कभी अज्ञेय ने लिखा था : आज की कविता बहुत बोलती है

सोशल मीडिया के प्रसार में कवि की अपनी मुखरता का ठिकाना न रहा..

Update: 2021-09-20 06:21 GMT

कभी अज्ञेय ने लिखा था कि आज की कविता बहुत बोलती है, जबकि कविता का काम बोलना है ही नहीं।

आज लगता है कविता अधिक बोलती ही नहीं, शोर भी मचाती है। जैसे मंच की कविता। और ऊपर से कवि का अपना बड़बोलापन बेक़ाबू होता चला जाता है।

सोशल मीडिया के प्रसार में कवि की अपनी मुखरता का ठिकाना न रहा। बस मैं ही मैं। एक युवतर कवि की पोस्ट पढ़ी। मैंने यह लिखा, मुझ पर यह लिखा, मुझ पर यह कहा, मुझे यह मिला, मैं उनसे मिला, वे मुझसे मिले, मैंने …। पच्चीस पंक्तियाँ इसी में निकल गईं। भई, कहना क्या चाहते हो?

कवि को कम बोलना चाहिए। बात बोलेगी, हम नहीं — जैसा कि कविवर शमशेरजी कह गए। भेद खोले बात ही, कवि नहीं। कवि खोलने बैठ जाएगा तो उसकी कविता से भरोसा उठ नहीं जाएगा? 

- ओम थानवी, वरिष्ठ पत्रकार


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