कुआँ खोदकर गाँव को पीने का पानी मुहैया कराने वाले कृष्णा कोल की एक आख़िरी इच्छा भी नहीं पूरी कर पा रहा प्रशासन, मानिकपुर विकासखंड अंतर्गत गढ़चपा पंचायत के बड़ेहार पुरवा के निवासी कृष्णा कोल जिन्होंने अकेले दम पर पीने के पानी के लिए कुआँ खोद डाला था उस कृष्णा कोल की आख़िरी इच्छा भी नहीं पूरी कर पास रहा ज़िला प्रशासन और स्थानीय पंचायत।
बड़ेहार पुरवा में आज भी स्कूल न होने की वजह से बच्चे पढ़ाई नहीं करते । गाँव में पहुँचने के लिए सम्पर्क मार्ग नहीं है । सड़क न होने की वजह से स्वास्थ्य सेवाएँ भी गाँव नहीं पहुँच पातीं । कृष्णा कोल के खोदे गया कुआ भी भट यानी धँस गया । क्या हम कृष्णा कोल के भागीरथ प्रयास को बचा नहीं सकते ? क्या उस कुएँ को प्रतीकात्मक मॉडल नहीं बनाया जा सकता ?
जिस बुंदेलखंड में हज़ारों करोड़ों रुपये पानी के संरक्षण के लिए खर्च किए जा रहे हैं वहाँ कृष्णा कोल जैसे एक साधारण व्यक्ति के इस भागीरथ प्रयास को क्या हम आज के युवाओं के लिए प्रेरणा बना सकते हैं ? उक्त चित्र बड़ेहार गाँव का है जब इस गाँव में पहली बार समूचा प्रशासनिक अमला पहुँचा था और उस दौरान जनचौपाल लगाई गई थी और उसी समय कृष्णा कोल के साथ ये यादगार और कभी न भूलने वाला चित्र क़ैद हुआ रहा ।
लेकिन सोंचने वाला तथ्य ये है की क्या हम कृष्णा कोल जैसे व्यक्तित्व के दशरथ माँझी वाले प्रयास को यूहीं भुला देंगे ? या फिर कृष्णा कोल जैसे जलपुरुष बनेंगे प्यासे बुंदेलखंड के जलपुरुष ? जवाब आपको देना है ।
ग्राउंड जीरों से बीतीं यादों के साथ अनुज हनुमत की रिपोर्ट