आजादी के आंदोलन का साक्षी स्वराज आश्रम विहपुर
1930 में विहपुर स्वराज आश्रम को लेकर जब सत्याग्रह हुआ और अंग्रेजी सल्तनत का दमनचक्र चला था तथा उस दमन चक्र की जानकारी....
बिहपुर बाजार स्थित ऐतिहासिक स्वराज आश्रम का आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण स्थान है। यहां स्वतंत्रता सेनानियों का जमघट लगता था। वतनपरस्ती का जुनून ऐसा था कि कि घर-परिवार को भूल यहां आशियाना बनाकर रहा करते थे।
1930 में विहपुर स्वराज आश्रम को लेकर जब सत्याग्रह हुआ और अंग्रेजी सल्तनत का दमनचक्र चला था तथा उस दमन चक्र की जानकारी प्राप्त करने देशरत्न डाॅ राजेन्द्र प्रसाद विहपुर गए थे तो प्रो अब्दुल वारी सहित उन्हें भी विहपुर बाजार में अंग्रेजी बर्बरता का शिकार होना पड़ा था। भागलपुर के खंजरपुर मुहल्ले बाबू अनंत प्रसाद और सहाय परिवार के कमलेश्वरी सहाय घटनास्थल पर उपस्थित थे। उस बर्बरता को देखते हुए दोनो ने कौसिल की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इस कांड की गूंज राष्ट्रीय स्तर पर हुई है।यह खबर अखबार यंग इंडिया में प्रमुखता से छपी थी।
विहपुर स्वराज आश्रम का सत्याग्रह भागलपुर में 1917 में बिहारी छात्रों के सम्मेलन की परिणति थी। इस सम्मेलन में महात्मा गांधी, सरोजनी नायडू , राजेन्द्र बाबू सहित कई राष्ट्रीय नेताओं ने हिस्सा लिया। इस आंदोलन के फलस्वरूप अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार बनी। आज भी इस आश्रम के प्रति बिहपुर समेत इलाके के लोगों की आस्था आज भी कायम है।
9 जून 1930 को प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न स्व. राजेन्द्र प्रसाद के कदम बिहपुर की धरती पर पड़े थे। सूचना मिलते ही ब्रिटिश सरकार ने उन पर लाठी बरसाने का सिपाहियों को आदेश दिया। सिपाहियों ने भी बखूबी आदेश का पालन किया, लेकिन उस समय दर्जनों स्वतंत्रता सेनानी राजेन्द्र बाबू के शरीर पर लेट गए और ब्रिटिश सरकार की लाठियां खाईं।
जब फिरंगियों का मन नहीं भरा तो राजेन्द्र बाबू को गिरफ्तार कर बिहपुर रेल पुलिस के हाजत में बंद कर दिया था। ये बात उन दिनों की है जब बिहपुर के स्वराज आश्रम स्वराज को फिरंगियों ने अपने कब्जे में ले लिया था और आश्रम को मुक्त कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानियों ने विद्रोह छेड़ रखा था। उन दिनों यह आश्रम स्वतंत्रता सेनानियों की शरण स्थली था। यही बैठकर स्वतंत्रता सेनानी फिरंगी से निपटने व अन्य दूसरे मुद्दों पर इकट्ठा होकर विचार-विमर्श किया करते थे।
इतिहास के जानकार बताते है की नमक सत्याग्रह व राष्ट्रीय झंडा फहराने को लेकर फिरंगियों ने स्वतंत्रता सेनानी व अन्य पर कई तरह से जुल्म ढाहे थे। 31 मई 1930 के दिन भागलपुर जिला पदाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपाधीक्षक व पुलिस बल के साथ बिहपुर पहुंचे और स्वतंत्रता सेनानियों को पीटने का फरमान जारी किया था। 9 जून, 1930 को बिहपुर आए थे प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद धरना दे रहे थे।
एक जून को नशाबंदी को लेकर बिहपुर में स्वतंत्रता सेनानियों व ग्रामीण गांजे व शराब की दुकान पर धरने पर बैठे थे। पीछे नहीं हटे तो पुलिस ने स्वतंत्रता सेनानियों को जमकर पीटा और कांग्रेस भवन को कब्जे में ले लिया। उन दिनों कांग्रेस भवन व खादी भंडार का ऑफिस साथ ही था।
फिरंगियों ने राष्ट्रीय झंडा, चरखा, सूत, खादी का कपड़ा बाहर फेंक दिया। 2 जून 1930 को स्वतंत्रता सेनानियों ने कांग्रेस भवन को कब्जे में करने के लिए बगीचे में बैठक की। फिर 6 जून को दूसरी बैठक में उन्हें फिरंगियों द्वारा पीटा गया। मामला पटना कार्यालय तक पहुंच गया। 9 जून 1930 को उसी बगीचे में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, बलदेव सहाय, मुरली मनोहर प्रसाद, प्रो. अब्दुल बारी समेत कई स्वतंत्रता सेनानी इकट्ठा हुए थे। जिन पर लाठियां बरसाई गई। इसमें राजेन्द्र प्रसाद घायल हुए थे।
बिहपुर का स्वराज आश्रम इस घटना का साक्षी है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने आत्मकथा में इस घटना का जिक्र किया है। राजेन्द्र घायल नेताओं को भागलपुुर लाया गया और दल्लू बाबू के धर्मशाला तथा शुभकरण चुड़ीवाला के निवास पर राजेन्द्र बाबू का गुप्त रूप से इलाज चला। बिहपुर के सत्याग्रह ने राष्ट्रीय आंदोेेलन का रूप ले लिया।
(कुमार कृष्णन)