प्रतीत्यसमुत्पाद पर प्रकाश डालते हुए प्रो. रमेश प्रसाद बोले- सभी दुःखों के मूल में अविद्या है

Update: 2021-08-17 11:20 GMT

वाराणसी। आज दिनांक 17 अगस्त, 2021 को सुबह 11:00 बजे भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, शैक्षणिक केन्द्र, लखनऊ द्वारा "थेरवाद में प्रतीत्यसमुत्पाद का महत्व " नामक विषय पर ऑनलाईन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर रमेश प्रसाद (अध्यक्ष, श्रमण विद्या संकाय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) ने थेरवाद में प्रतीत्यसमुत्पाद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रतीत्यसमुत्पाद सिद्धांत बौद्ध दर्शन की धूरी है, जिस पर सम्पूर्ण बौद्ध दर्शन टिका हुआ है। उन्होंने कहा कि सभी दुःखों के मूल में अविद्या है। इस दुःख रूपी अविद्या को प्रतीत्यसमुत्पाद के बारह कड़ियों के माध्यम से समाप्त किया जा सकता है।


मुख्य अतिथि प्रोफेसर वैद्यनाथ लाभ (कुलपति, नव नालन्दा महाविहार, नालन्दा) ने थेरवाद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बौद्ध दर्शन में कारणता सिद्धांत बहुत ही व्यापक है। इसमें किसी एक वस्तु के उत्पन्न होने से अन्य वस्तु की उत्पत्ति होती है। सम्पूर्ण भारतीय दर्शन इस कार्य-करण सिद्धांत पर टीका हुआ है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर रमेश चन्द्र सिन्हा (अध्यक्ष, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली) ने बौद्ध दर्शन के विकासक्रम पर प्रकाश डालते हुए, उसके ऐतिहासिकता पर भी विशेष रूप से चर्चा किया। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म दर्शन के विकास के रूप में राजगीर, वैशाली, पाटलिपुत्र आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

स्वागत भाषण एवं बीज वक्तव्य प्रोफेसर सच्चिदानंद मिश्र (सदस्य सचिव, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्) नई दिल्ली ने किया। संचालन डाॅ. पूजा व्यास (निदेशक, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, शैक्षणिक केन्द्र, लखनऊ) ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. जयशंकर सिंह (वरिष्ठ सलाहकार, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, शैक्षणिक केन्द्र, लखनऊ) ने किया।

इस ऑनलाईन कार्यक्रम में प्रो. विजय कुमार जैन, प्रो. जे. एम. दवे, डाॅ. अर्चना त्रिपाठी, अजय कुमार मौर्य, डाॅ. सुषमा श्री, डाॅ. नमिता निम्बलकर, डाॅ. शैलेन्द्र कुमार सिंह, पूनम सिंह, डाॅ. ज्योति तावडे इत्यादि सहित सैकङों विद्वान और शोधार्थी शामिल रहे।

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