यूपी चुनाव से पहले मायावती ने चली नई चाल, सतीश चंद्र मिश्रा को सौंपी जिम्मेदारी, अयोध्या से होगा आगाज
बसपा फिर उसी नारे को जिंदा करने की कोशिश कर रही है कि 'ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जाएगा।'
बसपा सुप्रीमो मायावती मिशन-2022 को लेकर इन दिनों संगठन को दुरुस्त करने में जुटी हुई हैं। बसपा सुप्रीमो ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए बूथ गठन के काम को तेजी से पूरा करने का निर्देश दिया है। बूथ गठन की जिम्मेदारी पहले जिलाध्यक्ष देख रहे थे। मायावती ने अब मुख्य सेक्टर प्रभारियों को भी इसके काम में लगा दिया गया है। मुख्य सेक्टर प्रभारी स्वयं अपने प्रभार वाले जिलों में जाकर अपनी देखरेख में बूथ गठन का काम पूरा कराएंगे। अगस्त तक हर हाल में बूथ गठन का काम पूरा कराने की जिम्मेदारी मुख्य सेक्टर प्रभारियों को सौंपी गई है।
ब्राह्मणों की नब्ज पर हाथ रखने की कवायद शुरू की गई है। इसके लिए ब्राह्मण सम्मेलनों से आगाज करने की तैयारी की गई है। बसपा फिर उसी नारे को जिंदा करने की कोशिश कर रही है कि 'ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जाएगा।' जहां ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए बसपा ब्राह्मणों का मंडलीय सम्मेलन करने जा रही है। इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा को सौंपी गई है। इसकी शुरुआत अयोध्या से 23 जुलाई से होगी। सतीश चंद्र मिश्रा अयोध्या में मंदिर दर्शन से ब्राह्मणों को साधने की कवायद शुरू करेंगे। पहले चरण में 23 जुलाई से 29 जुलाई तक लगातार छह जिलों में सम्मेलन किए जाएंगे।
पार्टी के जानकारों के मुताबिक सेक्टर गठन, बूथ गठन और भाईचारा कमेटियों के गठन की समीक्षा बसपा सुप्रीमो अगस्त के दूसरे हफ्ते में करेंगी। मुख्य सेक्टर प्रभारियों से इस बैठक में रिपोर्ट ली जाएगी। इसके आधार पर संगठन की मजबूती परखी जाएगी और जरूरी सुधार के भी निर्देश दिए जाएंगे। बसपा सुप्रीमो इन दिनों लखनऊ में ही हैं और विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई हैं।
बतादें कि साल 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को मिली सफलता का राज सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला था। इसमें बसपा सुप्रीमो मायावती ने जहां जिस क्षेत्र में जिसका बाहुल्य था उसी जाति के आधार पर टिकटों का वितरण किया था। ब्राह्मण ठाकुर जाट यादव सभी को इस फार्मूले में फिट किया गया था। उसी का परिणाम रहा कि बसपा को अप्रत्याशित सफलता मिली और सूबे में पूर्ण बहुमत से सरकार बन गई । पिछले दो चुनावों में सत्ता से बहुत दूर हुई बसपा फिर से उसी फार्मूले पर लौटने की कवायद कर रही है। हालांकि पिछले 10 सालों में या दो चुनावों में बसपा ने यह कोशिश की थी पर फेल रही थी। इसलिए इस बार पहले इस पर विस्तृत मंथन करने की बात कही जा रही है।