असद एनकाउंटर और अतीक, अशरफ के मर्डर पर चीखने वाली मीडिया अनिल दुजाना, टिल्लू तेजपुरिया और आदित्य राणा एनकाउंटर पर खामोश क्यों?
देश में जब एक समुदाय के लोगों के साथ घटना घटती है तब एक समूह सामने आता है लेकिन वहीं घटना दूसरे समुदाय के साथ घटती है तो खामोशी छा जाती है।
देश में अब एक हवा चल रही है कि एक समुदाय के साथ कोई घटना घटे तो सिम्पेथी लेने की होड मैच जाती है। वहीं मीडिया भी देश में एक नया नेरेटिव गढ़ने लगती है। इस नेरेटिव से देश को बचाना होगा वरना हम बहुत पीछे खिसकते जा रहे है जबकि विश्व में हमें ख्याति नहीं अब नफरत मिलना शुरू हो चुकी है।
बात करेंगे हम अपराधियों की जिनमें गेंगस्टर समेत कई अपराधी मारे गए, जिनमें एक असद अहमद मारा गया जिसका एनकाउंटर यूपी झांसी जिले में हुआ। उसके बाद मेडिकल के लिए ले जाते समय अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी जिकसी चर्चा आज तक हो रही है जबकि घटना हुए लगभग एक माह बीतने जा रहा है।
लेकिन बीते दो माह में तीन दूसरे समुदाय के अपराधियों का भी खात्मा हुआ लेकिन कहीं भी जर्रे भर खबर नहीं दिखाई दी न को मनावाधिकार संघटन सामने आया न ही मीडिया की सुखियाँ बना। अपराधी से जब किसी समुदाय का टेग नहीं हटेगा यही होता रहेगा।
अनिल दुजाना का एनकाउंटर हुआ है उसी उत्तर प्रदेश में जहां असद का हुआ, 21 दिन पहले उसी एक एनकाउंटर को लेकर ख़ूब हंगामा बरपाया जा रहा था। आज किसी ने चूँ तक नहीं किया, आज कोई ट्वीट नही।
वही लोग कह रहे थे अतीक और अशरफ़ का पुलिस की मौजूदगी में कैसे मर्डर हो गया लेकिन टिल्लू तेजपुरिया की हत्या तो जेल में हो गई। कोई हायतौबा नहीं, मेरा सवाल है ऐसा क्यों, ये रोष, ये दुख, ये बयान, लोकतंत्र की हत्या वाली कविता कुछ ख़ास मामलों में ही क्यों बाहर आती हैं।
आज हम खुले मन से चर्चा करें तभी जनता समझेगी। अब जनता भी इस राजनीत में बुरी तरह फंस चुकी है लेकिन उसे निकलने का रास्ता नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि सही होने पर भी गलत नजर आ रहे है। इस मानसिकता से निकल कर आना होगा।