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भारत की पहली महिला शबनम को फांसी देने के मामले में आया नया मोड़, वकील ने दी ये बड़ी दलील
देश की पहली महिला को फांसी देने के मामले में एक नया मोड़ आ गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकील सहर नक़वी ने इस मामले में एक पत्र प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को लिखा था। राज्यपाल ने पत्र का संज्ञान लेते हुए पूरे मामले पर निर्णय लेने के लिए कारागार विभाग को निर्देश दिए हैं।
वकील सहर नकवी का कहना है कि पत्र के आधार पर राज्यपाल ने राहत देने का काम किया है। उनके द्वारा इस संबंध में कारागार विभाग से फैसला लेने का आदेश दिया है। ऐसे में फांसी होने का फैसला पलटने पर विचार किया जा सकता है।
मानवीय आधार पर उम्रकैद बदलने की मांग
23 फरवरी 2021 को भेजे के पत्र पर जवाब देते हुए इस मामले में यूपी की गवर्नर आनंदी बेन पटेल ने दखल दिया है। शबनम की फांसी की सजा को मानवीय आधार पर उम्रकैद में बदले जाने की मांग को लेकर दाखिल इलाहाबाद हाईकोर्ट की महिला वकील सहर नक़वी की अर्जी को गवर्नर ने स्वीकार किया है।
गवर्नर ने नियम के मुताबिक विचार करने के बाद इस मामले में उचित फैसला लेने के लिए यूपी सरकार को आवेदन पत्र ट्रांसफर कर दिया गया है। गवर्नर के निर्देश का लेटर यूपी के कारागार विभाग के प्रमुख सचिव को भेजा भी जा चुका है।
सहर नकवी ने फांसी की सजा को उम्र कैद में बदलने के लिए दी गई अर्जी में लिखा है कि आजाद भारत में किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है।
वकील की दलील- आजाद भारत में किसी महिला को नहीं हुई फांसी
वकील सहर नकवी की अर्जी में शबनम की फांसी को उम्र कैद में बदले जाने की मांग को लेकर जो दलीलें दी गई हैं, उनमें सबसे प्रमुख यह है कि आजाद भारत में आज तक किसी भी महिला को फांसी नहीं हुई है। इसके साथ ही जेल में जन्मे शबनम के 13 साल के बेटे के भविष्य को लेकर भी गुहार लगाई गई है।
सूली पर लटकाया तो भारत की महिलाओं की छवि खराब होगी
सहर नकवी ने गवर्नर को भेजी गई अर्जी में लिखा था कि अगर याची को सूली पर लटकाया जाता है, तो पूरी दुनिया में भारत और यहां की महिलाओं की छवि खराब होगी। क्योंकि देश में महिलाओं को देवी की तरह पूजने और सम्मान देने की पुरानी परंपरा है। वकील के मुताबिक वह शबनम के गुनाह या उसकी सजा को लेकर कोई सवाल नहीं उठा रही हैं, बल्कि यह चाहती हैं कि उसकी फांसी की सजा को सिर्फ उम्रकैद में तब्दील कर दिया जाए।
मां को फांसी दी तो उसके गुनाहों की सजा बेटे को मिलेगी
अर्जी में यह भी दलील दी गई कि शबनम को फांसी दिए जाने से जेल में जन्मे उसके इकलौते बेटे ताज उर्फ बिट्टू पर गलत असर पड़ेगा। शबनम को फांसी होने पर समाज उसके बेटे को हमेशा ताना मारेगा। उसका मजाक उड़ाएगा। समाज में उसे उपेक्षा मिलेगी। इस वजह से बेटे का मानसिक विकास प्रभावित हो सकता और उसका भविष्य खराब हो सकता है। अर्जी में दलील दी गई है कि मां के गुनाहों की सजा उसके बेटे को मिलना कतई ठीक नहीं होगा।
वकील की दलील है कि मां के गुनाहों की सजा उसके इकलौते बेटे को नहीं मिलनी चाहिए।
कारागार विभाग के सचिव को जल्द सौंपेंगी फाइल
वकील सहर नकवी का कहना है कि वह जल्द ही कारागार विभाग के प्रमुख सचिव से मुलाकात कर उन्हें फाइल सौंपेंगी। नकवी के मुताबिक, एक महिला होने के नाते वह शबनम को फांसी की सजा से बचाने की हर मुमकिन कोशिश करेंगी। अगर यहां से राहत नहीं मिलती है तो दूसरे माध्यमों से भी गुहार लगाएंगी।
सलीम से शबनम की मोहब्बत घर वालों को मंजूर नहीं थी
अमरोहा जिले के बावनखेड़ी गांव की रहने वाली शबनम अपने पड़ोस में काम करने वाले सलीम से बेपनाह मोहब्बत करती थी। शबनम के घर वालों को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। जब उसे यह लगा कि घर वालों के रहते वह अपनी मोहब्बत में कामयाब नहीं हो पाएगी तो उसने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अप्रैल-2008 में माता-पिता, दो भाइयों, भाभी और दुधमुंहे भतीजे के साथ ही परिवार के 7 सदस्यों की गला रेतकर हत्या कर दी थी।
वारदात के वक्त गर्भवती थी शबनम, जेल में ही दिया बच्चे को जन्म
वारदात के वक्त शबनम गर्भवती थी। उसने जेल में ही एक बच्चे को जन्म दिया था। शबनम वर्तमान में प्रदेश की बरेली जेल में बंद है। उसे और आशिक सलीम दोनों को ही फांसी की सजा सुनाई गई है। ज्यादातर जगहों से दोनों की अर्जियां खारिज हो चुकी हैं। फांसी की सजा से बचने के लिए दोनों के पास कम ही रास्ते बचे हैं।
ऐसे में हाईकोर्ट की महिला वकील सहर नकवी की शबनम की फांसी की सजा बदलवाने की मुहिम कितना कारगर साबित होगी, इसका फैसला तो वक्त करेगा, लेकिन यह जरूर है कि अगर शबनम को सूली पर लटकाया जाता है तो यह अपने आप में इतिहास होगा। क्योंकि फांसी की सजा पाने वाली शबनम आजाद भारत की पहली महिला बनेगी।