योगी आदित्यनाथ की इस बात से मैं भी इत्तिफाक रखता हूँ कि उत्तर प्रदेश में बड़ी तादाद में पदों पर भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिल रहे। यहां अगर डिग्री और पढ़ाई-लिखाई को देखकर योग्य लोगों की गिनती की जा रही है तो भले ही पदों से कई गुना तादाद में 'योग्य' लोग आवेदन करते हैं लेकिन जहां तक पदों की जरूरत के हिसाब से वास्तविक योग्यता की बात है, उसके लिए तो चिराग लेकर ही ढूंढना पड़ जाता होगा।
मैं जब मीडिया में था तो वहां एक से बढ़कर एक नमूने तगड़ी सोर्स सिफारिश से डिग्री या शैक्षणिक योग्यता का भ्रम दिखाकर एंट्री तो कर जाते थे लेकिन बरसों की मेहनत के बावजूद वह जस का तस ही रह जाते थे।
क्योंकि उनकी मानसिक योग्यता किसी भी सूरत में उनको मिले पद के मुताबिक नहीं हुआ करती थी। इसी तरह, जब से मैं बिज़नेस कर रहा हूँ, तब से भी बराबर मेरा वास्ता ऐसे लोगों से बराबर पड़ता रहा है, जो तमाम तरह की डिग्रियां लेकर घूम रहे हैं लेकिन एक एप्लीकेशन तो क्या कई बार अपना नाम-पता या फिर अंग्रेजी-हिंदी के सही शब्द/वाक्य तक नहीं लिख पाते हैं।
और बॉयोडाटा देखिए तो पाएंगे कि कंप्यूटर का शायद ही कोई ऐसा कोर्स होगा, जो उन्होंने किया न हो। यही नहीं, कचहरी में जाइये तो एक नहीं, न जाने कितने वकील ऐसे मिलेंगे, जिनके बॉयोडाटा में डिग्री और अनुभव तो खूब है मगर एक एफिडेविट भी खुद से नहीं लिख सकते।
महज बॉयोडाटा देखकर किसी इंजीनियर को नौकरी पर रख लीजिए तो अक्सर यही पाएंगे कि ज्ञान के मामले में उसकी हालत किसी मिस्त्री से बदतर होगी। और ज्यादातर मामलों में यही होता है कि आर्किटेक्ट हो, सॉफ्टवेयर या वेबसाइट डेवलपर हो या फिर किसी और फील्ड का पेशेवर... मजाल है कि उसके बॉयोडाटा पर जो लिखा हो, वह कहीं से खरा उतर जाए।
जब मैं दिल्ली में आईआईएमसी से पत्रकारिता का कोर्स करके निकला तो मुझे वहीं के अंग्रेजी पत्रकारिता विभाग के हेड प्रोफेसर प्रदीप माथुर ने कहा कि जब भी इंटरव्यू में जाना तो वहां किसी भी सवाल पर न मत बोलना। हर चीज पर यही बताना कि मुझे आता है।
मैंने नवभारत टाइम्स के इंटरव्यू में यही किया। कह दिया कि मुझे हिंदी टाइपिंग, क्वार्क या पत्रकार/सब एडिटर के लिए जरूरी सभी तकनीकी ज्ञान में महारत हासिल है। नतीजा यह हुआ कि पहले ही दिन मुझे जब वहां के न्यूज़ एडिटर मुकुल व्यास जी ने अपनी चिर परिचित शैली में अंग्रेजी अखबार की एक बड़ी सी कटिंग थमाकर कहा कि इसका अनुवाद करो क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय पेज पर जाना है तो मैंने उन्हें बताया कि मुझे टाइपिंग नहीं आती।
वह अवाक हो गए... फिर आफिस में इसको लेकर हाय तौबा हुई। तो मुझे हरियाणा डेस्क पर Subhash Akhil सर के साथ लगा दिया क्योंकि तब तक वहां कम्प्यूटर पर काम न के बराबर हो रहा था। साथ ही, पेज आदि भी पुराने तरीके से बन रहे थे। लेकिन मैं समझ गया था कि अब टाइपिंग या तकनीकी ज्ञान सीखे बिना गुजारा नहीं है और अगर आगे बढ़ना है तो ये सब तो सीखना ही पड़ेगा।
फिर मैंने व्यास जी से ही फोनेटिक टाइपिंग का चार्ट लिया और दिन रात एक करके महज तीन दिन में हिंदी टाइपिंग की वह स्पीड पकड़ी कि बस चंद मिनटों में ही आर्टिकल लिख मारता था। उसी वक्त की गई मेहनत का नतीजा है कि आज फेसबुक पर भी मेरे द्वारा हिंदी में लिखी गईं। लंबी लंबी पोस्ट देखकर मुझसे लोग खासे त्रस्त रहते हैं।
कुल मिलाकर कहने का मतलब यह कि मैं भी खुद को मिले पद के हिसाब से योग्य नहीं था मगर जल्द से जल्द अपने को उस योग्य बना लिया था।
इसलिए मैं उनको अयोग्य कतई नहीं मानता, जिन्हें मौका नहीं मिला और इस कारण वह किसी खास ज्ञान से वंचित हैं। लेकिन मैं उन घामड़ों को जरूर अयोग्य मानता हूँ, जो मौका दिए जाने के बावजूद महीनों या बरसों तक खुद को उस पद के लायक नहीं बना पाते।