काशी विश्वनाथ मंदिर का बदला प्रसाद, नए प्रसाद कि बिक्री आज से शुरू....

Update: 2024-10-12 08:37 GMT

तिरुपति मंदिर में हुए प्रसाद विवाद के बीच वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर ने बड़ा कदम उठाते हुए पिछले 5 वर्षों से चले आ रहे प्रसाद को अब बदल दिया है। आज विजयदशमी के शुभ अवसर पर काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ने अमूल के सहयोग द्वारा निर्मित "तंदुल महाप्रसाद" को आम भक्तों के लिए खोल दिया है। आज दोपहर में भोग आरती के दौरान इस "तंदुल महाप्रसाद" को बाबा को अर्पित कर श्रद्धालुओं में वितरण के लिए लाया गया।

अमूल के सहयोग से बना है प्रसाद 

वाराणसी मंडल के कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने इस "तंदुल



महाप्रसाद" के उद्घाटन के अवसर पर बातचीत में बताया कि वाराणसी में देश विदेश के श्रद्धालु आते हैं। जो की बाबा काशी विश्वनाथ का प्रसाद अपने घरों तक ले जाते हैं। 

इस काम को स्वयं सहायता समूह के जरिए मंदिर न्यास अन्य लोगों के माध्यम से करवाता था। लेकिन बीते 3 महीने पहले मंदिर न्यास की बैठक में बाबा का प्रसाद स्वयं मन्दिर द्वारा बनाने का निर्णय लिया गया। 

आज विजयदशमी के शुभ अवसर पर पहला प्रसादम बाबा विश्वनाथ को चढ़ाया गया, फिर मंदिर परिसर में ही लगे स्टालों से बिक्री प्रसाद की बिक्री शुरू हो गई। ये प्रसाद समस्त शास्त्र सम्मत होगा। शास्त्रों के अध्ययन के बाद चावल के आटे, चीनी और बेलपत्र के चूर्ण से प्रसाद बनाया गया है। बाबा को चढ़ाए गए बेलपत्र का ही चूर्ण बनाकर इसमें मिलाया गया है। इस प्रसाद को बनास डेरी द्वारा अमूल के प्लांट में तैयार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि प्रसाद को बनाने वाले समस्त कारीगर हिंदू रीति रिवाज का पालन करेंगे और प्रसाद बनाने वाले कारीगरों को प्रसाद बनाने से पहले स्नान करना अनिवार्य होगा।

200 ग्राम प्रसाद की कीमत 120 रुपये रखी गई है। एक किलोग्राम की कीमत 600 रुपये है। 


इन चीजों से तैयार होगा प्रसाद...

वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास में 10 महीने पूर्व ही अपना प्रसाद बनाने का ऐलान किया था। इसके बाद विद्वानों की टीम ने इसके लिए विभिन्न शास्त्र और पुराणों का अध्ययन किया हैं। इसके बाद सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया कि चावल के आटे से यह प्रसाद बनाया जाएगा।

चूंकि धान भारतीय फसल है। इसका जिक्र पुराणों में है। भगवान कृष्ण-सुदामा के संवाद में भी चावल का जिक्र आता है। भगवान शंकर को चावल के आटे का भोग लगता था। बेलपत्र का महत्व है, इसलिए इसे जुटाया और धोकर साफ कराया गया। सूखने के बाद चूर्ण बनाया और इसे प्रसाद में मिलाया गया। प्रसाद छह महीने तक मंदिर परिसर में ही बिकेगा। 

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