सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का निधन, AIIMS में ली अखिरी सांस
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को निधन हो गया। डॉ. पाठक ने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली। यहां पढ़िए पूरी खबर...
सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का आज दोपहर में निधन हो गया है। नई दिल्ली में स्थित एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली। बताया जा रहा है कि सुलभ इंटरनेशनल के केंद्रीय कार्यालय में झंडोत्तोलन के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया था। बीमार होने के दो दिन पहले वो पटना में एक कार्यक्रम में भाग लेने भी गए थे।
कौन थे बिंदेश्वर पाठक
आज देश और दुनिया में हर तरफ सुलभ शौचालय की व्यवस्था है। लेकिन क्या आपको जानकारी है कि सुलभ शौचालय की इसकी शुरुआत कहां से हुई थी और इसके संस्थापक कौन हैं? दरअसल, सुलभ शौचालय की शुरुआत बिंदेश्वर पाठक ने की है। बिंदेश्वर पाठक का जन्म 2 अप्रैल 1943 को बिहार के वैशाली जिले के एक गांव में हुआ था। वह ब्राह्मण परिवार से थे। बिंदेश्वर पाठक के मुताबिक वह एक ऐसे घर में पले बढ़े हैं जहां रहने के लिए 9 कमरे थे लेकिन शौचालय नहीं था। उन्होंने ऐसे समय को देखा जब सुबह सवेरे सूर्योदय से पहले ही महिलाएं शौच के लिए घर से बाहर जाया करते थीं। बाहर शौच करने से महिलाओं में कई तरह की समस्याएं भी होती थीं, वह बीमार भी पड़ती थीं। दिन में भी किसी को बाहर खुले में शौच के लिए बैठना पड़ता था। इन्हीं घटनाओं ने बिंदेश्वर पाठक को स्वच्छता के क्षेत्र में कुछ नया और अलग करने की प्रेरणा दी।
1970 में की थी सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना
बता दें कि दिवंगत बिंदेश्वर पाठक ने वर्ष 1970 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की स्थापना की थी। बिंदेश्वर पाठक की पहचान बड़े भारतीय समाज सुधारकों में से एक है। उन्होंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की, जो मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करती है।
इसके साथ ही उन्होंने सुलभ शौचालयों को किण्वन संयंत्रों से जोड़कर बायोगैस निर्माण का अभिनव उपयोग किया, जिसे उन्होंने तीन दशक पहले डिजाइन किया था। अब दुनिया भर के विकासशील देशों में स्वच्छता के लिए एक पर्याय बन रहे हैं। उनके अग्रणी काम, विशेष रूप से स्वच्छता और स्वच्छता के क्षेत्र में, उन्हें विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं।
बेतिया की दलित बस्ती ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया
डॉ बिन्देश्वरी पाठक ने बताया था कि उनके जीवन में नया मोड़ तब आया, जब वे बेतिया की दलित बस्ती में तीन महीने के लिए रहने गए। उस समय देश में जाति-प्रथा चरम पर थी। उनके साथ रहते हुए मैंने कई चीजें देखीं, जिन्होंने उनकी आंखें खोल दीं। उनके अनुसार इस वर्ग की पीड़ा दर्दनाक थी। उन्होंने कहा कि वे उस अपमान और तानों को नजरअंदाज किया जो उन पर आ रहे थे। और इन्हीं सब समस्या को देखते हुए उनके मन में कुछ करने का विचार आया। तब उन्होंने सोचना शुरू किया कि सस्ती शौचालय व्यवस्था का विकास कैसे किया जाए। ताकि स्कैवेंजिंग प्रथा रोकी जा सके और उन्हें किसी अन्य काम में पुनर्वासित किया जा सके।
पुरस्कार एवं सम्मान
पाठक को भारत सरकार द्वारा 1991 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 2003 में श्री पाठक का नाम विश्व के 500 उत्कृष्ट सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्तियों की सूची में प्रकाशित किया गया। इसके साथ ही पाठक को एनर्जी ग्लोब पुरस्कार भी मिला। पाठक को इंदिरा गांधी पुरस्कार, स्टाकहोम वाटर पुरस्कार इत्यादि सहित अनेक पुरस्कारों द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्होने पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये प्रियदर्शिनी पुरस्कार एवं सर्वोत्तम कार्यप्रणाली (बेस्ट प्रक्टिसेस) के लिये दुबई अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त किया है। इसके अलावा सन 2009 में अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा संगठन (आईआरईओ) का अक्षय उर्जा पुरस्कार भी प्राप्त किया
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