इस बहस में उलझने का कोई मतलब नही, भास्कर के साथ जो हुआ वो सही हुआ या गलत!
इस बहस में उलझने का कोई मतलब नही है कि कल जो भास्कर के साथ जो हुआ !.....वो सही हुआ ? या गलत !
गिरीश मालवीय
इस बहस में उलझने का कोई मतलब नही है कि कल जो भास्कर के साथ जो हुआ !.....वो सही हुआ ? या गलत ! यह सच है कि 2021 में कोरोना की दूसरी लहर से पहले इस अखबार के लगभग सभी संस्करणों में केंद्र में बैठी मोदी सरकार ओर राज्यों की बीजेपी सरकार की खूब क्लास ली गयी है,लेकिन उतना ही सच यह भी है कि 2014 से 2020 तक इन्होंने मोदी और बीजेपी की चाटूकारिता करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी...….
फिलहाल जो पिछले कुछ महीनों से इनके तेवर बदल गए थे एक मित्र ने लिखा है कि ऐसे तो टेलीग्राफ जैसा अखबार बरसो से मोदी सरकार की गलत नीतियों की कड़ी आलोचना करता आया है उसे तो मोदी सरकार ने छुआ तक नही.....
भास्कर की तुलना टेलीग्राफ से नही की जा सकती टेलीग्राफ अंग्रेजी का एलीट क्लास का अखबार है जबकि भास्कर ओर भारत समाचार दोनो हिंदी बेल्ट से, जिसे गोबर पट्टी भी कहा जाता है; ताल्लुक रखते हैं ......भास्कर तो इस पट्टी में देश का सबसे बड़ा अखबार माना जाता है अखबार निकालने के अलावा वह एफएम रेडियो स्टेशन चलाता है, कई शहरों में केबल और डीटीएच भी संचालित करता है और इन सबके अलावा उसका डिजिटल मीडिया में भी बड़ा दखल है जिसे बड़े पैमाने पर यूथ देखता है
यानी भास्कर हिंदी बेल्ट में व्यापक असर रखता है वह यहाँ एजेंडा सेट करने की ताकत रखता है।...... मीडिया का एजेंडा सेटिंग सिद्धांत यह कहता है कि समाचार मीडिया कुछ घटनाओं/मुद्दों को अधिक और कुछ को कम कवरेज देकर लोकतान्त्रिक समाजों में राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक बहसों/चर्चाओं का एजेंडा तय करता है. इस तरह वह देश-समाज की राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक प्राथमिकताओं का भी एजेंडा तय कर देता है.
पिछले कुछ महीने से भास्कर अपनी इसी ताकत का इस्तेमाल कर रहा था वह अपने मुखपृष्ठ के मैटर ओर हेडिंग के जरिए मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा था इसलिए यह मोदी सरकार को नागवार गुजर रहा था
अमेरिकी पत्रकार वाल्टर लिपमैन ने 1922 में अपनी चर्चित पुस्तक 'पब्लिक ओपिनियन' में कहा था कि दरअसल मीडिया ये बताने पूरी तरंह सफ़ल नही हो पाता कि समाज को क्या सोचना है ? बल्कि वह यह बताने में पूरी सफ़ल रहता है कि समाज को किस बारे में सोचना है'
आधुनिक युग मे मीडिया जिन मुद्दो को आगे रखता है वही मुद्दें समाज की प्राथमिकताए बन जाते हैं. आज जिस मुदे को मीडिया बडे ही जोर शोर से उठाता है उसको समाज का समाज ज्यादा सोचे-विचारे बिना ठीक वही नजरिया अपनाने लगता है........ अगर भास्कर कोरोना में सरकारी अक्षमता को लगातार उजागर कर रहा था और महंगे पेट्रोल डीजल ,रॉफेल ओर पैगासस प्रोजेक्ट जैसे मुद्दे उठा रहा था तो इसका असर अगले वर्ष आने राज्यों के चुनाव।पर पड़ना तय था
अगर आज मोदी सरकार भास्कर पर लगाम नही।लगाएगी तो लगाम ही उसके हाथों से छूट जाएगी .......