माना मोदी सरकार का सबसे बड़ा काँटा पूण्य प्रसून है, तो अब प्रसून करें क्या?
मान लिया कि पुण्य प्रसून को एबीपी न्यूज़ से नरेंद्र मोदी के कहने पर निकलने पर मजबूर किया गया। मान लिया कि प्रसून को सूर्या समाचार से सरकार ने ही निकलवाया और मालिक ने इसके बदले करोडों की डील कर ली। मान लिया कि भारतीय मीडिया में पुण्य प्रसून बाजपेयी इस वक्त सरकार की आंख में गड़ने वाला सबसे कीमती और सबसे मारक कांटा हैं। हम यह भी मान लेते हैं कि प्रसून आगे किसी और मंच से बोलेंगे तो उस मंच को भी सरकार ध्वस्त करवा देगी। चलिए यह सब मान लिया? अब किया क्या जाए? मने, प्रसून क्या करें?
ऐसी भयावह स्थिति में उनके पास दो रास्ते बचते हैं। पहला, स्वेच्छा से संस्थागत पत्रकारिता से संन्यास ले लें। यह बैकट्रैक होगा। नकारात्मक होगा। दूसरा रास्ता सकारात्मक है। जब यह माहौल बन ही चुका कि सरकार उन्हें पत्रकारिता नहीं करने दे रही तो वे इस बात को लेकर व्यापक जनमानस के बीच जाएं और जनता को मीडिया पर सरकारी हमले की सच्चाई से अवगत करावें। इसके लिए मौसम भी अनुकूल है और दस्तूर भी।
मैं पुण्य प्रसून से सार्वजनिक रूप से मांग करता हूं कि वे बनारस से नरेंद्र मोदी के खिलाफ निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में प्रतीकात्मक चुनाव लड़ें और लोगों को इस बहाने मीडिया की हकीकत से रूबरू करावें। इतना तो तय है कि यह चुनाव मोदी को हराने के लिए नहीं होगा क्योंकि मोदी को बनारस से हराना मुमकिन नहीं। हां, चुनाव के प्लेटफॉर्म का टैक्टिकल इस्तेमाल देश भर की जनता को एक संदेश देने के लिए ज़रूर किया जा सकता है कि असल लड़ाई इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी बनाम अभिव्यक्ति की पाबंदी, तानाशाही बनाम लोकतंत्र, की है।
इस मांग से यदि मित्रगण सहमत हैं तो बात को आगे बढ़ावें। नहीं सहमत हैं तो उसका वाजिब तर्क दें।