नाम और व्यवहार की धार्मिकता तथा ‘राष्ट्रवाद’ की दो खबरें और उनकी प्रस्तुति देखिये
Righteousness of name and behavior and two news of 'nationalism' and watch their presentation
आज के सभी अखबारों ने इसरो की उपलब्धि का श्रेय लेने की प्रधानमंत्री कोशिश को लीड बनाया है। सिर्फ द टेलीग्राफ ने बताया है कि इसमें आस्था और राष्ट्रवाद भरा हुआ है। उसपर आने से पहले टेलीग्राफ के शीर्षक की भी चर्चा कर लूं। मुख्य शीर्षक, ऊपर शिवशक्ति और नीचे बर्बरता - मुजफ्फरनगर के एक स्कूल की शिक्षिका द्वारा एक बच्चे को दूसरे बच्चे से पिटवाने के तात्कालिक और दूसरे संदर्भ में है। मुजफ्फरनगर की यह खबर भी यहां पहले पन्ने पर है और लीड का उपशीर्षक है, हमारे बच्चों को घृणा से कौन से भगवान बचाएंगे। इसके अलावा, इंडियन एक्सप्रेस ने एक अलग खबर से बताया है कि प्रधानमंत्री ने शिवशक्ति को सार्वभौमिक कल्याण, महिला शक्ति से जोड़ा है।
नाम में आस्था और राष्ट्रवाद की चर्चा करने से बेहतर है कि मैं पीआईबी की हिन्दी की विज्ञप्ति से संबंधित अंश कॉपी पेस्ट कर दूं। उसके बाद इसपर और दूसरी खबरों की बात करूंगा, “साथियों, मैंने वो फोटो देखी, जिसमें हमारे मून लैंडर ने अंगद की तरह चंद्रमा पर मजबूती से अपना पैर जमाया हुआ है। एक तरफ विक्रम का विश्वास है तो दूसरी तरफ प्रज्ञान का पराक्रम है। हमारा प्रज्ञान लगातार चंद्रमा पर अपने पद चिह्न छोड़ रहा है। .... मानव सभ्यता में पहली बार धरती के लाखों साल के इतिहास में पहली बार उस स्थान की तस्वीर मानव अपनी आंखों से देख रहा है और ये तस्वीर दुनिया को दिखाने का काम भारत ने किया है, आप सभी वैज्ञानिकों ने किया है।
“.... चंद्रयान महाअभियान सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरी मानवता की सफलता है। हमारा मिशन जिस क्षेत्र को एक्सप्लोर करेगा, उससे सभी देशों के लिए मूल मिशंस के नए रास्ते खुलेंगे। ये चांद के रहस्यों को तो खोलेगा ही साथ ही धरती की चुनौतियों के समाधान में भी मदद करेगा। .... मेरे परिवारजनों, आप जानते हैं कि स्पेस मिशन्स के टचडाउन प्वाइंट को एक नाम दिए जाने की वैज्ञानिक परंपरा है। चंद्रमा के जिस हिस्से पर हमारा चंद्रयान उतरा है, भारत ने उस स्थान के भी नामकरण का फैसला लिया है। जिस स्थान पर चंद्रयान-3 का मून लैंडर उतरा है, अब उस पॉइंट को, ‘शिवशक्ति’ के नाम से जाना जाएगा। शिव में मानवता के कल्याण का संकल्प समाहित है और ‘शक्ति’ से हमें उन संकल्पों को पूरा करने का सामर्थ्य मिलता है।
“चंद्रमा का ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट, हिमालय के कन्याकुमारी से जुड़े होने का बोध कराता है। हमारे ऋषियों ने कहा है- येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्व यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिव-संकल्प-मस्तु। अर्थात्, जिस मन से हम कर्तव्य-कर्म करते हैं, विचार और विज्ञान को गति देते हैं, और जो सबके भीतर मौजूद है, वो मन शुभ और कल्याणकारी संकल्पों से जुड़े। मन के इन शुभ संकल्पों को पूरा करने के लिए शक्ति का आशीर्वाद अनिवार्य है। और ये शक्ति हमारी नारीशक्ति है। हमारी माताएं बहनें हैं। हमारे यहाँ कहा गया है- सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। अर्थात्, निर्माण से प्रलय तक, पूरी सृष्टि का आधार नारीशक्ति ही है।
“आप सबने देखा है, चंद्रयान-3 में देश ने हमारी महिला वैज्ञानिकों ने, देश की नारीशक्ति ने कितनी बड़ी भूमिका निभाई है। चंद्रमा का ‘शिवशक्ति’ प्वाइंट, सदियों तक भारत के इस वैज्ञानिक और दार्शनिक चिंतन का साक्षी बनेगा। ये शिवशक्ति प्वाइंट, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देगा कि हमें विज्ञान का उपयोग, मानवता के कल्याण के लिए ही करना है। मानवता का कल्याण यही हमारा सुप्रीम कमिटमेंट है।“
कहने की जरूरत नहीं है कि नामकरण को लेकर यह उत्साह और जल्दबाजी 2014 चुनाव से पहले किये जाने वाले प्रधानमंत्री के दावे, मेरा कोई नहीं है का नुकसान (या फायदा) है। मुझे लगता है कि नाम रखने का उनका शौक पूरा नहीं हुआ है और अखबार बता रहे हैं चांद पर भारत की पहचान का नाम शिवशक्ति पॉइंट प्रधानमंत्री ने रखा है। 23 अगस्त को राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाया जाएगा। अमर उजाला ने पहले पन्ने की एक खबर, 'प्रण था .... एक साथ करेंगे नामकरण' में बताया है, चार साल पहले जिस स्थिति-परिस्थिति में चंद्रयान-2 पहुंचा तब हमने प्रण लिया कि जब चंद्रयान-3, सफल लैडिंग करेगा तभी दोनों प्वाइंट का एक साथ नामकरण किया जाए। आज जब हर घर तिरंगा है, जब हर मन तिरंगा है और चांद पर भी तिरंगा है, तो ‘तिरंगे’ के सिवाय, चंद्रयान 2 से जुड़े उस स्थान को और क्या नाम दिया जा सकता है? इसलिए, चंद्रमा के जिस स्थान पर चंद्रयान 2 ने अपने पदचिन्ह छोड़े हैं, वो प्वाइंट अब ‘तिरंगा’ कहलाएगा।
प्रधानमंत्री की कोशिश, पीआईबी की विज्ञप्ति के बाद अब अखबारों का उत्साह भी देख लीजिए। अमर उजाला में फ्लैग शीर्षक है, पीएम मोदी दक्षिण अफ्रीका व ग्रीस से लौटते ही इसरो वैज्ञानिकों से मिले। उपशीर्षक है, सोमनाथ की पीठ थपथपाकर गले लगाया, वैज्ञानकों को किया सैल्यूट। मुख्य खबर के साथ अमर उजाला की एक खबर का शीर्षक है, भारत में सबसे पहले आप से मिलना चाहता था। नवोदय टाइम्स का उपशीर्षक भी ऐसा ही है, एथेंस से सीधे बेंगलुरु पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी , इसरो के वैज्ञानिकों से मिले।
हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने इसरो के हीरो की प्रशंसा की : 23 अगस्त राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस घोषित किया गया।
भारतीय राजनीति और अमृतकाल की रिपोर्टिंग
मुजफ्फरनगर के एक निजी स्कूल में शिक्षिका (स्कूल की मालकिन) ने एक बच्चे को दूसरे बच्चों से पिटवाया और नाराजगी दिखाई कि बच्चे जोर से नहीं मार रहे थे। इसका वीडियो वायरल होने के बाद से मामला चर्चा में है। इसकी खबर आज के अखबारों में पहले पन्ने पर है। आज जो छपा है वह खबर के लिहाज से भले पुराना है पर नया तथ्य यह है कि शिक्षक को गिरफ्तार नहीं किया गया है। पर नए तथ्यों के आलोक में ज्यादातर अखबारों का शीर्षक यही है कि मुकदमा दर्ज हो गया। जबकि स्कूल की मान्यता खत्म हो चुकी थी, उसे अब नोटिस देकर पूछा गया है कि क्यों नहीं मान्यता रद्द कर दी जाये। पर यह सब शीर्षक में नहीं है।
यह डबल इंजन वाले उत्तर प्रदेश का मामला है। बुलडोजर न्याय की तेजी जानने वाले समझ रहे हैं कि खबर क्यों नहीं छपी लेकिन आज पहले पन्ने पर बताया गया है कि प्राथमिकी दर्ज हो गई है। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस ने एक दिन या 24 घंटे पहले छाप दी थी। यह खबर वीडियो पर आधारित थी या उसकी कहानी थी पर यह भी बताया गया था कि मुजफ्फरनगर के एसपी ने कहा था कि कार्रवाई करेंगे। कार्रवाई तो नहीं ही हुई है, डबल इंजन सरकार के दोनों इंजन ने इसपर कुछ नहीं बोला है और इसपर कपिल सिबल का सवाल किसी खबर में नहीं है।
खबर यह भी है कि किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत ने समझौत करवा दिया और इस प्रकार यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि कार्रवाई कोई नहीं चाहता है। पीड़ित परिवार पर इसका दबाव और लोगों के साथ किसान नेता परिवार का भी हो सकता है। हालांकि कि बच्चे के पिता कह चुके हैं कि वे पुलिस और अदालत के चक्कर लगाना नहीं चाहते हैं। ऐसे में बात बढ़ेगी तो बढ़ाने वाले त्यागी परिवार के विरोधी हो जाएंगे। अखबारों की हैसियत नहीं है और नेता ऐसा करेंगे तो त्यागी समाज का नाराज करेंगे। इसलिए कुछ होने की संभावना नहीं है। जाहिर है, भारतीय राजनीति में वोट व नोट किसी को कुछ करने नहीं देता है।
इससे पहले बच्चे को बच्चों से पिटवाने वाली शिक्षिका का 'माफीनामा' आ चुका है। वे खुद को विकलांग (दिव्यांग) बता रही हैं और इसलिये बच्चों को बच्चों से पिटवाने का काम करती थीं। उनके अनुसार, वीडियो संपादित भी है। 'सरकार' को एतराज है कि बच्चे की पहचान उजागर हो जा रही है। शिक्षक के समर्थक और प्रचारक कह रहे हैं कि पहले भी वे ऐसा करती रही हैं। पर पहले वाले बच्चे का इस्तेमाल विक्टिमहुड के लिए नहीं हो सकता है। इसलिए मामला खत्म कर दिया जाये। तो हुआ यह कि जिसे जेल में होना चाहिये था उसे बचा लिये जाने के लक्षण पूरे हैं। पहचान उजागर होने के नाम पर वीडियो का फैलना रुक गया और दूसरी संस्थाएं भी सक्रिय हो गई हैं।
आज के अखबारों के अनुसार
1. तृप्ता त्यागी की गिरफ्तारी अभी नहीं हुई है।
2. आप स्कूल की शिक्षक ही नहीं, मालकिन भी हैं।
3. पीड़ित परिवार पर दबाव है शिकायत न करे / वापस ले
4. बुलडोजर न्याय के जमाने में एफआईआर लिखकर ....
5. पर बुलडोजर न्याय निष्पक्ष होता तब ना?
6. वीडियो बनाने वाला बच्चे परिवार का रिश्तेदार है
7. टिकैत और दूसरे लोगों ने बच्चों को गले मिलवा दिया
8. स्कूल घर से चलता है
9. 2019 में तीन साल की मान्यता मिली थी
10. अब मान्यता रद्द करने के लिए नोटिस
इसके बावजूद कुछ शीर्षक हैं
1. अध्यापिका के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज (नवोदय टाइम्स)
2. शिक्षिका के खिलाफ केस दर्ज, बाल आयोग ने लिया संज्ञान (अमर उजाला)
अंग्रेजी अखबारों में भी शीर्षक यही है। दो अपवाद इस प्रकार हैं
1. उत्तर प्रदेश के गांव में जहां लड़के को कक्षा में पीटा गया था, रिश्तेदारों पर समझौते के लिए दबाव (इंडियन एक्सप्रेस)
2. छात्र की पिटवाई करने वाली शिक्षिका की नजर में मामला इतना बड़ी नहीं था कि राहुल गांधी ट्वीट करते (द टेलीग्राफ)
इसके अलावा कपिल सिब्बल ने जो सवाल उठाया है वह भी किसी अखबार की खबर का शीर्षक नहीं है। द टेलीग्राफ का आज का क्वोट यही है - अगर सही हो तो क्या योगी जी बोलेंगे? क्या मोदी जी सार्वजनिक तौर पर इसकी निन्दा करेंगे? क्या शिक्षक के खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा? या घृणा की संस्कृति को फलने-फूलने दिया जाएगा? कहने क जरूरत नहीं है कि यह अमृतकाल की रिपोर्टिंग है।