जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने किया सवाल, नकलची ऐंकर। सांप्रदायिक तेवर। हमारे टीवी मीडिया में सर्वश्रेष्ठ?
Former editor of Jansatta Om Thanvi questioned: दिल्ली पत्रकारों का एक सम्मान समारोह चर्चा में है। इतनी लम्बी सूची है पुरस्कारों की कि गिनते हुए थक जाएँ। मेरे मित्र हरिवंश और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कितने धैर्य से उन्हें बाँटा होगा।
बैस्ट हिंदी ऐंकर का सम्मान जानते हैं किसे मिला है? अमीश देवगन को। नकलची ऐंकर। सांप्रदायिक तेवर। हमारे टीवी मीडिया में सर्वश्रेष्ठ?
आजकल यही धंधा है। देने वाले बहुत हो गए। लेने वालों को ढूंढ़ते हैं। जिन्हें मिल गया, सोशल मीडिया के ज़माने में वही उनका प्रचार कर निहाल कर देते हैं। ख़ुद निहाल हो जाते हैं। मुझे मिल गया, मुझे भी मिल गया। आत्ममुग्ध समवेत।
पत्रकार मित्र दिलीप मंडल का कहना है कि दिल्ली में ऐसे 17,000 अवार्ड हर साल बँटते हैं।
राजस्थान में भी इनकी गति बढ़ती जा रही है। जिधर देखो मुझे भी मिला, मुझे भी। जो दे उसी से ले आते हैं। फिर ढिंढोरा पीटते हैं। अपने मुँह मियाँ मिट्ठू।
जब-तब मुझे भी ऐसे मेहरबानों के फ़ोन आते हैं। पिछले दिनों जयपुर के एक दाता ने तो मेरी तसवीर के साथ अवार्ड घोषणा का फ़्रेम कराने लायक प्रारूप ही बनाकर भेज डाला।
बोले – मंज़ूर है? मैंने कहा – नहीं। आप देने वाले कौन? और मैं लेने वाला कहाँ का! न आपने कोई साख अर्जित की है पुरस्कारों से नवाज़ने जैसी, न मैंने कुछ ऐसा किया है अवार्ड पाने के क़ाबिल। बहरहाल, धन्यवाद।
सम्मान ऐसा हो जिसमें जूरी की साख हो। पुरस्कार के पीछे प्रचार पाने, व्यापार बढ़ाने या टैक्स बचाने जैसे छिपे मक़सद न हों। कम लोगों को दें, मगर पाने वाले को कुछ दें भी। यह नहीं कि प्रशस्ति तो हो सुदीर्घ और हाथ में थमा दें अपने ही संस्थान का एक कैलेंडर, डायरी और श्रीफल!