क्या पश्चिम उत्तर प्रदेश, यूपी की सियासत को हिला पाएगा ?

बाबा टिकैत, किसानों के मसीहा अजीत सिंह के जाने के बाद किसान नेताओं में जरूर अनुभव की कमी खलेगी, लेकिन यदि किसान नेता आरएलडी को मजबूती देना चाहते हैं तो..

Update: 2021-09-05 07:48 GMT

यूपी विधानसभा चुनाव-2022 लगातार नजदीक आते जा रहे हैं सरकार भी अपनी तरफ से प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं छोड़ रही है। 

लगातार टीवी इंटरव्यू ,अखबार कवरेज ,विज्ञापन ,इंटरव्यू इति इति ... यानी चुनाव जीतने का हर नुस्खा अपनाया जा रहा है जिससे चुनाव जीता जा सके।

लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कुछ अलग होने जा रहा है। उसका कारण पश्चिम उत्तर प्रदेश का बड़े पैमाने पर किसान आंदोलन के साथ जुड़े रहना। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के खूब प्रयास करने के बावजूद सरकार किसान आंदोलन को तोड़ नही पायीं। इसका संज्ञान उत्तर प्रदेश सरकार को भी है और केंद्र सरकार को भी। राज्य सरकार भली-भांति जानती है कि यदि पश्चिम उत्तर प्रदेश को अपने नियंत्रण में ना रखा गया तो यूपी का चुनाव केवल राज्य का चुनाव बनकर नहीं, केंद्र सरकार का चुनाव बन जाएगा। और साथ ही भविष्य में एक नए राज्य की मांग (जो आजादी के समय से ही उठती आ रही है) तूल पकड़ लेगी है। 

किसान आंदोलन को लगभग 1 साल पूरा होने जा रहा है। किसान नेताओं के पास एक मौका है कि वह इस आंदोलन से जुड़े हर एक आदमी को अपने आप से जोड़ पाएं, जो सरकार के दमन के खिलाफ खुलकर बोलने को तैयार है। इस आंदोलन में वामपंथी लोगों के साथ-साथ वह लोग भी शामिल हैं जो मंहगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य की कमी के कारण किसान आंदोलन को सपोर्ट कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि किसानों का सपोर्ट नहीं किया गया तो एक निरंकुश सरकार सत्ता पर काबिज होगी जो शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार से वंचित करेगी।

पश्चिम उत्तर प्रदेश किसानों का गढ़ माना जाता है यहां जाति से मुख्य रूप से जाट लोग किसानी करते हैं। और जितने भी किसान नेता है वे सभी जाट हैं। बाबा टिकैत, किसानों के मसीहा अजीत सिंह के जाने के बाद किसान नेताओं में जरूर अनुभव की कमी खलेगी, लेकिन यदि किसान नेता आरएलडी को मजबूती देना चाहते हैं तो सबसे ज्यादा आवश्यकता है उन्हें किसान आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखने के साथ-साथ उन लोगों को अपने साथ जोड़े रखें जिन्होंने इस आंदोलन में अपना सहयोग किया है।

संख्या बढ़ाने पर यदि जोर ना दिया जाए तो शांतिपूर्ण आंदोलन करना किसान नेताओं का उद्देश्य रहना चाहिए । यदि आंदोलन में कोई हिंसक घटना घटती है तो यह किसान नेताओं के लिए और आरएलडी पार्टी के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।

अभी विगत समय में पंचायत चुनावों में यह साफ हो गया है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे अहम मुद्दा कोई है तो वह है "किसानों का सपोर्ट" है, जो भी कोई दल किसानों का सपोर्ट करेगा उसे सत्ता थमा दी जाएगी । यह पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति है। यही कारण है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में जो भी बीजेपी के वरिष्ठ सदस्य हैं वे पार्टी का दामन छोड़कर ,RLD पार्टी को अपनाने जा रहे हैं।

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