हरपाल, तुम बहुत याद आओगे: अभियुक्तों की संदिग्ध मौत होती रहेगी तो न्याय व्यवस्था का क्या होगा?
मदर टेरेसा वेलफेयर ट्रस्ट, जमशेदपुर के संचालक हरपाल सिंह की एमजीएम अस्पताल में मौत
संजय कुमार सिंह
मदर टेरेसा वेलफेयर ट्रस्ट, जमशेदपुर के संचालक हरपाल सिंह की एमजीएम अस्पताल में मौत हो गई। शुक्रवार देर रात घाघीडीह सेंट्रल जेल में तबियत बिगड़ने के कारण उसे अस्पताल में दाखिल कराया गया था। हरपाल सिंह, उसकी पत्नी पुष्पा तिर्की समेत पांच के खिलाफ टेल्को थाना में ट्रस्ट की दो नाबालिग बच्ची से अश्लील हरकत करने, प्रताड़ित करने और पोस्को एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। इसी मामले में हरपाल जेल में थे और आज उनकी मृत्यु का समाचार मिला। मुझे इस मामले में हरपाल के शामिल होने का कतई यकीन नहीं है और जिस तरह से यौन अपराध में पत्नी के साथ आरोपी बनाया गया है वह वैसे भी यकीन करने लायक नहीं है।
हरपाल और उसके भाई को मैं बचपन से जानता हूं। मुझसे काफी छोटा था और जमशेदपुर से आ जाने के बाद मेरा उससे कोई संपर्क नहीं था। फेसबुक की एक पोस्ट पर मेरे कमेंट से उसने मुझे पहचान लिया और फिर संपर्क हुआ। उसके बाद जब भी मैं जमशेदपुर गया उससे मुलाकात हुई। मैं उसके घर या एनजीओ भी गया था। खास बात यह रही कि वह पक्का भक्त भी था। और मेरे भाजपा विरोध से नाराज होकर उसने मुझे अनफ्रेंड भी कर दिया। याद नहीं है कि मेरी उससे आखिरी मुलाकात अनफ्रेंड किए जाने के बाद हुई या पहले लेकिन मेरे उसके घर जाने से वह बहुत खुश हुआ। बचपन में जो समोसा खाता था वही उसने मंगवाकर खिलाया था। संभवतः मुझसे उसकी नाराजगी तब बढ़ी जब मैं एक कांग्रेस नेता के साथ उसके घर गया। हो सकता है इस कारण उसने मुझे कांग्रेसी समझा हो पर वह भी बचपन का मित्र है। उम्र में उससे बड़ा, मेरी उम्र का।
अनफ्रेंड किए जाने के बाद संपर्क कम हो गया। लेकिन जिसे बचपन से जानता होऊं, पूरे परिवार से मित्रता हो, वह इतनी आसानी से नहीं भूलता। अनफ्रेंड करना मुझे हरपाल का बचपना ही लगा था। सोचता रहा, एक बार समझाउंगा पर मुझे लगता रहा कि मेरा समझाना भाजपा के प्रति मेरा विरोध ही जाहिर करेगा इसलिए मैंने कोशिश नहीं की। एक दिन हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर उसकी खबर छपी। मैंने जमशेदपुर के कुछ मित्रों से यह जानने-समझने की कोशिश की कि मामला राजनीतिक तो नहीं है। मेरा मानना था कि वह भक्त है और अभी झारखंड में गैर भाजपा सरकार है तो उसे फंसाया भी गया हो सकता है। पर कुछ समझ में नहीं आया।
मैं उसे और उसके ट्रस्ट को जितना जानता हूं और जो समझ पाया उससे मुझे यकीन नहीं था कि उसे ऐसा कुछ करने की जरूरत थी और यह भी कि उसे फंसाने के लिए दूसरा कुछ था भी नहीं। मामला समझ में नहीं आया और वह फरार चल रहा था। मैंने उसके भाई या पिता से बात नहीं की क्योंकि उनका फोन टैप हो रहा होगा। गिरफ्तारी का पता मुझे नहीं चला और आज अचानक यह खबर आई। आपको बता दूं अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए उसने पत्नी के साथ मिलकर निर्णय़ किया था अपना बच्चा पैदा नहीं करेगा। जिन बच्चों की देखभाल करता था उन्हीं में से किसी ने न सिर्फ उसपर बल्कि पत्नी पर भी आरोप लगाया था। मुझे अनाथ बच्चों के लिए कुछ करने और उन्हें भी माता-पिता के साथ पहलने वाले बच्चों की तरह भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने की जरूरत महसूस होती है। इसलिए मुझे उसका काम बहुत पसंद था। कई बच्चों के बारे में बातें हुई थीं।
दुख है कि उसपर लगे आरोप का सच पता नहीं चलेगा। दुख इस बात का भी है कि ऐसे मामले रोज होते हैं। पर सिस्टम को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है। अगर हरपाल दोषी भी हो तो मौत की सजा बहुत ज्यादा है। पर हमारे यहां न्याय ऐसे ही होता है। लोग मानें या न मानें मैं उसे निर्दोष ही मानूंगा। हमारी न्याय व्यवस्था सामान्य गरीबों के लिए है भी नहीं। कोई अर्नब होता तो उसे सुप्रीम जमानत मिल जाती और वह वही सब कर रहा होता। पर अच्छा काम करने वाला जेल गया, मर भी गया। अनाथों की परवाह किसे है।