई थी. अगर बीएचपी की कोई ऐसी योजना थी तो उन्हें भी बताना चाहिए था.

उधर अयोध्या में तोड़फोड़ जारी थी. प्रधानमंत्री के निजी सचिव आरके प्रसाद सिंह ने भी फोन कर फैजाबाद के कमिश्नर से नियंत्रित करने और केंद्रों का इस्तेमाल करने को कहा इसमें कोई शक नहीं है. इसके पहले 5 घंटे मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने साथ धोखा हुआ माना जैसे नरसिंह राव ने माना था.ध्वंस से जितने  आहत कल्याण सिंह थे उतने ही आहत नर सिंह राव लग रहे थे. उन्हें लग रहा था कि उन्हें धोखे में रखा गया.

पहले से था अंदेशा

कल्याण सिंह को कुछ ऐसा था शनिवार की रात जिला प्रशासन ने गृह सचिव को जो रिपोर्ट भेजी उसमें कहा गया कार सेवकों का एक वर्ग कार सेवा का स्वरूप बदलने से थोड़ा सा नाराज है. यानी प्रतीकात्मक कार सेवा उनके गले नहीं उतर रही थी. मौके की नजाकत भांपकर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी को शनिवार की रात ही अयोध्या भेज दिया था. पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक इन दोनों को रविवार की सुबह अयोध्या जाना था. ध्वंस के बाद शाम तक कल्याण सिंह सदमे से बाहर नहीं हो पाये थे. उन्होंने लखनऊ में अपने आवास पर मुख्य सचिव गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक के साथ बड़े अफसरों की मीटिंग बुलाई. फाइल बनाकर उस पर गोली न चलाने की लिखित आदेश दिए ताकि बाद में किसी अफसर की जवाब देते हो कल्याण सिंह के इस काम से नौकरशाही में उनकी साथ बनी थी. अपने अफसरों और शीर्ष नेताओं सुविचार विमर्श के बाद उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया. कल्याण सिंह राज्यपाल भी सत्यनारायण रेड्डी से मिलकर इस्तीफा देना चाह रहे थे. पर राज्यपाल उन्हें मिलने का वक्त नहीं दे रहे थे क्योंकि राज्यपाल कल्याण सिंह से मिलने से पहले प्रधानमंत्री नरसिंगा राव से बात कर लेना चाह रहे थे शायद भी पूछना चाह रहे थे. कल्याण सिंह का इस्तीफा लेना है या उन्हें बर्खास्त कर देना है. पर नरसिंह राव ने गुस्से के कारण राज्यपाल से बात करने से मना कर दिया था. दरअसल नरसिंह राव राज्यपाल जी सत्यनारायण रेड्डी से इस बात से नाराज थे कि जब सारा देश कल्याण सिंह सरकार की बर्खास्तगी की बात कर रहा था. तब भी लगातार उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त न करने की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेज रहे थे. नरसिंह राव को लग रहा था कि राज्यपाल ने भी उन्हें इस मामले में गुमराह किया है. अपनी अंतिम रिपोर्ट जो ध्वंस से दो रोज पहले राज्यपाल ने भेजी थी उसमें यहां तक लिख दिया था अगर कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त किया गया तो ढांचे पर खतरा हो सकता है. ढांचा गुस्से का शिकार हो सकता है फिर कल्याण सिंह बिना समय तय किए राज भवन पहुंच गए और उन्होंने शाम 5:30 बजे राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया. मुख्यमंत्री ने अपने एक लाइन के इस्तीफे में लिखा मैं इस्तीफा दे रहा हूं कृपया स्वीकार करने का कष्ट करें मुख्यमंत्री ने अपने इस्तीफे में विधानसभा भंग करने की सलाह नहीं दी थी.

उसके बाद पीएम का राष्ट्र के नाम हुआ संबोधन

प्रधानमंत्री नरसिंह राव पर सिर्फ विपक्ष हमलावर नहीं था उनकी पार्टी ने में भी उनके खिलाफ मोर्चा खुल गया था. उन्होंने अपने सहयोगियों के दबाव में राष्ट्र को संबोधित किया. अपने संबोधन में नरसिंह राव ने ध्वस्त इमारत को बार-बार बाबरी मस्जिद कहा था, देश-विदेश में यह समझा गया कि ध्वस्त ढांचा था. प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहीं नहीं कहा कि उस इमारत में 44 साल से मूर्तियां रखी थी और वहां नमाज पढ़ी जा रही थी. प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम प्रशासन प्रसारण से तनाव और बढ़िया समय बीतने के साथ कल्याण सिंह के हौसले धीरे-धीरे बुलंद हो रहे थे. पहले तो अचंभित थे. लेकिन उन्हें छला गया पर अब ढांचा गिरने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले चुके थे. इस्तीफे के बाद उनका उन्हों ऐलान किया था कि वह प्रबल हिंदू भावनाओं का विस्फोट था क्योंकि मामला को लटकाए रखने का कार्य कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका तीनों ही बराबर जिम्मेदार हैं. उन्होंने कहा कि यह सही है कि ढांचे की सुरक्षा की जिम्मेदारी मैंने ली थी. लेकिन साथ में यह भी कहा था कि मेरी सरकार संतों और कारसेवकों पर गोली नहीं चलाएगी. कल्याण सिंह ने कहा ढांचे से कारसेवकों को हटाने के लिए गोली न चलाने के लिए कोई अफसर जिम्मेदार नहीं है फाइलों पर मेरे दस्तखत हैं जब मैंने रास्ता निकाला था तब किसी ने मेरी नहीं सुनी. मैं विवादित इमारत और कार सेवा की जगह को अलग अलग करना चाहता था. मेरी योजना थी कि 2.77 एकड़ से विवादित ढांचे को अलग कर कारसेवा कराई जाए. यह एक सवाल था उससे 6 दिसंबर की घटना टाली जा सकती थी. पर मेरी बात नहीं सुनी गई गैर भाजपा दलों ने इस में रुकावट डाली अदालत के कंधे पर बंदूक चलाई गई कल्याण सिंह का कहना था अभी वक्त है गैर बीजेपी दल जनता की भावनाओं को समझें राम जन्म भूमि के लिए अब तक क76 लड़ाइयां हो चुकी है तीन लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. इसको हमें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

हेमंत शर्मा की पुस्तक युद्ध में अयोध्या से साभार 

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