बाबरी विध्वंस के लिए देश की राजनीति में जितना दोषी कल्याण सिंह को आडवाणी माना उससे ज्यादा दोष तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को दिया और .......
जिस रोज बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था उस रोज बीबीसी ने अपने सांध्यकालीन प्रसारण में कहा कि हिंदू उग्रपंथियों ने सारे के सारे गुम्बद तोड़ डाले। मार्क टुली और रामदत्त त्रिपाठी का उस रोज का डिस्पैच आज भी मुझे याद है।
आज सोचता हूं तो पाता हूं कि भाजपा ने तो राम के नाम का इस्तेमाल पिछले चार दशकों से सिर्फ और सिर्फ वोट मांगने और सरकार खड़ी करने के लिए किया साथ ही हिंदू जनमानस में नफरत की आग भर दी। लेकिन कांग्रेस ने बेहद शांति के साथ बिना कोई श्रेय लिए भगवान राम के लिए काम किया।
बाबरी विध्वंस के लिए देश की राजनीति में जितना दोष कल्याण सिंह को आडवाणी को दिया जा रहा था उससे ज्यादा दोष तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव को दिया गया। आज भी दिया जाता है। सभी सवाल करते है कि राव, कल्याण सिंह के मंसूबे को कैसे नहीं समझ पाए? क्या बिना बाबरी विध्वंस के मंदिर का निर्माण संभव था?
अयोध्या के विवादित स्थल पर मूर्ति रखने, बाबरी का ताला खुलवाने से लेकर राम मंदिर का शिलान्यास सभी कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए हुआ। आज मोदी भले अपना कथित 56 इंची सीना ठोंके लेकिन यह सच्चाई है कि अयोध्या के रामलला का अस्तित्व कांग्रेस की वजह से ही है। अंतर सिर्फ इतना हैं कि कांग्रेस ने मंदिर के नाम पर ना वोट मंगाए ना दंगे कराए।
1948 में कांग्रेस नेता उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने उपचुनाव में फैजाबाद से आचार्य नरेंद्र देव के खिलाफ एक बड़े हिंदू संत बाबा राघव दास को उम्मीदवार बनाया। गोविंद वल्लभ पंत ने अपने भाषणों में बार-बार कहा था कि आचार्य नरेंद्र देव भगवान राम को नहीं मानते हैं, वे नास्तिक हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या ऐसे व्यक्ति को कैसे स्वीकार कर पाएगी। इसका नतीजा रहा कि नरेंद्र देव चुनाव हार गए।
बाबा राघव दास की जीत से राम मंदिर समर्थकों के हौसले बुलंद हुए और उन्होंने जुलाई 1949 में उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर फिर से मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी। इसके बाद विवाद बढ़ने लगा तो पुलिस तैनात कर दी गई। तब कांग्रेस का केंद्र से लेकर राज्य तक में राज था। 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित मस्जिद स्थल के अंदर राम-जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दीं और यह प्रचार किया कि भगवान राम ने वहां प्रकट होकर अपने जन्मस्थान पर वापस कब्जा प्राप्त कर लिया है।
1950 में गोपाल सिंह विशारद ने भगवान राम की पूजा अर्चना के लिए अदालत से विशेष इजाजत मांगी थी कहा जाता है कि कांग्रेस के नेताओं ने ही उन्हें इसके लिए तैयार किया। महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदुओं की पूजा जारी रखने के लिए मुकदमा दायर कर दिया। अस्सी के दशक में आस्था और मंदिर के आसपास की राजनीति मुख्य केंद्र में आ गई। कांग्रेस में राजीव गांधी का दौर आ चुका था और वीएचपी राम मंदिर मुद्दे को लेकर माहौल बनाने में जुटी हुई थी।
यह राजीव जी की कोशिश थी कि एक फरवरी 1986 को एक स्थानीय अदालत ने विवादित स्थान से मूर्तियां न हटाने और पूजा जारी रखने का आदेश दे दिया। इसके बाद बाबरी का ताला खुला। सच यह है कि भाजपा तो कहीं सीन में ही नहीं थी। मोदी का अता पता ही नहीं था तो फिर मोदी वहां कर क्या रहे हैं?
आवेश तिवारी