-राजेश बैरागी-
मैं गोरखपुर के पुलिस कप्तान और जिलाधिकारी से पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूं कि एक बार मुकदमा दर्ज हो जाने पर क्या होता है। सालों लग जाते हैं। कोर्ट के चक्कर काटने पड़ते हैं।" दोनों अधिकारी आधी रातों में होटलों में जांच के नाम पर अवैध वसूली और अय्याशी करने वाली पुलिस पार्टी के हाथों बेमौत मारे गए कानपुर के व्यवसायी मनीष गुप्ता की पत्नी को बड़े भाई के तौर पर समझा रहे थे।
एक विद्वान सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ने मेरी पिछली पोस्ट पर टिप्पणी की, "कभी कभी ऐसा महसूस होता है कि पुलिस केवल आम आदमी के लिए उत्पीड़न का साधन मात्र है।" मैं उनकी टिप्पणी को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा बिकरु कांड के संबंध में की गई उस टिप्पणी से संबद्ध करना चाहता हूं कि पुलिस की पुलिसिंग कौन करेगा? मैनपुरी में छात्रा की संदिग्ध हालात में मौत मामले में भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, "सही विवेचना न होने से ही देश में मात्र 6.5 प्रतिशत मामलों में सजा हो पाती है।" इस मामले में हाईकोर्ट ने और भी कई कठोर टिप्पणी कीं। जैसे हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस असलहे बरामद नहीं करती बल्कि प्लांट करती है जिससे बैलेस्टिक जांच में फायर का साक्ष्य नहीं मिलता और आरोपी छूट जाता है।
हाईकोर्ट ने कहा अधिकांश जांच सिपाही करते हैं और दरोगा कभी कभी जांच करने जाता है।इस मामले में हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रमुख (डीजीपी) मुकुल गोयल को तलब किया था और मामले की जानकारी न रखने पर अदालत ने उन्हें प्रयागराज में ही रुकने व अगले दिन पूरी तैयारी के साथ उपस्थित होने का आदेश दिया था। पुलिस आखिर किस योजना के तहत अपराधिक मामलों की तहकीकात करती है?
मैंने गौतमबुद्धनगर पुलिस कमिश्नरेट के थानों में हाल ही में दर्ज कुछ एफआईआर और उनपर की गई पुलिस कार्रवाई का अध्ययन किया।उन मामलों में पुलिस किसी राजनीतिक प्रभाव में नहीं थी परंतु उसने कार्रवाई में न्याय नहीं किया। इसके उलट पुलिस कार्रवाई में पैसे का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दिया। उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में भ्रष्टाचार में कमी आने के चाहे जितने दावे हों, पुलिस इन दावों से अछूती रही है। अभियुक्तों की गिरफ्तारी का दिन, स्थान और समय आमतौर पर फर्जी होता है।
पुलिस हिरासत में दिये गये बयानों की कोई वैधता इसलिए भी नहीं मानी गई है कि ऐसे बयान पुलिस द्वारा लिखे जाते हैं और विवशतावश आरोपी उस पर हस्ताक्षर कर देता है। गोरखपुर में व्यवसायी मनीष गुप्ता की मौत कोई अभूतपूर्व घटना नहीं है। चुनाव और अपराधिक घटनाओं की गंभीरता का चोली-दामन का साथ है। इसलिए बाबा आज कानपुर हो आए। उन्होंने कहा,-अपराधी अपराधी होता है। कोई बख्शा नहीं जाएगा।" मैं एक बार और खुश हुआ।