सरकार अचानक नहीं हटा सकती सीबीआई डायरेक्टर को, करना पड़ता है नियुक्ति और हटाने के बेहद कड़े नियमों का पालन
यूसुफ अंसारी
सीबीआई में दो टॉप के अएधिकारियों के बीच रिश्वत के आरोप प्रत्यारोपों के चलते मोदी सरकार आधी रात को सीबीआई की टीम बदलकर चौतरफ सवालों से घिर गई है. संवैधानिक मामलों के जानकारों का कहना है कि ऐसा करके पीएम मोदी बहुत बड़ी ग़लती कर बैठे हैं. इसका उन्हें खमियाजा भुगतना पड़ सकता है. जानकारों के मुताबिक सीबीआई के डायरेक्टर कार्यकाल पूरे दो साल का होता है. इनकी नियुक्ति एक उच्कीच स्तरीय समिति करती है. कार्यकाल के बीच इन्हें हटाने के लिए इसी समिति की सहमति जरूरी होती है। इस मामले सरकार ने समिति से पूछे बगैर आनन-फानन में फैसला किया है.
जानकारों की राय में सीबीआई डायरेक्टर को एक झटके में नहीं हटाया जा सकता. डायरेक्टर की नियुक्ति की एक प्रक्रिया है. सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति एक उच्च स्तरीय समिति करती है. इस कमेटी के सदस्य प्रधानमंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष होते हैं. समिति अपनी सिफ़ारिश सरकार को भेजती है. इसके बाद सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति होती है. लोकपाल एक्ट आने के बाद साल 2014 से यही प्रक्रिया लागू है. इससे पहले डायरेक्टर को चुनने के लिए पुराने तरीके़ का इस्तेमाल किया जाता था.
सीबीआई से जुड़े नियमों का उल्लेख दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में है. धारा 4(2) के मुताबिक़, अगर डायरेक्टर को चुने जाने वाली समिति का कोई सदस्य मौजूद नहीं रहता है तो नियुक्ति को अवैध नहीं माना जाएगा. यानी कमेटी का कोई सदस्य भी किसी एक नाम पर मुहर लगा सकता है. धारा 4 (B) के मुताबिक़, कार्यभार संभालने की तारीख़ से कम से कम दो साल तक डायरेक्टर पद से कोई हटा नहीं सकता है. इसी क़ानून के मुताबिक़, अगर सीबीआई के भीतर ही कोई ऐसा भ्रष्टाचार का मामला आता है तो इसकी जांच से अलग होगी.
सीबीआई के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर एनके सिंह के मुताबिक कहा, 'सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल कम से कम दो साल का होना चाहिए. सीबीआई के डायरेक्टर की नियुक्ति के बारे में लोकपाल एक्ट में साफ-साफ प्रावधान हैं. इसी प्रावधान के तहत बनी समिति सीबीआई डायरेक्टर को चुनती है. ये समिति ही फ़ैसला करती है कि किसको हटाया जाए और किसको नियुक्त किया जाए.' इस कमेटी तक सीबीआई डायरेक्टर के नाम पहुंचने की भी एक प्रक्रिया और कुछ बारीकियां होती हैं.
अगर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया समिति में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं तो वो सुप्रीम कोर्ट के किसी जज को अपनी जगह भेज सकते हैं.
अगर लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं है तो सदन में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का नेता सर्च कमेटी की बैठकों में हिस्सा लेता है.
सीबीआई डायरेक्टर को चुने जाने की प्रक्रिया गृह मंत्रालय से शुरू होती है.
गृह मंत्रालय में पहले आईपीएस अधिकारियों की एक लिस्ट बनाती है. ये लिस्ट किसी खास क्षेत्र की जांच में अनुभव और वरिष्ठता के आधार पर तैयार की जाती है.
गृह मंत्रालय इस लिस्ट को 'कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग' को भेजता है. इसके बाद अनुभव, वरिष्ठता और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में अनुभव के आधार पर एक फाइनल लिस्ट बनाई जाती है.
सर्च कमेटी इन नामों पर चर्चा करती है और अपनी सिफ़ारिश को भेजती है. इसके बाद कमेटी नाम पर मुहर लगाती है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत के मुताबिक, ''सीबीआई डायरेक्टर को चुनते वक़्त किस बैच के अधिकारी हैं, इस आधार पर भी फ़ैसला लिया जाता है. प्रशांत भूषण कहते हैं, ''सीबीआई निदेशक को हटाने के लिए 'कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग' को हाई लेवल कमेटी के पास ही मामला ले जाना पड़ेगा. इसके लिए एक बैठक बुलाई जाएगी. ये बताया जाएगा कि ये आरोप हैं. आप बताइए कि इनको हटाना है या नहीं. ये फ़ैसला तीन सदस्यीय कमेटी ही करती है, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री, चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया और नेता विपक्ष होते हैं. कैबिनेट कमेटी ऑफ अपॉइंटमेंट के पास भी इस बारे में कोई अधिकार नहीं है. सरकार के पास भी इस बारे में कोई अधिकार नहीं है.'
आलोक वर्मा का कार्यकाल 2019 तक था. उन्हें बीच में अचानक हटा दिया गया. उनकी जगह एम. नागेश्वर राव को अंंतरिम डायरेक्टर बनाया गया है. जिस तरह सरकार ने आधी रात को अचानक यह फैसला किया है उससे साफ ज़ाहिर है कि सीबीआई डायरेक्टर का चयन करने वाली समिति से इसकी सहमति नहीं ली गई है. सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि सीबीआई डायरेक्टर को हटाया नहीं गया है सिर्फ उन्हें छुट्टी पर भेजा गया है. सरकार का तर्क है कि राकेश अस्थाना पर तीन करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगा है और राकेश अस्थाना ने सीबीआई डायरेक्टर पर दो करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप लगाया है. ऐसें में इन दोनों पद पर रहते निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती थी इसी लिए उन्हें छुट्टी पर भेजा गया है. जांच पूरी होने पर आरोप मुक्त होने की स्थिति में वो फिर अपने पद पर वापिस आ सकते हैं.
वहीं छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने खुद को अचानक हटाए जाने के सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है. उनकी याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई होगी. सरकार के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट क्या कहेगा इस पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं.इस मसले पर पीएम मोदी विपक्ष के निशाने पर हैं. उन आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने राफेल मामले का सच सामने आने सो रोकने और अपने चहेते अफसर राकेश अस्थाना को बचाने के लिए ही यह सारी कसरत की है. अब इस पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतेजार है. उसी से पता चलेगा कि सरकार ने यह फैसला निष्पक्ष जांच करान ेके मकसद से किया है या फिर उसकी नीयत में कोई खोट है.