राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पहुंचे संत कबीर की निर्वाणस्थली मगहर,कहा कबीर का एक ही परिसर में समाधि और मजार होना सांप्रदायिक एकता का दुर्लभ मिसाल है

इस अवसर पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे

Update: 2022-06-05 15:30 GMT

 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि समाज के कमजोर लोगों के प्रति संवेदना रखे बिना और और असहायों की सेवा किए बगैर समरसता नहीं आ सकती। संतकबीर ने सामाजिक समरसता को बढ़ाने के लिए कमजोरों के प्रति संवेदना और और असहायों की सेवा पर निरंतर जोर दिया। उनका समूचा जीवन सांप्रदायिक एकता का संदेश देता रहा। आज एक ही परिसर में उनकी समाधि व मजार का होना सांप्रदायिक एकता की दुर्लभ मिसाल है।

उन्होनें कहा कि आज एक ही परिसर में उनकी समाधि व मजार का होना सांप्रदायिक एकता की दुर्लभ मिसाल है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रविवार सुबह मगहर के कबीर चौरा पहुंचे। वहां स्थित संतकबीर की समाधि पर मत्था टेकने, पौधरोपण करने के बाद यहां आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किए। इस अवसर पर राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी मौजूद रहे। उन्होंने संतकबीर अकादमी एवं शोध संस्थान तथा इंटरप्रेटेशन सेंटर का लोकार्पण भी किया।

अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि संतकबीर इस अंधविश्वास को तोड़ने के लिए काशी से मगहर आए थे कि काशी में मृत्यु से स्वर्ग प्राप्त होता है और मगहर में मृत्यु से नरक। ऐसा लगता है कि मानो वह अकाल से त्रस्त लोगों का जीवन संवारने के लिए ही मगहर आए थे। संत कबीर एक सच्चे पीर थे। 'कबीर सोई पीर है जो जाने पर पीर।'

उन्होंने कहा कि संतकबीर ने अपनी वंचनाओं को कमजोरी नहीं बल्कि ताकत बनाया। वह कपड़ा बुनने का काम करते थे। अच्छा कपड़ा बुनने के लिए सूत की कताई, रंगाई से लेकर ताना-बाना तैयार करने तक बहुत सावधानी और सजगता की जरूरत होती है। संतकबीर ने उस समय विभाजित समाज में समरसता लाने के लिए सामाजिक मेलजोल की बारीक कताई की, ज्ञान के रंग से सुंदर रंगाई की, एकता व समन्वय का मजबूत ताना-बाना तैयार किया और समरस समाज के निर्माण की चादर बुनी। इस चादर को उन्होंने बहुत सावधानी से ओढ़ा और कभी मैला नहीं होने दिया। कहा जाता है, 'दास कबीर जतन ते ओढ़ी, ज्यूं की त्युं ज्यों धर दीनी चदरिया।'

राष्ट्रपति ने कहा कि संतकबीर ने समानता व समरसता का मार्ग दिखाया। गृहस्थ जीवन में भी व संतों की तरह जीवन जीते रहे। वह पुस्तकीय ज्ञान से वंचित रहे पर साधु संगति के ज्ञान व अनुभव से उनके द्वारा प्रतिपादित शिक्षाएं 600 वर्ष बाद भी आमजन व बुद्धिजीवियों में एक समान लोकप्रिय हैं। उनका समय आक्रांताओं के आक्रमण का समय था। ऐसे में प्रेम व मैत्री का संदेश देने के लिए उन्होंने लोगों के बीच सीधा संवाद किया। कभी-कभी ठेठ शब्दों का भी प्रयोग किया जो तब की परिस्थितियों के अनुसार बहुत जरूरी भी था। संतकबीर ने पहले समाज को जगाया और फिर चेताया।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी मान्यता रही है कि संतो के आगमन से धरती पवित्र होती है। एक समय तक ऊसर, बंजर और अभिशप्त रही मगहर की भूमि भी संत कबीर के आगमन से खिल उठी। कहा जाता है कि संतकबीर के आमंत्रण पर नाथपीठ के एक सिद्ध यहां आए थे। उनके प्रभाव से यहां का तालाब जल से भर गया। गोरखतलैया से आमी नदी प्रवाहमान हो गई।

हमेशा सुधार के लिए तत्पर रहा है देश

राष्ट्रपति ने कहा कि यह देश हमेशा ही अपने में सुधार के लिए तत्पर रहा है। इसी कारण जब दुनिया में बड़ी-बड़ी सभ्यताओं का नामोनिशान मिट गया, भारत हजारों वर्ष की अटूट विरासत को लेकर अपने पांव पर मजबूती से खड़ा है।

बहुत कठिन होता है सहज होना

संतकबीर को महान व सहज संत बताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि सहज होना वास्तव में बहुत कठिन होता है।आसक्ति आसानी से नहीं छोड़ती। संतकबीर ने बहुत सहजता से यह संदेश दिया किसी स्थान विशेष से स्वर्ग या नरक नहीं मिलता। बल्कि यह हमारे आचरण पर निर्भर करता है। वह मानते थे कि ईश्वर जब कण-कण में व्याप्त है तो हम उसे बाहर क्यों खोजें।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महान समाज सुधारक संतकबीर की साधना एवं निर्वाण स्थली मगहर में 31.49 करोड़ रुपये की लागत से बने संतकबीर अकादमी एवं शोध संस्थान, स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत 17.61 करोड़ रुपये की लागत वाले इंटरप्रेटेशन सेंटर और 37.66 लाख रुपये की लागत से कराए गए कबीर निर्वाण स्थली के सौंदर्यीकरण कार्यों का लोकार्पण किया।

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