वर्धा। किसान आंदोलन से जुड़े अविनाश काकडे ने कहा है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आनेवाले संसद के शीतकालीन सत्र में इन कानुनों को रद्द करने कि घोषणा की. यह चल रहे अहिंसात्मक आंदोलन की जीत है.
केंद्र सरकारने अगस्त 2020 में 3 कृषि कानून के तहत भारतीय कृषि व्यवस्था को एक नई भी और गलत दिशा दोनों का अंदेशा देश के कृषक समाज को दे दिया था. उसी के वजह से देश भर में लाखों किसान, किसान संगठनों के नेता, चिंतनशील लोग इन कानून के वजह से काफी परेशानी महसूस कर रहे थे. उसी परेशानी को केंद्र सरकार को समझाने के लिए बातचीत के अलावा अन्य तरीकों के तहत 26 नवंबर 2020 से देशभरमें अनेक जगहों पर भारत में किसानों ने अहिंसक धरना सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया था।
दिल्ली के बॉर्डर पर इस आंदोलन कि मुख्य शुरुआत हुई, और बीते दिनों यह किसान आंदोलन देशभरमें बढ़ता ही चला गया . यह आंदोलन इस हद तक बढ़ा कि वह कोई एक नेता ,एक संगठन , एक क्षेत्र से बाहर होकर कही कम, तो कही ज्यादा पैमाने पर देशभरमें फैलता गया.इसमें सैकड़ो किसान संगठन व लाखों किसानों ने शिरकत की .
इस आंदोलन को नियंत्रण में लाना वर्तमान भाजपाई केंद्र सरकार के हाथ का काम नहीं रहा। केंद्र के नरेंद्र मोदी (भाजपा) सरकार ने अपनी पुरजोर कोशिश करके, हर तरह से साम, दाम, दंड और भेदभाव के सारे हथकंडे उपयोग में लाकर भी देश मे किसान आंदोलन को खत्म करने की कोशिशें अबतक नाकाम रही।
पिछले एक वर्ष में केंद्र सरकार ने अमुमन सभी राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल्स, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मारफ़त सरकार की भूमिका को कानून कैसे सही है व किसान आंदोलन आम जनता के खिलाफ कैसे है, यह देश के लोगों समझाने मे अपनी पुरी ताकत झोंक दी थी. अपनी झुठी बातों को बार बार अलग अलग तरीके से इन न्यूज चैनल्स के द्वारा समझाते रहे. अलग अलग सरकार के कार्यक्रम व पार्टी के अभियान के द्वारा किसान आंदोलन मे शिरकत करनेवाले लोग सरकार के विरोध में कैसे है, मतलब वह देश के खिलाफ है, देशद्रोही है ऐसे क्या क्या लांछन इस दौरान नहीं लगाए होंगें. किसान आंदोलन को बदनाम करने का कोई एक मौका अबतक वर्तमान केंद्र के नरेंद्र मोदी सरकार ने नहीं गवाया.
बनिस्बत किसान आंदोलन के साथियों ने अपने त्वरा, तीव्रता, तत्परता ,उत्साह और धैर्य को खोया नहीं. इस पूरे आंदोलन को अहिंसक व शांतिमय तरीके से और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ सामूहिक रुप से चलाया गया, यह इस आंदोलन की बहुत बड़ी उपलब्धि है . धीरे धीरे यह आंदोलन देशभरमें फैलता गया. वर्धा महाराष्ट्र मे मुख्यत: गांधीजी, विनोबा के सर्वोदय विचारधारा के साथियों ने इस आंदोलन को निरंतर चलाने मे अहम् भुमिका निभाई. विदर्भ में किसान अधिकार अभियान, महिला किसान अधिकार मंच व 40 जन संगठनो के साथ साथियों ने इस आंदोलन के माध्यम से लोगो को जागरुक करने का गांव गांव-गांव में अभियान चलाया. राष्ट्रीय आंदोलन की घोषणा के तहत प्रतीकात्मक आंदोलन भी समय समय पर किए गये.
26 नवंबर 2020 से शुरू हुए इस आंदोलन को अभी 8 दिन के बाद एक वर्ष पूरा होने को जा रहा है . ठंड में, बारिश में, धूप में रास्ते पर लाखों किसान बैठे रहे, आंदोलन में पाच सौ से ज्यादा किसान कि मौत हुई. सेकडो किसान सरकारी दमन के शिकार हुए. बावजूद अपनी जायज मांग के लिए सरकार के सामने अपनी बातें मानवीय तरीके से कहते रहे। बार-बार कहते रहे शांतिपूर्वक कहते रहें।
कल हमने देखा कि आज पंतप्रधान नरेंद्र मोदी जिन्होंने आज सुबह में कहा कि हम यह तीनों कृषि कानून वापस लेते हैं. लेकिन यह कहते हुए उन्होंने यह भी कहा कि यह तीनों कानून जो है, किसान की भलाई के लिए ही लाए थे. मतलब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को मजबूरी के से स्वीकार करना पड़ा कि हमको यह कानून वापस लेने पड़ेंगे, जबकि उनकी अंदरूनी इच्छा इन काले कानून को वापस लेने की नहीं थी। यह आज के उनके वक्तव्य से जाहिर होता है.
किसानों के ऊपर यह जो तीन काले कानून थोपने की कोशिश केंद्र सरकार ने अगस्त 2020 में की गई थी। उसमें एक तो यह है कि कृषि मंडी कानून को बायपास करके यह व्यापारियों को देशभरमें अपनी मनमर्जी कृषि उत्पादों को खरीदने पर किसी प्रकार का कोई बंधन अब नहीं रहेगा.
दूसरा उन्होंने इसेंशियल कमोडिटी एक्ट के तहत व्यापारी है उन्हे कृषि उत्पाद को खरीदने की एक आदर्श मर्यादा थी, उस मर्यादा को सरकार ने खत्म करके बेतहाशा वह जमाखोरी करने की छूट बडे व्यापारी को मिलनी थी. मतलब कानून के तहत जमाखोरी कि इजाजत. उससे बडे व्यापारियों की ताकत बढ़ती कि उससे उत्पादकों भाव का नियंत्रण पूंजिपतियों के हाथ में चला जाता. इससे किसान के न्यनतम मुल्य (msp) कि मांग खारिज हो जाने वाली थी. किसान के हाथ से माल जाने के बाद भाव के बढ़ने की जो संभावना बढ़ने वाला संकट भी हमारे सर के ऊपर मंडरा रहा था. और तीसरा है ठेके पर खेती पद्धति देश में अमुमन एक हेक्टर से कम खेती है ऐसे खेती करने वाले किसान को कॉन्ट्रैक्ट के तहत बांधकर खेती से बेदखल करने की कोशिश इसमें दीख रही थी. और इसमें कुछ बड़े प्लेयर्स को लाने की प्रक्रिया चलाई जा रही थी.
इस कानून के तहत देश के ग्रामीण कृषि व्यवस्था को तहस-नहस करने की प्रक्रिया केंद्र सरकार चला रही है. इसके खिलाफ एक वातावरण देश में बनाने की कोशिश देश के लाखों किसानों ने इस आंदोलन में सहभागी होकर किया.
इस आंदोलन को खड़ा करने के लिए देश में कृषि में काम कर रहे अभ्यासक और संगठनों के अंदर किसान आंदोलनों के नेता लोगों ने अपनी एकजुट दिखाई. इन कानूनों का अध्ययन किया. सरकार के साथ वार्तालाप किया . सरकार ने अपनी बातें लादने की कोशिश की थी उस सब को पीछे धकेल देते हुए सरकार को यह बताया कि आपकी जो मंशा है वह गलत है , और आम लोगों के खिलाफ है. आप को यह कानून वापस लेने होंगे और पहले की व्यवस्था पूर्ववत रहे.
नरेंद्र मोदी जी को घोषित करना पड़ा कि मैं इस तीनों कृषि कानून को वापस लेने जा रहा हूं। इससे हम देख रहे हैं कि देश का बहुत दिनों के बाद बहुत लंबे समय तक चला यह राष्ट्रीय स्तर पर किसानों के खिलाफ जो कानून उसे रद्द करने का यह आंदोलन कुछ अंश में सफल हुआ है ऐसा हमे मानना चाहिए. इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया तहत आंदोलन चलाने वाले निर्भीक हजारों साथियोका और उन लोगों का जिन्होंने अपना बलिदान इसमें दिया, हम विनम्रतापूर्वक अभिवादन करते हैं और उन सब लोगों का अभिनंदन करते है. आंदोलन के जय के लिए सभी लोगों को सलाम करते है.
सरकार से किसान आंदोलन की मांगे कुछ और थी, और सरकार ने उलटी दिशा में परिवर्तन करके परेशानी और बढा दी थी. उसे ठिकाने पर लाने के लिए एक साल तक यह लगातार आंदोलन करना पडा. खैर अब इन काले कृषि कानुन को वापिस लेने के बाद अब किसान के हको की लडाई का दौर फिरसे शुरू होगा. लागत मुल्य पर वाजिब दाम, किसान के अपने हको का बाजार का सवाल,सबके सिंचन की व्यवस्था, कृषि फसल के आसान कर्ज, जमीन अधिग्रहण कि शर्ते और फसलो के बिमा के सवालो पर केंद्र सरकार से लडाई जारी रहेगी.