पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बजाय गोवा में ममता बनर्जी की सक्रियता के मायने
निखिल कुमार सिंह पत्रकार जुड़ापुर, जौनपुर, उत्तर प्रदेश
पश्चिम बंगाल से उत्तर प्रदेश की दूरी 920 किलोमीटर है और गोवा की दूरी 2140 किलोमीटर है, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर पड़ोसी राज्य के बजाय ममता बनर्जी की सक्रियता दूर के राज्य गोवा में क्यों है? आपने सुना होगा राजनीति में हमेशा नजदीकी फासला देखकर चला जाता है। लेकिन ममता बनर्जी की उत्तर प्रदेश के बजाय गोवा में उनकी सक्रियता ने राजनीति में एक अलग तरह की परिभाषा को जन्म दे दिया है और सोचने को मजबूर कर दिया है।
ममता बनर्जी 403 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधानसभा के बजाय 40 सदस्यीय विधानसभा राज्य गोवा में ज्यादा अवसर देख रही हैं। इसके कई वजह हो सकते हैं। मुख्य वजह हो सकता है कि गोवा की राजनीति में कोई मजबूत विपक्ष का ना होना। जब 2017 में गोवा विधानसभा का चुनाव हुआ था तो 40 विधानसभा सीट वाले गोवा में कांग्रेस 17 सीटों पर जीती थी, भाजपा 13 सीटों पर जीती थी और बाकी 10 अन्य दल और निर्दलीय थे। 17 सीटों पर जीती कांग्रेस 2017 में गोवा में सरकार बनाने से वंचित रह जाती है। गोवा भाजपा के सादगीपसंद नेता पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मनोहर पर्रीकर जी उस समय केंद्र में रक्षा मंत्री थे। गोवा भाजपा के परिणाम से काफी नाखुश थे और गोवा में भाजपा की सरकार बनाने के लिए वह वापस गोवा चले आए। 13 सीट पाने वाली भाजपा की गोवा में सरकार बन जाती है। उस समय जब उनसे पत्रकार वार्ता में पूछा गया आप ने रक्षामंत्री से त्यागपत्र देकर गोवा का मुख्यमंत्री बनना उचित क्यों समझा, तब उनका जवाब था "मैं दिल्ली में ज्यादा अंडर प्रेशर महसूस कर रहा था, जबकि मैं गोवा में एकदम पूरी तरह से स्वतंत्र महसूस करता हूं।" लेकिन उनके इस बयान का अर्थ ही कुछ और था। तब से गोवा में एक मजबूत विपक्ष आवश्यकता महसूस की जाने लगी। 2017 के बाद से कांग्रेस का जनाधार गोवा में लगातार घटता चला गया। कांग्रेस के दिग्गज चाहते तो भाजपा का दामन थाम सकते थे। लेकिन अपनी राजनीति को धार देने के लिए उन्हें नई जमीन की तलाश थी।
ममता बनर्जी लगातार तीसरी बार बंगाल की मुख्यमंत्री बनी हैं। तब से उनके हौसले बुलंद हैं। बुलंद हो तो वह भी क्यों नहीं, होनी चाहिए। बंगाल चुनाव के नजारे पर अगर नजर डाला जाये तो बंगाल में सीधी लड़ाई ममता बनर्जी की पार्टी और भारतीय जनता पार्टी से थी। बंगाल में जो कुछ हुआ वह सबने देखा है। बंगाल में हुआ यही कि एक महिला को हराने के लिए केंद्र सरकार ने अपने तमाम केंद्रीय मंत्रियों, बीजेपी शासित राज्य के मुख्यमंत्रियों को बंगाल में लगा दिया था। पूरे भारत में यह खबर आग की तरह फ़ैल गई, कैसे एक महिला को हराने के लिए कई सारे लोग लामबंद हो चुके है। लेकिन भाजपा का यह तरीका पूरी तरह से असफल रहा और फायदा ममता बनर्जी को मिला। उसका अंजाम यह हुआ कि ममता बनर्जी आज विपक्ष की एक प्रमुख नेता के रूप में शुमार के बजाय स्थापित हो चुकी है। यही गोवा स्वीकार किया जा रहा है कि गोवा में ममता बनर्जी ही विपक्ष की मुख्य नेता है। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में ममता बनर्जी का सक्रिय न होना यह भी बतलाता है कि ममता बनर्जी को पता है की उत्तर प्रदेश में सपा के रूप में एक बड़ा मजबूत विपक्ष है। इसीलिए बेवजह किसी को नुकसान पहुंचाकर हम राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विपक्ष का किला न धराशाई करवा बैठे।
गोवा में टीएमसी पहली बार चुनाव नही लड़ रही है। 2017 में भी टीएमसी ने चुनाव लड़ा था। तब उसे महज डेढ़ प्रतिशत वोट हाथ लगे थे। 2022 में फरवरी में गोवा विधानसभा चुनाव होने की प्रबल संभावना है। गोवा चुनाव की तैयारियों में उनके मुख्य सूत्रधार हैं, बंगाल चुनाव में टीएमसी की जीत में रणीतिकार रहे प्रशांत किशोर। प्रशांत किशोर ने बंगाल में टीएमसी की तीसरी सरकार बनवाने में एक बड़ी ही और सुनियोजित रणनीति तैयार की थी और इसी रणनीति से खुश होकर ममता बनर्जी ने प्रशांत किशोर को गोवा का भी जिम्मा दे डाला। प्रशांत किशोर की कंपनी के करीब 200 विशेषज्ञों की एक टीम गोवा में पिछले 6 महीने से इस पर काम कर रही है। लेकिन गोवा में टीएमसी के पास ना कोई मजबूत नेता है ना कोई जमीन से जुड़ा नेता है। इस कमी को भी पूरा करने के लिए ममता बनर्जी ने गोवा के उन बड़े नेताओं को अपने पाले में लाने की कोशिश की है। जो राज्य में गोवा विधानसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल के बजाय गोवा में टीएमसी सरकार बना दे। इसके लिए पूर्व रेल मंत्री ममता बनर्जी की नेताओं को चुन चुन कर अपने पाले में लाने की रेलगाड़ी चल चुकी है। अब कांग्रेस के बागियों के साथ-साथ कई दलों के नेताओं को भी अपने पाले में लाने की सफल कोशिश शुरू कर चुकी है। इसी कड़ी में सफलता लगी है कांग्रेस पार्टी के गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो के रूप में और साथ-साथ कांग्रेस के कई बड़े नेता भी अब टीएमसी का दामन थाम चुके हैं।
टीएमसी में शामिल होने से पूर्व लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था। उस पत्र में लिखा था " 2017 के विधानसभा चुनाव में हमारे पास 17 सीट थी और हमें समर्थन देने वाले पांच विधायक भी हमारे साथ थे। हम सरकार बनाने की तैयारी में थे। तब दिग्विजय सिंह ने हमें 24 विधायकों तक इंतजार करने को कहा था और इसी इंतजार का फायदा बीजेपी ले उड़ी।" अपने इस पत्र के माध्यम से लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस की व्यापक रणनीति कमजोरियों को उजागर किया था। जिसकी वजह गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ा दल होने के बावजूद भी सरकार बनाने से वंचित रह गई।
पूर्व रेलमंत्री ममता बनर्जी की रेलगाड़ी चुन चुन कर लोगों को लाने की कोशिश अभी रुकी नहीं है। इसी कड़ी में अब उनके साथ है प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी और ओलंपिक पदक विजेता लिएंडर पेस। देखा जाएगा ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले लिएंडर पेस ममता बनर्जी को गोवा में कितनी मजबूती दिला पाएंगे।
बड़े नेताओं का साथ आना कोई छोटी बात नहीं है। इससे यह अंदेशा लगाया जा सकता है कि गोवा में टीएमसी का जनाधार कितनी तेजी के साथ आगे बढ़ता जा रहा है। क्या गोवा चुनाव में भी बंगाल चुनाव की तरह "खेला होवे" होगा। हो भी सकता है, क्योंकि जो फुटबाल का खेल पश्चिम बंगाल में प्रसिद्ध है वही फुटबॉल का खेल गोवा में भी प्रसिद्ध है। यह भी हो सकता है, जिस तरह बंगाल चुनाव में मंच से फुटबाल फेंककर "खेला होवे" को धार दिया गया था। वही धार गोवा चुनाव में भी दोहराए जाने की कोशिश होगी।
एक मुद्दा यह भी हो सकता है गोवा भाजपा में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। उसके अधिकांश नेता विभिन्न दलों से आए नेताओं को भाजपा में शामिल किए जाने को लेकर नाराज चल रहे हैं। खुद दिवंगत मनोहर पर्रीकर के पत्र उत्पल पर्रीकर नाराज चल रहे हैं। जिन्होंने भाजपा में कांग्रेस विधायकों के शामिल होने पर नाराजगी व्यक्त की और कहा " गोवा भाजपा अब मेरे पिता के बताए हुए रास्ते से एकदम विपरीत चल रही है, मेरा मेरे पिता के निधन के बाद से गोवा भाजपा बिल्कुल बदल चुकी है।" मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चाहती तो भाजपा के नाराज नेता बड़े नेताओं को अपने पाले में ला सकती हैं। लेकिन ममता बनर्जी की सीधी लड़ाई भाजपा से ही है और वह चुनाव पूर्व भाजपा के बड़े नेताओं को लाकर पहले से आए कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ भीतरी कलह पैदा नही करना चाहती है। इसीलिए ममता बनर्जी भाजपा के स्थानीय और जमीन से जुड़े नेताओं पर निशाना साध रही है और उन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही हैं। क्योंकि ममता बनर्जी खुद संघर्षों में तपकर आज राष्ट्रीय फलक पर एक स्थापित नेता हैं। उन्हें इस बात का बहुत अच्छी तरह से भान है कि जमीन से जुड़े स्थानीय नेता की ताकत क्या है और चुनाव में कायापलट भूमिका भी निभा सकता है।
इन्हीं सभी मुद्दों पर प्रशांत किशोर और ममता बनर्जी की नजर गड़ी है और सभी कमियों को बहुत अच्छी तरह से भांप लिया है। उसी आधार पर आगामी चुनाव में गोवा राज्य में टीएमसी की सरकार बनाने के लिए ममता बनर्जी तिल तक परखने का काम कर रही हैं।
( यह लेखक के निजी विचार है )