पहले चरण में कम मतदान के पीछे आयोग से लेकर, प्रशासन तक सब की रही चूक

निकाय चुनाव में राज्य निर्वाचन आयोग सुस्त रहा तो अफसर बेहद उदासीन रहे। ऐसे में मतदान प्रतिशत गिरना ही था। मतदान बढ़ाने के प्रयासों की पुरानी व्यवस्थाओं को भी बंद करा दिया गया। परिणाम यह रहा कि पहले ही चरण में मतदान प्रतिशत उम्मीद से काफी कम रहा।

Update: 2023-05-06 05:20 GMT

निकाय चुनाव में राज्य निर्वाचन आयोग सुस्त रहा तो अफसर बेहद उदासीन रहे। ऐसे में मतदान प्रतिशत गिरना ही था। मतदान बढ़ाने के प्रयासों की पुरानी व्यवस्थाओं को भी बंद करा दिया गया। परिणाम यह रहा कि पहले ही चरण में मतदान प्रतिशत उम्मीद से काफी कम रहा। पिछले चुनाव से आगे निकलने की तो बात छोड़िए, उसके बराबर भी मतदान नहीं हुआ। पहले चरण में कई खामियां सामने आई। विभिन्न जिलों में बड़ी संख्या में मतदाता सूची में लोगों के नाम गायब थे। उन वोटरों के नाम भी नहीं थे जो लगातार अपने वार्ड में वोट डाल रहे थे। इस बार मतदान स्थलों की संख्या बढ़ी है।

पिछले चुनाव में 36873 मतदान स्थल थे, जबकि इस बार 43254 मतदान स्थल बनाए गए। इससे मतदाताओं के बूथ बदल गए जिससे वोटर अपना बूथ ही तलाशते रह गए। इसका भी असर मतदान पर पड़ा। वर्ष 2017 में पहले चरण के चुनाव में 52.85 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि इस बार यह सिर्फ 52 प्रतिशत रहा। 34 जिले ऐसे रहे जहां मतदान का प्रतिशत पिछले चुनाव से भी कम रहा। यही नहीं इस चुनाव के लिए पांच साल में मतदाता पर्ची वितरण की कोई व्यवस्था नहीं थी । जबकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाता के घर पर ही अधिकृत मतदान पर्ची पहुंच जाती है। मतदाताओं को जागरूक करने का अभियान भी नहीं चलाया गया। मतदान प्रतिशत बढ़ाने के अन्य कई जन-जागरूकता के कार्यक्रम भी नहीं चलाए गए। इसका असर साफ देखने को मिला।सिर्फ तीन बार मतदाता पुनरीक्षण अभियान चलाया गया। वहीं, लोकसभा चुनाव में हर तीन माह में अभियान चलाया जाता है।

लाचार ऑनलाइन सिस्टम :

पिछले चुनाव में एक एप विकसित किया गया था मतदाता इस पर जानकारी कर सकते थे कि उसका वोट कहां किस बूथ पर है। इस बार एप की व्यवस्था ही नहीं थी। पिछले चुनाव में मोबाइल पर संदेश के जरिए मतदाता को बूथ संबंधी जानकारी मिल रही थी लेकिन इस बार यह व्यवस्था भी नहीं थी.

बिना मैपिंग के निकलीं टीमें

इस बार मतदाता सूची पुनरीक्षण के लिए बिना मैपिंग के ही बीएलओ की टीमें निकलीं। जिन्होंने पिछली सूची में ही नामों में जोड़-घटाव कर खानापूर्ति की। एडवोकेट रामकुमार शर्मा कहते कहते हैं कि पहले वार्ड की लिस्ट बने और फिर बूथ की। तभी इसकासमाधान निकल सकता है। पर इस लिस्ट को पहले बूथ से शुरू किया जाता है। दूसरा, नाम कटवाने और जुड़वाने का भी खेल चलता है। इस पर पैनी नजर रखी जानी चाहिए।

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