प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उपयोगी कह रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव उन्हें अनुपयोगी बता रहे हैं। पीएम मोदी का नारा है यूपी+योगी मतलब उपयोगी। वहीं अखिलेश पूछ रहे हैं कि जिन्होंने अनुदेशकों के लिए कुछ नहीं किया वो अनुपयोगी हैं या नहीं?
दाद देनी होगी उस मुहिम को जिसे स्पेशल कवरेज न्यूज़ चैनल और उसके एडिटर शिव कुमार मिश्रा ने दो महीने से अपने यू ट्यूब चैनल पर आंदोलन छेड़ रखा है। 40-45 संगठन जो बेरोजगारों के लिए जुझारू आंदोलनकारियों की जिन्होंने रोजगार के लिए बेचैनी और उसे समझ पाने में नाकाम रही सरकारों को देश के सामने बेनकाब किया।
दो महीने से लगातार चल रहे नौकरी की लड़ाई लड़ रहे हैं, इस मुहिम से जुड़े हैं। दाद देनी होगी हर ऐसे संगठन के नेतृत्वकारी इस पैनल डिस्कशन में बेरोजगारों की पीड़ा बयां हुई है तो रोजगार पाने के बाद छिन जाने का संघर्ष कर रहे नौजवानों को भी ज़ुबान मिली है। कोई कम वेतन से परेशान है तो कोई नियमितिकरण की मांग कर रहा है। हर एक पीड़ा ज़मीर को झकझोर देती है। चाहे विपक्ष के नेता-प्रवक्ता हों या फिर सत्ता पक्ष के नेता-प्रवक्ता- दोनों ने अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह किया है। मगर, सबको एक सूत्र में पिरोकर 30 लाख से ज्यादा लोगों के संघर्ष को जुबान देने का काम पहली बार कभी सोशल मीडिया के जरिए हुआ है।
उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों का मानदेय 10 हजार रुपए, अनुदेशकों का सात हजार रुपए, रसोइयों का डेढ़ हजार रुपए व केजीबीवी के हेड कुक का 7971 और रसोइयों का 5848 रुपए मानदेय है। जैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में अनुदेशकों और शिक्षा मित्रों के लिए मानदेय में सुधार की घोषणा की, अनुदेशकों में खुशी के बजाए निराशा फैल गयी। दो दिन में 3 शिक्षा मित्रों ने अपनी जान दे दी है। अन्याय खत्म होने और उचित मानदेय की उम्मीद कर रहे अनुदेशकों और शिक्षा मित्रों के लिए यह वाकई उम्मीद खत्म होने वाली बात है। अब सवाल यह है कि इन आत्महत्याओं की जिम्मेदारी योगी सरकार लेगी या नहीं? या फिर विपक्ष इस मुद्दे को राजनीतिक विमर्श में लाता है या नहीं? निश्चित रूप से संघर्षशील युवा बेरोजगार और उनकी मदद के लिए मैदान में उतरे पत्रकार इस सवाल को नहीं छोडेंगे। तो क्या ये भर्तियां और बेरोजगारी के मुद्दे यूपी विधानसभा चुनाव में सर चढ़कर बोलने वाले हैं? यह महत्वपूर्ण सवाल है।
69 हजार भर्ती के मुद्दे पर 1 लाख से ज्यादा आवेदकों की नज़र 22 हज़ार रिक्तियों को भरने पर टिकी है तो दलित और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए लखनऊ के ईको गार्डन में सुधा पाल पानी टंकी पर बैठी हुई हैं। करीब छह महीने से सुधा पाल का संघर्ष जारी है। उनके समर्थकों पर पुलिस लाठीचार्ज कर चुकी है। फिर भी आंदोलन कमजोर नहीं हुआ है।
यूपी में बीपीईडी धारक, एडेड डिग्री क़लेज के असिस्टेंड प्रोफेसर उचित मानदेय के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो विशिष्ट बीटीसी, बीटीसी और बीएड धारकों ने भी संघर्ष का रास्ता चुन रखा है। होमगार्ड भी परमानेंट करने की मांग कर रहे हैं। 74 हजार ग्राम प्रहरी 2500 रुपये महीने के हिसाब से नौकरी करने को मजबूर हैं। 2 लाख प्रेरकों को 2018 के बाद से कोई तनसख्वाह नहीं मिली है। 3000 पदों के लिए फार्मासिस्ट की भर्ती 2003 से रुकी हुई है। ऊर्दू शिक्षकों के पद भरने की कोशिश 2016 में हुई थी। 4000 पद थे। रसोईया, आंगनबाड़ी नियमितिकरण की मांग कर रहे हैं।
देश में शौचालय बनाने के बावजूद स्वेच्छाग्राहियों को वादे के मुताबिक प्रति शौचालय हजार रुपये नहीं मिले। ऐसी घटनाएं भरी पड़ी हैं। सवाल यह है कि क्या इन सवालों पर सत्ता और विपक्ष संज्ञान लेगी। उन्हें चाहिए वे आगे बढ़कर ऐसे कार्यक्रम का आयोजन करते। ऐसा करने के बजाए सत्ता और विपक्ष इस बात पर लड़ते देखे जा रहे हैं कि योगी उपयोगी हैं या अनुपयोगी। अगर जनता खुश नहीं है, उनकी जान जा रही है, रोजगार छिन रहे हैं, कुपोषित हो रहे हैं....तो समझना यही चाहिए कि सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल है।
प्रेम कुमार