सेवाभाव से जुड़ी चिकित्सा के बदलते स्वरूप और आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना
आजकल चिकित्सा सुविधा इतनी महंगी हो गई है कि तमाम गरीब पैसे के अभाव में अपना इलाज नहीं करवा पाते हैं और अकाल काल के गाल में समा जाते हैं।एक समय था जबकि इलाज सेवाभाव से होता था इसीलिए डाक्टरों को भगवान कहा जाता था और डाक्टर भी मरीजों के प्रति दयाभाव रखते थे। उनके साथ पैसा कमाने के लिए छल कपट एवं नाजायज शोषण करके बलि का बकरा नहीं बनाया जाता था। बदलते समय के साथ चिकित्सा भी पत्रकारिता की तरह सेवाभाव नहीं रह गई है और उसने व्यवसाय का रूप धारण कर लिया है और यह धन कमाई करने का जरिया बनकर वसूलों सिद्धांतों से कोसों दूर होती जा रही है। जिस तरह से झाड़ फूंक तंत्र मंत्र बाबा ओझा के पास जाने पर वह कुछ न कुछ भूत बैताल ग्रह बयार आदि बताकर अपना उल्लू जरूर सीधा कर लेते हैं बिल्कुल उसी तरह अगर आप स्वस्थ भी हैं तो मरीज बनकर अस्पताल डाक्टर के पास जाने पर कोई न कोई बीमारी जाँच करके निकालकर अच्छे भले को रोगी बनाने का दौर शुरू हो गया है।
सरकार के समानांतर तमाम छोटे से लेकर बड़े बड़े आधुनिक तकनीक एवं सुविधाओं से युक्त लग्जरी अस्पताल खुल गये हैं। अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों में जो भी पहुंच जाता है उससे बिना कुछ वसूले खाली हाथ वापस नहीं लौटने दिया जाता है। स्थिति तो यहाँ तक पहुंच गई है कि बिना आवश्यकता लोगों को पैसा कमाने की गरज से आईसीयू वेलटीनेटर आदि पर रखा जाने लगा है और मर जाने के बाद भी कमाई करने के लिए तीमारदारों से जिंदा होने का दावा किया जाता रहता है। इतना ही नहीं मरीजों को बंधक बनाने के तमाम मामले अबतक उजागर हो चुके हैं और आक्रोशित तीमारदार एवं भीड़ तोड़फोड़ कुछ बड़े छोटे अस्पतालों में तोड़फोड़ एवं मारपीट भी कर चुकी है। आम नागरिकों का रोटी, कपड़ा, मकान, सुरक्षा, शिक्षा एवं चिकित्सा उपलब्ध कराना सत्तारूढ़ सरकारों का दायित्व होता है इसीलिए सरकार ने भी तमाम छोटे बड़े सरकारी अस्पताल खोल रखें हैं जहाँ पर रियायती दरों पर जांच एवं अन्य आधुनिक तकनीक की चिकित्सा उपलब्ध कराई जाती है लेकिन अब वहाँ पर भी मरीजों को धन कमाई का जरिया बना दिया गया है और दवा से लेकर अन्य सामग्री तक मरीजों को बाहर से लानी पड़ती है क्योंकि अधिकांश दवायें ऐसी लिखी जाती हैं जो अस्पताल में उपलब्ध नहीं होती हैं।
गरीबों को पैसे के कारण इलाज के अभाव में होने वाली मौतों से बचाने के लिए पिछली सरकार द्वारा स्वास्थ्य बीमा योजना चलाई गयी थी किन्तु धन सीमा बहुत कम एवं समय सीमा से बंधी थी। सरकार की इस महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजना का लाभ गरीबों को कम और इलाज के लिए अधिकृत किये गये प्राइवेट अस्पतालों ने ज्यादा उठाया और अधिकांशतया जो स्क्रेच कार्ड लेकर अस्पताल पहुंच गया उसका खाता खाली कर लिया गया था। आजकल छोटी छोटी बीमारियों में लाखों खर्च हो जाते हैं इसलिये सरकार की स्वास्थ्य बीमा योजना सीमित धन के चलते परवान नहीं चढ़ सकी और खटाई में पड़ गयी। वर्तमान सरकार ने पूर्व सरकार द्वारा गरीबों को स्वास्थ्य चिकित्सा उपलब्ध कराने की अतिमहत्वाकांक्षी योजना में व्यापक सुधार करते हुए अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना के रूप में पिछले महीने शुरू किया है जिससे अब धरातल पर उतारने की कोशिश की जा रही है। योजना के लाभार्थियों का चयन 2011 में हुयी आर्थिक जनगणना सूची के आधार पर किया गया है जो बहुत पहले ही दोषपूर्ण साबित हो चुकी है तथा तमाम पात्रों के नाम सूची में शामिल नहीं हो सके हैं।
अभी पिछले दिनों आवास पात्रता की सूची सूची में छूटे लोगों को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ देने के लिए उसमें संशोधन करके आवास विहीन लोगों को अतिरिक्त सूची बनाकर सरकार उनके नामों को शामिल कर चुकी है।यह बात अलग है कि संशोधित सूची में शामिल किये गये अधिकांश लोगों को आवास नहीं मिल सका है क्योंकि पहले बनी सूची के लोगों को लाभ मिलने के बाद आवास उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है। गरीबों को पैसे के अभाव में चिकित्सा सुविधा न उपलब्ध हो पाने के कारण होने वाली असमायिक मौतों से बचाने वाली सरकार की यह योजना निश्चित ही सरकार का एक ऐतहासिक एवं सराहनीय स्वागत योग्य कदम है लेकिन योजना शुरू होने के महीनों बीत जाने के बाद यह मूर्ति रूप नहीं ले पा रही है।योजना का लाभ सभी गरीबों को देने के लिये सूची को विकार रहित करना जरुरी है ताकि सरकार की मंशा फलीभूत हो सके।
सरकार द्वारा योजना तहत अंगीकृत सरकारी एवं गैर सरकारी अस्पतालों का चयन तो कर लिया था लेकिन अभी तक सभी चयनित लाभार्थियों को स्क्रेच कार्ड तक नहीं मिल सका है जबकि डेढ़ महीने बाद साल समाप्त होकर चुनावी साल आने वाला है। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि जो कार्ड लाभार्थियों को दिये जा रहे हैं उनकी वैधानिकता की अवधि है या बेमियादी हैं और इन्हें नवीनीकृत किया जायेगा या नहीं?